________________ , तदेवं 'से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सई सुणेज' इत्यादिसूत्रानुरोधेन शब्दमाश्रित्याऽवग्रहादयो भाविताः। अथ सूत्रकारेणैव यदुक्तम्- ‘एवं एएणं अभिलावेणं अव्वत्तं रूवं रसं गंधं फासं' इत्यादि, तच्चेतसि निधाय भाष्यकारोऽप्यतिदेशमाह सेसेसु वि रूवाइसु, विसएसु होंति सूवलक्खाई। पायं पच्चासन्नत्तणेणमीहाइवत्थूणि॥२९२॥ [संस्कृतच्छाया:- शेषेषु अपि रूपादिषु विषयेषु भवन्ति सूपलक्ष्याणि / प्रायः प्रत्यासन्नत्वेन ईहादिवस्तूनि // ] यथा शब्दे, एवं शेषेष्वपि रूपादिविषयेषु साक्षादनुक्तान्यपि सूपलक्ष्याणि कथितानुसारप्रसरत्प्रज्ञानां चतुरचेतसां सुज्ञेयानि भवन्ति / कानि?, इत्याह- ईहादीन्याभिनिबोधिकज्ञानस्य भेदवस्तूनि / केन सूपलक्ष्याणि?, इत्याह- प्रायः प्रत्यासन्नत्वेन चक्षुरादिना गृह्यमाणस्य स्थाण्वादेः, तत्राऽगृह्यमाणेन पुरुषादिना सह प्रायो बहुभिर्धमैर्यत् प्रत्यासन्नत्वं या प्रत्यासत्ति: सादृश्यमिति यावत्, तेनेहादीनि ज्ञेयानि, न पुनरत्यन्तवैलक्षण्ये स्थाण्वादेरुष्ट्रादिना सहेत्यर्थः। (रूप आदि शेष विषयों में ईहा आदि) इस प्रकार 'वह यथानाम कोई पुरुष अव्यक्त शब्द को सुनता है' इत्यादि सूत्र के अनुरोध से (उसे महत्त्व देने की दृष्टि से) 'शब्द' पर आश्रित अवग्रह आदि का निरूपण किया गया। अब, सूत्रकार ने ही जो यह कहा था- इस प्रकार, इस (शब्द सम्बन्धी) अभिलाप (निरूपण) के आधार.. पर अव्यक्त रूप-रस-गन्ध-स्पर्श का ग्रहण भी (समझना चाहिए) इत्यादि। उसे भी मन में रख कर भाष्यकार भी अतिदेश (सादृश्य के आधार पर अन्य के भी ग्रहण का अनुसरण कर रूप आदि के . . अवग्रह का) कथन कर रहे हैं // 292 // सेसेसु वि रूवाइसु, विसएसु होति सूवलक्खाई। पायं पच्चासन्नत्तणेणमीहाइवत्थूणि // [(गाथा-अर्थ :) (शब्द से) शेष रूप आदि विषयों में भी (शब्द की तरह, ईहा आदि को) समझ लेना सुगम (या सम्यक्तया ज्ञेय) है, क्योंकि (वे) ईहा आदि भेद (प्रायः) प्रत्यासन्नता (किंचित् सादृश्य) के आधार पर (ही) होते हैं।] व्याख्याः - जिस प्रकार शब्द (के अवग्रह) के विषय में कहा है, उसी प्रकार शेष रूप आदि विषयों के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। यद्यपि उनका (सूत्र में) साक्षात् कथन नहीं किया गया है, फिर भी पूर्वोक्त रूप से जिनकी प्रज्ञा विस्तृत विषय (को ग्रहण करने) वाली होती है- ऐसे चतुर मन (बुद्धि) वालों के लिए वे सुज्ञेय (सुगम या सम्यक्तया जानने योग्य) हैं। (प्रश्न-) कौन सुज्ञेय हैं? उत्तर दिया- (ईहादिभेदवस्तूनि)। आभिनिबोधिक ज्ञान के भेद रूप जो ईहा आदि हैं, वे (सुगम) हैं। प्रायः प्रत्यासन्नता (सादृश्य) के आधार पर, अर्थात् नेत्र आदि से गृह्यमाण ढूंठ वृक्ष आदि, और a 424 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----