________________ परोक्षत्वमस्य प्रागेव 'अक्खस्स पोग्गलकया जंदव्विंदिय-मणा परा तेणं' [अक्षस्य पुद्गलकृतानि यद् द्रव्येन्द्रिय-मनांसि पराणि तेन] इत्यादिग्रन्थेनोक्तम्, इति कुतस्तस्य प्रत्यक्षता?। अथ ज्ञानशून्येऽपीन्द्रियज्ञाननिमित्तत्वेन साक्षाद् व्याप्रियमाणत्वादुपचारेण 'अक्षमिन्द्रियं प्रति वर्तते' इति प्रत्यक्षता प्रोच्यते। हन्त! तर्हि 'इन्द्रियोपलब्धिः प्रत्यक्षम्' इत्येतल्लक्षणमिह न घटते, जीवोपलब्धित्वादस्याः / संव्यवहारमात्रेण तु प्रत्यक्षत्वमस्याऽस्माभिरप्यनन्तरमभ्युपगंस्यते, इति सिद्धसाध्यतैव॥ इति गाथार्थः // 12 // तदेवमिन्द्रिय-मनोनिमित्तज्ञानस्य परोक्षतां प्रतिपाद्य प्रयोगोपन्यासेन तामेव द्रढयन्नाह इंदिय-मणोनिमित्तं परोक्खमिह संसयादिभावाओ। तक्कारणं परोक्खं जहेह साभासमणुमाणं // 13 // [संस्कृतच्छाया:- इन्द्रियमनोनिमित्तं परोक्षमिह संशयादिभावात्। तत्कारणं परोक्षं यथेह साभासमनुमानम्॥] मन से संयोग होता है, मन इन्द्रिय के साथ जुड़ता है और इन्द्रिय का पदार्थ से संयोग होता है। उनका मत (दोषपूर्ण होने से) शोचनीय है, क्योंकि वैसा मानने पर वह ज्ञान उसी प्रकारं परोक्ष (कोटि में) हो जाएगा जिस प्रकार (उनके ही मत में) अनुमान को परोक्ष माना जाता है। इस तथ्य को हम पहले ही (पूर्व गाथा-90 में) 'अक्षस्य पुद्गलकृतानि' इत्यादि गाथा द्वारा (स्पष्ट) कह भी चुके हैं, ऐसी स्थिति में उस (इन्द्रियज ज्ञान) की प्रत्यक्षता कैसे मानी जा सकती है? यदि इन्द्रियों के ज्ञानशून्य होने पर भी, चूंकि इन्द्रियां ज्ञान में निमित्त होते हुए साक्षात् व्यापाररत होती हैं- इस आधार पर उनसे होने वाले ज्ञान को उपचार से प्रत्यक्ष कहा जाये, तब तो और भी अधिक दुःख की बात यह है कि 'इन्द्रिय द्वारा की गई उपलब्धि प्रत्यक्ष प्रमाण है' ऐसा उनका लक्षण भी घटित नहीं हो पाएगा, क्योंकि यह उपलब्धि तो जीव को होती है (न कि इन्द्रिय को)।हां, मात्र संव्यवहार की दृष्टि से इन्द्रियनिमित्तक उपलब्धि की प्रत्यक्षता तो हम भी आगे स्वीकार करेंगे, अतः वह सिद्ध-साध्यता ही है (अर्थात् हमारी मानी हुई बात को ही सिद्ध करने का उनका प्रयास है)। यह गाथा अर्थ पूर्ण हुआ // 12 // (मति व श्रुत की परोक्षरूपता) इस प्रकार, इन्द्रिय-मनोनिमित से होने वाले ज्ञान की परोक्षता का प्रतिपादन कर, अनुमान की उपस्थापना द्वारा उसी बात को दृढ़ करने हेतु आगे कह रहे हैं (93) इंदिय-मणोनिमित्तं परोक्खमिह संसयादिभावाओ। तक्कारणं परोक्खं जहेह साभासमणुमाणं || [(गाथा-अर्थः) इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाला (ज्ञान) परोक्ष है क्योंकि उसमें संशय (विपर्यय, अनिश्चय) आदि होते हैं। जिस प्रकार, साभास अनुमान (अनुमानाभास, असम्यक् अनुमान) और (सम्यक्) अनुमान के कारण भूत ज्ञान को परोक्ष माना जाता है, उसी तरह इस (तथाकथित इन्द्रियमनोनिमित्त-जनित ज्ञान) का कारण (भी) परोक्ष ही है।] Ma 14-------- विशेषावश्यक भाष्य ----------