Book Title: Visheshavashyak Bhashya Part 01
Author(s): Subhadramuni, Damodar Shastri
Publisher: Muni Mayaram Samodhi Prakashan

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Page 441
________________ प्रतिभासनात् कथं विशेषप्रतिभासः, येनाऽपायप्रसङ्गः स्यात्? इत्याह 'नणु इत्यादि'। नन्वित्यक्षमायां, परामन्त्रणे वा, ननु 'शब्दोऽयं नाशब्दः' इति विशेषोऽयं विशेषप्रतिभास एवाऽयमित्यर्थः। कथं पुनर्नाऽशब्द इति निश्चीयते?, इत्याह- न च रूपादिरिति, चशब्दो हिशब्दार्थे, आदिशब्दाद् गन्ध-रसस्पर्शपरिग्रहः। ततश्चेदमुक्तं भवति- यस्माद् न रूपादिरयम्, तेभ्यो व्यावृत्तत्वेन गृहीतत्वात्, अतो 'नाऽशब्दोऽयं' इति निश्चीयते, यदि तु रूपादिभ्योऽपि व्यावृत्तिर्गृहीता न स्यात्, तदा 'शब्दोऽयम्' इति निश्चयोऽपि न स्यादिति भावः। तस्मात् 'शब्दोऽयं नाशब्दः' इति विशेषप्रतिभास एवाऽयम्। तथा च सत्यस्याऽप्यपायप्रसङ्गतोऽवग्रहाभावप्रसङ्ग इति स्थितम्॥ इति गाथार्थः // 254 // अथ परोऽवग्रहाऽपाययोर्विषयविभागं दर्शयन्नाह थोवमियं नावाओ, संखाइविसेसणमवाउ त्ति। तब्भेयावेक्खाए, नणु थोवमिदं पि नावाओ॥२५५॥ [संस्कृतच्छाया:- स्तोकमिदं नापाय: शांखादिविशेषणमपाय इति / तद्भेदापेक्षायां ननु स्तोकमिदमपि नापायः॥] (असहनशीलता, तितिक्षा का अभाव) तथा पूर्वपक्षी (विरोधी) को आमंत्रित करने का सूचक है। अर्थात (उससे यह अभिप्राय व्यक्त हो रहा है कि) 'यह शब्द है, अशब्द नहीं यह ज्ञान तो 'विशेष' अर्थात् 'विशेषप्रतिभास' ही तो है। (अन्यथा, विशेष प्रतिभास नहीं मानें तो) “यह 'अशब्द' नहीं है' - यह निश्चय कैसे हो हो सकता था? इसी बात को कह रहे हैं- (न च रूपादिः इति)। 'च' का अर्थ हैचूंकि / आदि शब्द गंध, रस, स्पर्श का ग्रहण कराता है। इस प्रकार अर्थ (अभिप्राय) होगा- 'चूंकि यह रूप आदि नहीं है, उन (रूप आदि से यह व्यावृत्त) (पृथक्, भिन्न) है -इस रूप में गृहीत होता है, अतः ‘यह अशब्द नहीं है' -यह निश्चित होता है। किन्तु यदि रूप आदि से व्यावृत्ति (पार्थक्य, भिन्नता) गृहीत न हो, तो 'यह शब्द है'- यह निश्चय ही नहीं हो पाए। इसलिए 'यह शब्द है, अशब्द नहीं है' यह प्रतीति विशेष प्रतिभास ही है। ऐसी स्थिति में, इस ज्ञान के अपाय रूप होने से 'अवग्रह' का ही अभाव प्रसक्त (अर्थात् 'अवग्रह' के अभाव का संकट उपस्थित) हो जाता है- यह निश्चित है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 254 // - अब पूर्वपक्षी अवग्रह व अवाय (-इन दोनों) के (पृथक्-पृथक्) विषय-विभाग का निदर्शन करा रहा है // 255 // थोवमियं नावाओ, संखाइविसेसणमवाउ त्ति / तब्भेयावेक्खाए, नणु थोवमिदं पि नावाओ || [(गाथा-अर्थ :) यह ज्ञान स्तोक (अल्प विशेष का ग्राहक) होता है, अपाय नहीं होता। अपाय तो शंखीय आदि विशेषण से युक्त (यह शंखीय शब्द है- ऐसा) ज्ञान होता है। ---------- विशेषावश्यक भाष्य --- ---- 375

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