Book Title: Visheshavashyak Bhashya Part 01
Author(s): Subhadramuni, Damodar Shastri
Publisher: Muni Mayaram Samodhi Prakashan

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Page 453
________________ अर्थावग्रहे 'अर्थः' इत्यनेन तावद् विषयग्रहणमभिप्रेतं- रूपादिभेदेनाऽनिर्धारितस्याऽव्यक्तस्य शब्दादेविषयस्य ग्रहणं तत्राऽभिप्रेतमित्यर्थः। यदि च तस्मिन्नपि व्यञ्जनावग्रहेऽसावव्यक्तशब्दः प्रतिभासत इत्यभ्युपगम्यते, तदा न व्यञ्जनं नाम व्यञ्जनावग्रहो न प्राप्नोतीत्यर्थः। ततश्चेदानीं निवृत्ता तत्कथा, व्यञ्जनमात्रसम्बन्धस्यैव तत्रोक्त त्वात् , भवता च तदतिक्रान्तस्याऽ व्यक्तार्थग्रहणस्येहाभिधीयमानत्वादिति। तहव्यक्तार्थग्रहणे किमसौ स्यात्? इत्याह- अर्थावग्रह एवाऽसौ, अव्यक्तार्थावग्रहणात, ततश्च नास्ति व्यञ्जनं व्यञ्जनावग्रहः। अथाऽस्याऽपि सूत्रे प्रोक्तत्वादस्तित्वं न परिह्रियते, तर्हि द्वयोरप्यविशेष:- सोऽप्यर्थावग्रहः, सोऽपि व्यञ्जनावग्रहः प्राप्नोतीति भावः, मेचकमणिप्रभावत् संकरो वा स्यादित्थम् // इति गाथार्थः // 265 // तदेव व्यञ्जनावग्रहे व्यञ्जनसंबन्धमात्रमेव, अर्थावग्रह त्वव्यक्तशब्दाद्यर्थग्रहणं,न व्यक्तशब्दार्थसंवेदनम्, इति प्रतिपादितम्। सांप्रतमुपपत्त्यन्तरेणाऽप्यर्थावग्रहे व्यक्तशब्दाद्यर्थसंवेदनं निराचिकीर्षुराह व्याख्याः - अर्थावग्रह में 'अर्थ' पद का 'विषय-ग्रहण' अर्थ अभिप्रेत है, अर्थात् रूप आदि भेद का जहां निर्धारण नहीं हुआ हो -ऐसे अव्यक्त शब्द आदि विषयों का ग्रहण वहां अभिप्रेत (अभीष्ट) है। तात्पर्य यह है कि यदि उस व्यञ्जनावग्रह में भी यह अव्यक्त शब्द प्रतिभासित होता है -ऐसा माना जाये तो उसका व्यञ्जन (व्यञ्जनावग्रह) यह नाम ही (उपयुक्त) नहीं रहेगा। इसलिए इस सन्दर्भ में चर्चा यहीं समाप्त की जाती है, क्योंकि वहां व्यञ्जनमात्र सम्बन्ध होने का ही कथन है, और आप द्वारा भी उस व्यञ्जनावग्रह के हो चुकने के बाद अव्यक्त का ग्रहण न होना बताया गया है। (प्रश्न-) तो यदि अव्यक्त अर्थ का ग्रहण हो तो यह (व्यञ्जनावग्रह) क्या हो जाएगा? उत्तर दिया- वह 'अव्यक्त' अर्थ को ग्रहण करने के कारण 'अर्थावग्रह' ही हो जाएगा। इससे वह व्यञ्जन यानी व्यञ्जनावग्रह नहीं रहेगा। (पूर्वपक्ष-कथन-) इसका सूत्र में कथन होने से (व्यञ्जनावग्रह में भी) अव्यक्त अर्थ के ग्रहण होने का निषेध हम नहीं करते। (उत्तर-) (ऐसा मानना समीचीन नहीं होगा, क्योंकि) तब तो दोनों में भेद समाप्त हो जाएगा। तात्पर्य यह है कि वही अर्थावग्रह होगा और वही व्यअनावग्रह होगा -ऐसी स्थिति हो जाएगी। अथवा, इस तरह से मेचक (गहरी नीलवर्णी आभावाला रत्न) और मणि-प्रभा की तरह (अर्थात् इन दोनों को पास-पास रखें तो दोनों में एक दूसरे का भान होने लगता है, उसी तरह) इन दोनों (व्यञ्जनावग्रह व अर्थावग्रह में) सांकर्य दोष प्रसक्त होगा (एक में दूसरे का भान होने लगेगा) // यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 265 // इस प्रकार व्यञ्जनावग्रह में व्यञ्जन, सम्बन्ध मात्र होता है, अर्थावग्रह में अव्यक्त शब्द आदि वस्तु का ग्रहण होता है, किन्तु वहां व्यक्त शब्द आदि पदार्थों का संवेदन नहीं होता -यह प्रतिपादित किया गया। अब, अन्य युक्ति से भी, अर्थावग्रह में व्यक्त शब्द. आदि अर्थों के संवेदन होने का निराकरण करने हेतु (भाष्यकार) कह रहे हैं Ma ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 387

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