________________ तस्स फल-जोग-मंगल-समुदायत्था तहेव दाराई। तब्भेय-निरुत्त-क्कम-पओयणाइं च वच्चाई॥२॥ [संस्कृतच्छाया:- तस्य फल-योग-मङ्गल-समुदायार्थास्तथैव द्वाराणि / तद्भेदनिरुक्त-क्रम-प्रयोजनानि च वाच्यानि॥] व्याख्या- तस्येत्यावश्यकानुयोगस्य, प्रेक्षावतां प्रवृत्तिनिमित्तं फलं मोक्षप्राप्तिलक्षणं तावदत्र ग्रन्थे वक्तव्यम्। ततोऽस्य योगः शिष्यप्रदाने संबन्धोऽवसरः प्रस्तावो वाच्यः। आवश्यकानुयोगे च क्रियमाणे किं मङ्गलमित्येतदपि निरूपणीयम्।. सामायिकाद्यध्ययनानां 'सावजजोगविरई उक्कित्तण गुणवओ च पडिवत्ती' इत्यादिगाथया समुदायार्थश्च सावद्ययोगविरत्यादिकोऽभिधानीयः। फलं च योगश्च मङ्गलं च समुदायार्थश्चेति समासः। 'तहेव दाराई ति' तथा द्वाराणि चोपक्रमनिक्षेपादीनि कथनीयानि / तेषां द्वाराणां भेदो वक्तव्यः, तद्यथा- आनुपूर्वी-नामप्रमाण-वक्तव्यता-ऽर्थाधिकार-समवतारभेदादुपक्रमः षोढा, ओघनिष्पन्न-नामनिष्पन्न-सूत्रालापकनिष्पन्न-भेदाद् निक्षेपस्त्रिधा, सूत्रनियुक्तिभेदादनुगमो द्विधा, नैगमादिभेदाद नयाः सप्तविधा इत्यादि। उपक्रमणमुपक्रमः, निक्षेपणं निक्षेप इत्यादि। निरुक्तं च शब्दव्युत्पत्तिरूपं भणनीयम्। तथा 'कम त्ति' तेषामुपक्रमादिद्वाराणां प्रथममुपक्रम एव ततो यथाक्रमं निक्षेपादय एव, इत्येवंरूपो योऽसौ नियतः क्रमः युक्त्याऽभिधानतो निर्देष्टव्यः, युक्तिं चात्रैव वक्ष्यति, तद्यथा- नानुपक्रान्तं निक्षिप्यते, नाऽनिक्षिप्तमनुगम्यत इत्यादि। . (2) तस्स फल-जोग-मङ्गल-समुदायत्था तहेव दाराई। तब्भेय-निरुत्त-क्कम-पओयणाइं च वच्चाई॥ [(गाथा-अर्थः) उस (आवश्यक-अनुयोग) के फल, योग, मङ्गल, समुदायार्थ तथा उपक्रम, निक्षेप आदि द्वार, (एवं उन द्वारों) के भेद, नियुक्ति, क्रम व प्रयोजन भी कथनीय हैं।] व्याख्याः- तस्स= उस (आवश्यक-अनुयोग) का, समझदार व्यक्तियों को प्रवृत्ति कराने में निमित्त- मोक्ष-प्राप्ति रूप 'फल' का कथन इस ग्रन्थ में अभिधेय है। इसी तरह, शिष्यों को यह अनुयोग क्यों अभिधेय है- यह बताने वाले 'योग', अर्थात् सम्बन्ध या प्रस्तुति का कथन भी अपेक्षित है। आवश्यक-अनुयोग करने में कौन-सा (या क्यों) मङ्गल है- इसका निरूपण भी करणीय है। सामायिक आदि अध्ययनों के समुदित अर्थ रूप 'सावद्ययोग-विरति' इत्यादि का कथन भी 'सावज्जजोगविरई उक्कित्तण गुणवओ पडिवत्ती' (गा. 902) इत्यादिगाथा के रूप में किया जाना है। 'तहेव दाराई ति’= इसी प्रकार, उपक्रम, निक्षेप आदि अनुयोग-द्वारों का कथन भी करणीय है। उन द्वारों के भेदों का निरूपण भी अपेक्षित है। जैसे- उपक्रम छ प्रकार का है- आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार और समवतार। निक्षेप भी तीन प्रकार का है-ओघनिष्पन्न, नामनिष्पन्न और सूत्रालापकनिष्पन्न / अनुगम के दो प्रकार हैं- सूत्र व नियुक्ति / नय के नैगम आदि सात भेद हैं, इत्यादि। उपक्रम (प्रारम्भ) करना 'उपक्रम' है और (नाम, स्थापना आदि रूपों में) निक्षेपीकरण 'निक्षेप' है। निरूक्त से तात्पर्य है- शाब्दिक व्युत्पत्ति का कथन / और कम त्ति= इन्हें.क्रमानुसार Ma 10 -------- विशेषावश्यक भाष्य ---