Book Title: Visheshavashyak Bhashya Part 01
Author(s): Subhadramuni, Damodar Shastri
Publisher: Muni Mayaram Samodhi Prakashan

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Page 489
________________ तस्मादपायादनन्तरं तदनन्तरं यत्, तदर्थादविच्यवनम्- उपयोगमाश्रित्याऽभ्रंशः, यश्च वासनाया जीवेन सह योगः, संबन्धः, यच्च तस्याऽर्थस्य कालान्तरे पुनरिन्द्रियैरुपलब्धस्य, अनुपलब्धस्य वा, एवमेव मनसाऽनुस्मरणं स्मृतिर्भवति, सेयं पुनस्त्रिविधाऽप्यर्थस्याऽवधारणरूपा धारणा विज्ञेया॥ इति गाथाक्षरघटना॥ भावार्थस्त्वयम्- अपायेन निश्चितेऽर्थे तदनन्तरं यावदद्यापि तदर्थोपयोगसातत्येन वर्तते, न तु तस्माद् निवर्तते, तावत् तदर्थोपयोगादविच्युतिर्नाम, सा धारणायाः प्रथमभेदो भवति। ततस्तस्याऽर्थोपयोगस्य यदावरणं कर्म तस्य क्षयोपशमेन जीवो युज्ज्यते, येन कालान्तरे इन्द्रियव्यापारादिसामग्रीवशात् पुनरपि तदर्थोपयोगः स्मृतिरूपेण समुन्मीलति। सा चेयं तदावरणक्षयोपशमरूपा वासना नाम द्वितीयस्तभेदो भवति। कालान्तरे च वासनावशात् तदर्थस्येन्द्रियैरुपलब्धस्य,अथवा तैरनुपलब्धस्याऽपि मनसिया स्मृतिराविर्भवति, सा तृतीयस्तभेद इति। एवं त्रिभेदा धारणा विज्ञेया। तुशब्दोऽवग्रहादिभ्यो विशेषद्योतनार्थः। विप्रतिपत्तयस्त्वेतद्विषया अपि प्रागेव निराकृताः॥ इति गाथार्थः // 291 // (अर्थ) की कालान्तर में (भी) स्मृति हो जाती है (-ये तीनों प्रकार जिसके बताये गये हैं), वह 'धारणा' ही तो है।] . व्याख्याः- उस अपाय के बाद जो सम्बद्ध पदार्थ से उसकी अविच्युति अर्थात् उपयोग की दृष्टि से विनष्ट न होना है, और जीव के साथ जो वासना का योग-सम्बन्ध है, और जो उस पदार्थ की कालान्तर में, इन्द्रियों से उपलब्ध होने पर या अनुपलब्ध होने पर भी, उसी तरह की मन से जो अनुस्मृति होती है -ये तीनों प्रकार की पदार्थ-सम्बन्धी अवधारणा को 'धारणा' जानना चाहिए। यह गाथा की अक्षरशः योजना करते हुए अर्थ किया गया है। भावार्थ तो इस प्रकार है- अपाय से निश्चित किये गये पदार्थ में, उस (अपाय) के होने से लेकर जब तक उस पदार्थ-सम्बन्धी उपयोग की निरन्तरता बनी रहती है, वह निवृत्त नहीं होती, तब तक उस पदार्थ से (अपाय-ज्ञान की) जो अविच्युति है, वह धारणा का प्रथम भेद है (यह प्रथम प्रकार की धारणा है)। उसके बाद, उस पदार्थ-सम्बन्धी उपयोग का जो आवरण (करने वाला) कर्म है, उसके क्षयोपशम से जीव सम्पन्न होता है, जिससे कालान्तर में इन्द्रिय-व्यापार आदि सामग्री के कारण, पुनः पदार्थ-सम्बन्धी वह उपयोग ‘स्मृति' रूप से उन्मीलित (प्रकट) हो जाता है। सम्बद्ध उपयोग के आवरण की क्षयोपशम रूप जो स्थिति है, वह 'वासना' है, यह धारणा का द्वितीय भेद है। और, कालान्तर में, वासना के कारण, उस अर्थ की, जो इन्द्रियों से उपलब्ध हो या उनसे अनुपलब्ध हो, मन में स्मृति आविर्भूत होती है, वह (धारणा का) तीसरा भेद है। इस प्रकार, धारणा के तीन भेदों को जानना चाहिए। 'तु' यह शब्द अवग्रह आदि से इस (धारणा) के अन्तर या वैशिष्ट्य को सूचित कर रहा है। इस सम्बन्ध में (संभावित) आपत्तियों का निराकरण पहले ही किया जा चुका है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 291 // Wa---------- विशेषावश्यक भाष्य - ---- 423

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