________________ यदि नाम निश्चयज्ञानात् पूर्वमीहा सिद्धा, ततः किम्?, इत्याह किं तं पुव्वं गहियं, जमीहओ सद्द एव विण्णाणं। अह पुव्वं सामण्णं, जमीहमाणस्स सद्दो त्ति // 258 // [संस्कृतच्छाया:- किं तत् पूर्व गृहीतं यदीहमानस्य शब्द एव विज्ञानम् / अथ पूर्व सामान्यं यदीहमानस्य शब्द इति // ] हन्त! यदि निश्चयज्ञानमीहापूर्वकं त्वयाऽभ्युपगम्यते, तर्हि प्रष्टव्योऽसि- नन्वीहायाः पूर्वं किं तद् वस्तु प्रमात्रा गृहीतम्, यदीदहमानस्य तस्य 'शब्द एवाऽयम्' इति निश्चयज्ञानमुपजायते?, न हि कश्चिद् वस्तुन्यगृहीतेऽकस्मात् प्रथमत एवेहां कुरुत इति भावः। क्षुभितस्य परस्योत्तरप्रदानासामर्थ्यमालोक्य स्वयमेव तन्मतमाशङ्कते-अथ ब्रूयात् पर:- सामान्यं नाम-जात्यादिकल्पनारहितं वस्तुमात्रमीहायाः पूर्वं गृहीतं, यदीहमानस्य 'शब्दः' इति निश्चयज्ञानमुत्पद्यते॥ इति गाथार्थः // 258 // यदि निश्चय ज्ञान से पूर्व 'ईहा' का सद्भाव सिद्ध हो गया तो इससे फलित क्या हुआ? इस (प्रश्न के समाधान के) लिए भाष्यकार कह रहे हैं // 258 // .' किं तं पुव्वं गहियं, जमीहओ सद्द एव विण्णाणं / अह पुव्वं सामण्णं, जमीहमाणस्स सद्दो त्ति // ' [(गाथा-अर्थ :) (आप कृपया यह बताएं कि ईहा से) पूर्व में जिसका ग्रहण हुआ, वह क्या है जिसकी ईहा करते हुए व्यक्ति को 'यह शब्द ही है' यह विज्ञान उत्पन्न होता है? (पूर्वपक्ष की ओर से सम्भावित उत्तर-) पूर्व में 'सामान्य' (मात्र वस्तु) गृहीत होती है, जिसकी ईहा करते हुए व्यक्ति को 'यह शब्द है' -यह (विज्ञान) होता है।] ... व्याख्याः - आपकी बुद्धि पर तरस आ रहा है! यदि ईहा पूर्वक निश्चय ज्ञान का होना आप स्वीकार करते हैं तो आपसे हमारा यह पूछना है कि ज्ञाता ने ईहा से पूर्व किस वस्तु का ग्रहण किया है जिसकी ईहा करते हुए व्यक्ति (ज्ञाता) को 'यह शब्द ही है' यह निश्चय ज्ञान उत्पन्न होता है? तात्पर्य यह है कि किसी गृहीत वस्तु में ही कोई अकस्मात् प्रथमतया ईहा करता है (न कि अगृहीत वस्तु में)। (इस प्रश्न पर पूर्वपक्ष के) क्षुब्ध होने और उत्तर देने में असमर्थता को देखकर (भाष्यकार) स्वयं ही पूर्वपक्ष की ओर से विचार की आशंका (सम्भावना) को उपस्थापित कर रहे हैं- (अथ ब्रूयात् परः)। चलो, मान लिया कि (हमारे प्रश्न का समाधान) आप इस प्रकार कहें कि ईहा से पूर्व जो गृहीत होती है, वह मात्र 'सामान्य' यानी नाम-जाति आदि कल्पना से शून्य वस्तु होती है, जिसकी ईहा करते हुए 'यह शब्द है' -यह निश्चय ज्ञान उत्पन्न हो जाता है| यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ॥२५८॥ ---------- विशेषावश्यक भाष्य ---- ---- 379 -