________________ अथ तद्वितीयभेदलक्षणामीहां व्याचिख्यासुराह इय सामण्णग्गहणाणंतरमीहा सदत्थवीमंसा। किमिदं सद्दोऽसहो? को होज्ज वसंख-संगाणं?॥२८९॥ [संस्कृतच्छाया:- इति सामान्यग्रहणानन्तरम् ईहा सदर्थ-मीमांसा। किमिदं शब्दः अशब्दः को भवेद् वा शासशााणाम् // ] इतिशब्द उपप्रदर्शने, इत्येवं प्रागुक्तेन प्रकारेण नैश्चयिकाऽर्थावग्रहे यत् सामान्यग्रहणं रूपाद्यव्यावृत्त्याव्यक्तवस्तुमात्रग्रहणमुक्तम्, तथा व्यवहारार्थावग्रहेऽपि यदुत्तरविशेषापेक्षया शब्दादिसामान्यग्रहणमभिहितम्। तस्मादनन्तरमीहा प्रवर्तते। कथंभूतेयम्?, इत्याह-सतस्तत्र विद्यमानस्य गृहीतार्थस्य विशेषविमर्शद्वारेण मीमांसा विचारणा। केनोल्लेखेन?, इत्याह-किमिदं वस्तु मया गृहीतं-शब्दः, अशब्दो वा रूप-रसादिरूपः?, इदं च निश्चयार्थावग्रहाऽनन्तरभाविन्या ईहायाः स्वरूपमुक्तम्। (ईहा का व्याख्यान) अब, (मतिज्ञान के) द्वितीय भेद (क्रम) 'ईहा' का व्याख्यान करने जा रहे हैं // 289 // इय सामण्णग्गहणणंतरमीहा सदत्थवीमंसा। किमिदं सद्दोऽसद्दो? को होज्ज व संख-संगाणं? // [(गाथा-अर्थ :) इस (पूर्वोक्त) रीति से सामान्य ग्रहण के बाद, सद् (विद्यमान) अर्थ की मीमांसा (प्रारम्भ) होती है- (जैसे) क्या यह शब्द है या (उससे भिन्न) अशब्द है? अथवा (शब्द है तो) क्या यह शङ्ख का है या श्रृंगी वाद्य का?] व्याख्याः- 'इति' यह शब्द 'उपनिदर्शन' अर्थ में प्रयुक्त है, अतः यहां अर्थ होगा- पूर्वोक्त प्रदर्शित रीति से। (आगे का वाक्यांश होगा-) नैश्चयिक अर्थावग्रह में जो सामान्य का ग्रहण, अर्थात् रूप आदि की व्यावृत्ति के साथ अव्यक्त वस्तु मात्र का ग्रहण होता है-यह कहा गया है, और व्यवहार अर्थावग्रह में भी जो उत्तरवर्ती विशेष की अपेक्षा से शब्दादि सामान्य का ग्रहण होता है- यह भी कहा गया है। उसके बाद ईहा की प्रवृत्ति होती है। (प्रश्न-) वह ईहा कैसी होती है? उत्तर दिया(सदर्थमीमांसा)। सत् यानी विद्यमान गृहीत अर्थ, उसकी विशेष सम्बन्धी विमर्श के माध्यम से की गई मीमांसा यानी विचारणा / (प्रश्न-) यह मीमांसा किस रूप में उल्लेखित (शब्दों से अभिव्यक्त) होती है? उत्तर दिया- जो मैंने वस्तु गृहीत की है, वह शब्द है या अशब्द यानी रूप-रस आदि (में से कौन-सी वस्तु) है? यहां निश्चय-अर्थावग्रह के अनन्तर होने वाली ईहा का यह स्वरूप कहा गया है। Via 420 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----