________________ [संस्कृतच्छाया:- अन्ये सामान्यग्रहणमाहुः बालस्य जातमात्रस्य / समये एव परिचितविषयस्य विशेषविज्ञानम् // ] अन्ये वादिनः केचिदेवमाहः- यदेतत्सर्वविशेषमखस्याव्यक्तस्य सामान्यमात्रस्य वस्तुनो ग्रहणमालोचनं, तद् बालस्य शिशोस्तत्क्षणजातमात्रस्य भवति, नात्र विप्रतिपत्तिः, अव्यक्तो ह्यसौ संकेतादिविकलोऽपरिचितविषयः। यस्तर्हि परिचितविषयः, तस्य किम्?, इत्याह- समय एवाऽऽद्यशब्दश्रवणसमय एव विशेषविज्ञानं जायते, स्पष्टत्वात् तस्य। ततश्चाऽमुमाश्रित्य 'तेण सद्दे त्ति उग्गहिए' इत्यादि यथाश्रुतमेव व्याख्यायते, न कश्चिद् दोष इति भावः // इति गाथार्थः॥२६८ // अत्रोत्तरमाह तदवत्थमेव तं पुव्वदोसओ तम्मि चेव वा समए। संख-महुराइसुबहुयविसेसगहणं पसज्जेज्जा॥२६९॥ [संस्कृतच्छाया:- तदवस्थमेव तत् पूर्वदोषतः तस्मिन्नेव वा समये। शाख-मधुरादिसुबहुकविशेषग्रहणं प्रसज्ज्येत // ] 'जेणत्थोग्गहकाले' इत्यादिना ग्रन्थेन 'सामण्ण-तयण्णविसेसेहा' इत्यादिना च ग्रन्थेन यद् दूषितं या तस्यावस्था यत् तस्य स्वरूपम्- 'समयम्मि चेव परिचियविसयस्स विसेसविन्नाणं' इति, तदेतत्परोक्तमपि तदवस्थमेव, न पुनः [(गाथा-अर्थ :) (कुछ) अन्य (वादी) कहते हैं कि तत्क्षण उत्पन्न बालक को 'सामान्य' ग्रहण होता है, किन्तु परिचित विषय वाले व्यक्ति को (तो) समय मात्र में ही 'विशेष' -ज्ञान हो जाता है।] व्याख्याः- दूसरे वादी तो ऐसा कहते हैं -यह जो समस्त विशेषों से रहित, अव्यक्त सामान्य मात्र वस्तु का ग्रहण-'आलोचन' है, वह तो तत्क्षण उत्पन्न बालक या शिशु को होता है -इसमें कोई विवाद नहीं, क्योंकि वह 'अव्यक्त' संकेत आदि से रहित, एवं 'अपरिचित विषय' होता है। किन्तु जो 'परिचितविषय' होता है, उसका (अर्थग्रहण) किस प्रकार का होता है? उत्तर दिया- एक समय में ही, प्रथम शब्द-श्रवण के समय ही, विशेष-विज्ञान हो जाता है, क्योंकि वह स्पष्ट होता है, इसलिए इस मान्यता का आश्रयण कर 'उसने शब्द का अवग्रह किया' इत्यादि व्याख्यान आगमानुरूप ही है, और कोई दोष भी नहीं रह जाता है -यह तात्पर्य है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 268 // अब (वादी के पूर्वोक्त मत का) उत्तर दे रहे हैं // 269 // तदवत्थमेव तं पुव्वदोसओ तम्मि चेव वा समए / संख-महुराइसुबहुयविसेसगहणं पसज्जेज्जा // . [(गाथा-अर्थ :) पूर्वोक्त दोषों के कारण (अन्य वादी का उक्त कथन भी) उसी तरह (अयुक्तियुक्त) है। (दूसरी बात, उक्त रीति से तो) उसी एक ही समय में शङ्ख का होना, मधुर होना आदि बहुत से विशेषों का ग्रहण प्रसक्त होने लगेगा।] व्याख्याः- 'चूंकि अर्थावग्रह के समय में' इत्यादि तथा 'सामान्य तदन्यविशेष-ईहा' इत्यादि पूर्व ग्रन्थ (में 266-267 गाथाओं) द्वारा जो दोष हमने प्रदर्शित किये हैं, उसके कारण पूर्वपक्ष के ---------- विशेषावश्यक भाष्य - - - - - - -- 391 - -