Book Title: Visheshavashyak Bhashya Part 01
Author(s): Subhadramuni, Damodar Shastri
Publisher: Muni Mayaram Samodhi Prakashan

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Page 464
________________ केइदिहालोयणपुव्वमोग्गहं बेंति तत्थ सामण्णं। गहियमहत्थावग्गहकाले सद्दे त्ति निच्छिण्णं // 273 // [संस्कृतच्छाया:-केचिद् इह आलोचनपूर्वमवग्रहं ब्रुवन्ति तत्र सामान्यम्। गृहीतमथ अर्थावग्रहकाले शब्द इति निश्छिन्नम्॥] केचिद् वादिन इहाऽस्मिन् प्रक्रमेऽवग्रहं ब्रवतेऽर्थावग्रहं व्याचक्षते / किंविशिष्टम्?, इत्याह- आलोचनपूर्वं सामान्यवस्तुग्राहि ज्ञानमालोचनं तत् पूर्व प्रथमं यत्र स तथा तम्, प्रथममालोचनज्ञानं ततोऽर्थावग्रह इत्यर्थः, तथा च तैरुक्तम् 'अस्ति ह्यालोचनाज्ञानं प्रथमं निर्विकल्पकम्। बालमूकादिविज्ञानसदृशं शुद्धवस्तुजम् // 1 // इति॥ किं पुनस्तत्राऽऽलोचनज्ञाने गृह्यते?, इत्याह-'तत्थेत्यादि / तत्रालोचनज्ञाने सामान्यमव्यक्तं वस्तु गृहीतं 'प्रतिपत्त्रा' इति गम्यते, अथाऽनन्तरमर्थावग्रहकाले तदेव गृहीतम्' इत्यनुवर्तते। कथंभूतं सत्?, इत्याह-निच्छिन्नं पृथक्कृतं रूपादिभ्यो व्यावृत्तमित्यर्थः। केनोल्लेखेन गृहीतम्?, इत्याह- 'सद्दे त्ति' शब्दविशेषविशिष्टमित्यर्थः। ततश्च ‘से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं सदं सुणेज' // 273 // केइदिहालोयणपुव्वमोग्गहं बेति तत्थ सामण्णं / गहियमहत्थावग्गहकाले सद्दे त्ति निच्छिण्णं // [(गाथा-अर्थ :) कुछ (वादी) लोग इस सन्दर्भ में आलोचन (सामान्य वस्तु-ग्रहण) के बाद अवग्रह का होना बताते हैं। (उनके मत में) उस (आलोचन) में सामान्य गृहीत हो जाता है और अर्थावग्रह के समय 'शब्द' -यह निश्चय होता है।] व्याख्याः- कुछ वादी इस प्रकरण में अवग्रह का कथन, अर्थात् उसका व्याख्यान (इस प्रकार) करते हैं। उन (के व्याख्यान) का क्या वैशिष्ट्य है? उत्तर दिया- वे अर्थावग्रह को सामान्यवस्तुग्राही आलोचनज्ञान-पूर्वक मानते हैं, अर्थात् पहले आलोचन ज्ञान और उसके बाद अर्थावग्रह होता है- ऐसा मानते हैं। उनका कहना है पहले निर्विकल्पक आलोचन-ज्ञान होता है, जो शुद्ध वस्तु से उत्पन्न तथा बालक व गूंगे के ज्ञान की भांति (अनिर्देश्य) होता है। (प्रश्न-) यह बताएं कि उस आलोचन ज्ञान में क्या गृहीत होता है? उत्तर दिया- (तत्र सामान्यम्)। उस आलोचन ज्ञान में सामान्य, अव्यक्त वस्तु ही ज्ञाता द्वारा गृहीत होती है (-यह उनका मत है,) -ऐसा ज्ञात होता है। फिर बाद में अर्थावग्रह के समय, 'वही गृहीत वस्तु' इसकी अनुवृति की जाती है। वह कैसी है? उत्तर दिया- निश्छन्नम् / वह निश्छन्न अर्थात् रूप आदि से व्यावृत्त, पृथग्भूत होती है। किस उल्लेख (स्वरूप) के साथ गृहीत होती है? उत्तर दिया- (शब्द इति)। अर्थात् 'शब्द' इस विशेषण से युक्त होती है। इस (व्याख्यान) से 'कोई यथानाम कोई पुरुष अव्यक्त शब्द को सुने' -इस (आगमिक कथन) को आलोचन ज्ञान की अपेक्षा से लेना चाहिए, किन्तु 'उसने शब्द का 1 398 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------

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