________________ इदमुक्तं भवति- 'न उण जाणइ के वेस सद्देत्ति'। अस्मिन् नन्दीसूत्रे 'न पुनर्जानाति कोऽप्येष शाङ्ख-शााद्यन्यतरः शब्दः' इति विशेषस्यैव अपरिज्ञानमुक्तम्, शब्दसामान्यग्रहणं त्वनुज्ञातमेव, तदग्रहणे तु क एष शब्दः, किं शाङ्घः शावा? इत्येवं विशेषस्यैवाऽपरिज्ञानमुक्तम्, शब्दसामान्यमात्रग्रहणं त्वनुज्ञातमेव, तदग्रहणे तु 'क एष शब्दः' किं शाङ्खः, शाङ्गों वा? इत्येवं विशेषमार्गणमसंगतमेव स्यात्, विशेषजिज्ञासाया: सामान्यज्ञानपूर्वकत्वात्, शब्दसामान्ये गृहीत एव तद्विशेषमार्गणस्य युज्यमानत्वात्॥ इति गाथार्थः // 260 // अत्रोत्तरमाह सव्वत्थ देसयंतो, सद्दो सद्दो त्ति भासओ भणइ। इहरा न समयमेत्ते, सद्दो त्ति विसेसणं जुत्तं // 261 // [संस्कृतच्छाया:- सर्वत्र देशयन् शब्दः शब्द इति भाषको भणति / इतरथा न समयमात्रे शब्द इति विशेषणं युक्तम्॥] सर्वत्र पूर्वस्मिन्, अत्र च सूत्रावयवे, अवग्रहस्वरूपं देशयन् प्ररूपयन् 'शब्दः शब्दः' इति भाषकः प्रज्ञापक एव वदति, न तु तत्र ज्ञाने शब्दप्रतिभासोऽस्ति। इत्थं चैतत्, अन्यथा न समयमात्रेऽर्थावग्रहकाले 'शब्दः' इति विशेषणं युक्तम्, आन्तर्मुहूर्तिकत्वाच्छब्दनिश्चयस्येति प्रागेवोक्तम्। सांव्यवहारिकाऽर्थावग्रहापेक्षं वा सूत्रमिदं व्याख्यास्यते, इति मा त्वरिष्ठाः॥ इति गाथार्थः॥२६१॥ तात्पर्य यह है- 'किन्तु वह यह नहीं जानता कि यह कौन-सा शब्द है' -इस नन्दीसूत्र (के कथन) में बताया गया है कि यह शब्द शंख का है या किसी अन्य का -इस प्रकार (शब्द-सम्बन्धी) विशेष के परिज्ञान का अभाव है, किन्तु शब्द-सामान्य मात्र का ग्रहण होना तो स्वीकारा (ही) गया है, क्योंकि उस (शब्द सामान्य) के ग्रहण न होने पर तो 'यह शब्द किसका है, क्या शंख का है या शृङ्गी (सींग से बने) वाद्य का' -इस प्रकार 'विशेष' की अन्वेषणा असंगत ही हो जाएगी, क्योंकि सामान्य ज्ञान पहले हो, तभी विशेष की जिज्ञासा होती है (अर्थात्) शब्द-सामान्य के ग्रहण होने पर ही उसके 'विशेष' की जिज्ञासा का होना युक्तियुक्त होता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 260 // अब, (पूर्वोक्त दोष का उत्तर (भाष्यकार) दे रहे हैं // 261 // सव्वत्थ देसयंतो, सद्दो सद्दो त्ति भासओ भणइ। इहरा न समयमेत्ते, सद्दो त्ति विसेसणं जुत्तं // [(गाथा-अर्थ :) (वस्तुतः तो ज्ञाता को) वहां 'शब्द' (विशेष बुद्धि के साथ, निश्चित रूप से) प्रतिभासित ही नहीं होता। अन्य रीति से विचार करें तो एक समय मात्र (काल के अर्थावग्रह) में 'शब्द' यह विशेषण ही युक्तियुक्त नहीं ठहरता।] ___ व्याख्याः - (सर्वत्र) सर्वत्र, अर्थात् पहले और प्रस्तुत सूत्र के अंशभूत (व्याख्यान) में, (अवग्रहस्वरूप की प्ररूपणा करते हुए 'शब्द-शब्द है' -इस प्रकार का (जो) कथन (है, वह) प्रवचनकार व MMS 382 --- --- विशेषावश्यक भाष्य