________________ [संस्कृतच्छाया:- पौद्गल-मोदक-दन्ताः कुलाल-वटशालभञ्जने चैव।स्त्यानद्धेरैतान्युदाहरणानि भवन्ति ज्ञातव्यानि // ] स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयवर्तिन एतानि पौद्गलादीन्युदाहरणानि ज्ञातव्यानि भवन्ति। तद्यथा- 'पोग्गलेत्यादि / तत्र समयपरिभाषया पौद्गलं मांसमुच्यते, तदुदाहरणं यथा एकस्मिन् ग्रामे कुटुम्बिकः कोऽप्यासीत्, स च मांसगृद्ध आमानि, पक्वानि, तलितानि, केवलानि, तीमनादिमध्यप्रक्षिप्तानि च मांसानि भक्षयति। अन्यदा च गुणातिशायिभिः स्थविरैः कैश्चित् प्रतिबोधितो दीक्षां कक्षीकृतवान्। तेन च ग्रामाऽनुग्रामं विहरता कदाचित् क्वचित् प्रदेशे मांसलुब्धैः कैश्चिद् विकृत्यमानो महिष: समीक्षाञ्चक्रे। तं च संवीक्ष्य तदामिषभक्षणे तस्याऽप्यभिलाष: समजायत। स चाऽभिलाषोऽस्य भुञ्जानस्य विचारभूमी गतस्य चरमा सूत्रपौरुषीं, प्रतिक्रमणक्रियां, प्रादोषिकपौरुषीं च कुर्वतो न निवृत्तः, किं बहुना?, तदभिलाषवर्येव प्रसुप्तोऽसौ। ततः स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयो जातः। तदुदये चोत्थाय ग्रामाद् बहिर्महिषमण्डलमध्ये गत्वाऽन्यं महिषमेकं विनिहत्य तदामिषं भक्षितवान्। तदुद्वरितशेषं च समानीयोपाश्रयोपरि क्षिप्त्वा प्रसुप्तः। समुत्थितश्च प्रत्युषसि स 'मयेत्थंभूतः स्वप्नो दृष्टः' इत्येवं गुर्वन्तिक आलोचयामास।साधुभिश्चोपाश्रयोपरि तदामिषमदृश्यत / ततः 'स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयोऽस्याऽस्ति' इति ज्ञातम् / तथा च संघेन लिङ्गमपहृत्य विसर्जितोऽसौ // इति स्त्यानर्द्धिनिद्रोदये प्रथममुदाहरणमिति // 1 // [(गाथा-अर्थ :) पुद्गल (मांस) व मोदक (का भक्षण), दन्त (का उखाड़ना), तथा कुम्हार (जैसी क्रिया) एवं बरगद के पेड़ की शाखा का तोड़ना (आदि) -ये स्त्यानर्द्ध निद्रा (में विद्यमान व्यक्ति) के (कुछ) उदाहरण हैं -यह जानना चाहिए।] व्याख्याः-स्त्यानर्द्धि निद्रा के उदय में विद्यमान व्यक्ति के ये पौदगल (मांसभक्षण) आदि उदाहरण यहां ज्ञातव्य हैं। जैसे (पौद्गल-मोदक इत्यादि)। इनमें आगमिक परिभाषा में 'पौद्गल' का अर्थ 'मांस' होता है। इस (से सम्बन्धित घटना) का उदाहरण इस प्रकार है (1) किसी गांव में कोई गृहस्थ (श्रावक) था। वह मांसलोभी था, अतः कच्चा, या पका कर, या तल कर, या केवल (किसी में मिश्रित न कर) या किसी झोलदार (रसदार) पदार्थ में मिला कर मांस खाया करता था। एक दिन गुणातिशयसम्पन्न (अनेक महान् गुणों से सम्पन्न) किन्हीं स्थविरों (मुनिराजों) द्वारा वह प्रतिबोधित होकर उसने (मुनि-) दीक्षा अंगीकार कर ली। एक ग्राम से दूसरे ग्राम विचरण करते हुए कभी उसने किसी प्रदेश में देखा कि कुछ मांसलोभी लोग एक भैंसे को काट रहे हैं। यह देखकर उस (भैंसे) के मांस को खाने की इच्छा उस (मुनि) के भी जागृत हो गई। आहार करते हुए, शौच क्रिया हेतु जाते हए, तथा अंतिम सूत्र पौरूषी, प्रतिक्रमण क्रिया व प्रादोषिक - (सांयकालीन) पौरूषी करते हुए भी उस (मुनि) की (उक्त) अभिलाषा बनी रही। अधिक क्या कहें? उसी अभिलाषा के साथ वह सो गया। उसके स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हो गया। उसके उदय में (नींद में ही) वह उठ कर ग्राम से बाहर भैंसों के झुण्ड में पहुंचा और किसी एक भैंसे को काट कर, उसके मांस को उसने खाया / उसने बचे हुए मांस को उपाश्रय में लाकर फेंक दिया और सो गया (लेट गया)। प्रातः जब वह उठा तो उसने 'मैंने इस तरह का स्वप्न देखा है' -इस प्रकार (कह कर) गुरु 1 ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 343 1