________________ मध्ये गत्वा तं हस्तिनं व्यापाद्य दन्तद्वयमुत्पाट्य स्वोपाश्रयद्वारे क्षिप्त्वा सुप्तः। प्रबुद्धेन च 'स्वप्नोऽयम्' इत्यालोचितम्। दन्तदर्शने च ज्ञातः स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयः। तथैव च लिङ्गं गृहीत्वा संघेन विसर्जितः॥३॥ फरुसगशब्देन समयप्रसिद्ध्या कुम्भकारोऽभिधीयते, तदुदाहरणं चतुर्थमुच्यते एकः कुम्भकारो महति गच्छे प्रव्रजितः। अन्यदा च सुप्तस्याऽस्य स्त्यानर्द्धिनिद्रोदयो जातः। ततोऽसौ पूर्वं यथा मृत्तिकापिण्डानत्रोटयत्, तथा तदभ्यासादेव साधूनां शिरांसि त्रोटयित्वा कबन्धैः सहैवैकान्ते उज्झाञ्चकार। ततः शेषाः केचन साधवोऽपसृताः। प्रभाते च ज्ञातं सम्यगेव सर्वं तच्चेष्टितम्। संघेन तथैव विसर्जितः॥४॥ अथ वटशाखाभञ्जनोदाहरणं पञ्चममुच्यते, यथा कोऽपि साधुामान्तराद् गोचरचर्यां विधाय प्रतिनिवृत्तः। स चौष्ण्याभिहतो भृतभाजनस्तृषितो बुभुक्षितश्छायार्थी मार्गस्थो वटवृक्षस्याऽधस्तादागच्छन्नतिनीचैर्वर्तिन्या तच्छाखया मस्तके घट्टितः, गाढं च परितापितः, अव्यवच्छिन्नकोपश्च प्रसुप्तः। स्त्यानर्द्धिनिद्रोदये जब उदय होता है, तब 'वज्रऋषभ नाराच' संहनन वाले व्यक्ति में केशव (वासुदेव, नारायण) का आधा बल आ जाता है- ऐसा आगम में कहा गया है। अतः उसने (नींद में ही जाकर) नगर के द्वार तोड दिये और नगर के मध्य जाकर उस हाथी को मार दिया। उसके दोनों दांतों को उखाड कर उन्हें अपने उपाश्रय के द्वार पर फेंक दिया और पुनः सो (लेट) गया। जब जागृत हुआ, तब 'यह स्वप्न था' ऐसी आलोचना की। (हाथी के पड़े हुए) दांतों को देख कर, उसे ज्ञात हो गया था कि मुझे स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हुआ था। उस (पूर्वोक्त उदाहरण के मुनि के) तरह ही, वेश छीन कर संघ ने उस (मुनि) को निकाल दिया // 3 // 'फरुसग' (यह प्राकृत (देशी) शब्द है जो) आगमिक क्षेत्र में 'कुम्हार' का वाचक है। उस (कुम्हार) का अब चौथा उदाहरण कह रहे हैं। वह इस प्रकार है __(4) एक कुम्हार (किसी) बड़े (मुनि-) संघ में दीक्षित हो गया। एक दिन जब वह सोया था, उसके स्त्यानर्द्धि निद्रा का उदय हो गया। तब, उस (कुम्हार) ने, जैसे वह पूर्व (गृहस्थ जीवन में) मिट्टी के पिण्डं तोड़ा करता था, वैसे ही उस (क्रिया) के अभ्यास के कारण, साधुओं के सिर फोड़ दिये, और कबन्धों (बिना सिर के, धड़ मात्र शवों) को एकान्त में रखकर छोड़ दिया। तब कुछ साधु (किसी तरह वहां से बच कर) निकल गये थे, उन्हें प्रातःकाल (उठने पर) उसके द्वारा किये गये समस्त कार्य (का रहस्य) समझ में आया। उसी (पूर्वोक्त उदाहरण की) तरह ही संघ ने उसे (भी) निकाल दिया 4 // अब पांचवां वटशाखा तोड़ने का उदाहरण कह रहे हैं। वह इस प्रकार है (5) कोई साधु किसी अन्य ग्राम से भिक्षाचर्या कर (भिक्षा लेकर) वापस लौटने लगा। (लौटते हुए) उसे गर्मी सता रही थी। हाथ में भिक्षा से भरा पात्र लिया हुआ था | प्यास व भूख भी उसे (सता रही) थी। मार्ग में चल रहे उसने चाहा कि कहीं छाया मिले। (तो वह) किसी वट वृक्ष के नीचे ----- विशेषावश्यक भाष्य --------345 EEN