________________ सद्दो त्ति व सुयभणियं, विगप्पओ जइ विसेसविण्णाणं। घेप्पेज्ज तं पि जुज्जइ, संववहारोग्गहे सव्वं // 287 // [संस्कृतच्छायाः- शब्द इति वा श्रुतभणितं विकल्पतो यदि विशेषविज्ञानम्। गृह्येत तदपि युज्यते संव्यवहारावग्रहे सर्वम्॥] वाशब्दोऽथवार्थे, ततश्चायमभिप्रायः- 'सहे ति भणइ वत्ता' इत्यादिप्रकारेण तावद् व्याख्यातं तेण सद्दे त्ति उग्गहिए' इत्यादि सूत्रम्। अथवा 'शब्दः' इति यत्सूत्रभणितम्- 'शब्दस्तेनाऽवगृहीतः' इति यत् सूत्रे प्रतिपादितम्, तद् यदि विकल्पतो विवक्षावशतो विशेषविज्ञानं गृह्येत, तदपि सर्वं युज्यते।कस्मिन्?, इत्याह- यथोक्त औपचारिके सांव्यवहारिकाऽर्थावग्रहे गृह्यमाणे सति। अत्र हि 'शब्दः' इति विशेषविज्ञानं युज्यते, सर्वग्रहणात् तदनन्तरमीहादयश्चोपपद्यन्ते, पूर्वोक्तयुक्तेः। ततश्च ‘से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सई सुणेजा, तेणं सद्दे त्ति उग्गहिए, न उण जाणइ के वेस सद्दे, तओ ईहं पविसई, तओ अवायं गच्छइ' इत्यादि सर्वं सुस्थं भवति। यद्येवम्, अयमेवाऽर्थावग्रहः कस्माद् न गृह्यते, येन सर्वोऽपि विवादः शाम्यति? इति चेत्। नैवम्, 'शब्द एवाऽयम्' इत्याद्यपायरूपोऽयमर्थावग्रहः, अपायश्च सामान्यग्रहणेहाभ्यामन्तरेण न संभवति, इत्याद्यसकृत् पूर्वमभिहितमेव। इति प्राक्तनमेव व्याख्यानं मुख्यम्। इत्यलं विस्तरेण // इति गाथार्थः // 287 // // 287 // सद्दो त्ति व सुयभणियं, विगप्पओ जइ विसेसविण्णाणं / घेप्पेज्ज तं पि जुज्जइ, संववहारोग्गहे सव्वं // [(गाथा-अर्थ :) अथवा 'शब्द' (अवगृहीत होता है-) ऐसा जो श्रुत में कहा गया है, उसे यदि विकल्प (विवक्षा) की अपेक्षा से विशेष विज्ञान के रूप में ग्रहण किया जाय, तो वह सारा (कथन) भी, उसे सांव्यवहारिक (औपचारिक) अर्थावग्रह मानने पर, सुसंगत हो जाता है।]. " व्याख्याः- 'वा' का अर्थ 'अथवा' है। इस प्रकार अभिप्राय यह है कि “उसने शब्द का अवग्रहण किया -इत्यादि सूत्र का 'शब्द' यह कथन 'वक्ता' -प्ररूपणाकार की दृष्टि से है" इत्यादि रीति से व्याख्यान किया गया / अथवा 'शब्द' -यह जो 'उसने शब्द का अवग्रहण किया है' -इस सूत्र में कहा गया है, उसे यदि विकल्प की, यानी विवक्षा की अपेक्षा से 'विशेष ज्ञान' के रूप में स्वीकार किया जाय, तो वह सब (सूत्र-कथन) संगत हो जाता है। (प्रश्न-) किस रूप में वह संगत होता है? उत्तर दिया- पूर्वोक्त जो औपचारिक या सांव्यवहारिक अर्थावग्रह है, उस रूप में उस (विशेष ज्ञान) को मान लिया जाय तो। यहां 'शब्द' यह विशेष ज्ञान के रूप में संगत है। 'वह सब संगत होता है' इस कथन में 'वह सब' यह कथन सूचित करता है कि अनन्तरभावी ईहा आदि की भी (पूर्वोक्त रीति से) संगति होती है। इसके बाद “वह यथानाम कोई पुरुष अव्यक्त शब्द को सुनता है, उसने शब्द का अवग्रहण किया, किन्तु वह नहीं जानता कि यह कौन-सा शब्द है, तब वह ईहा में प्रविष्ट होता है, तदनन्तर अपाय ज्ञान करता है” –इत्यादि समस्त सूत्रोक्त की (भी) संगति बैठ जाती है। (प्रश्न-) यदि ऐसा है तो इसे (शब्द का अवग्रहण करता है, इसे) ही अर्थावग्रह क्यों नहीं मान लेते हैं, ताकि सारा विवाद शान्त हो जाय? (उत्तर-) ऐसा नहीं। यह अर्थावग्रह तो 'शब्द ही है' Ma 416 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------