________________ तदेवं स्वामि-काल-कारणादिभिरभेदेऽपि लक्षण-भेद-हेतुफलभावादिभिर्मति-श्रुतयोर्विस्तरतो भेदमभिधायोपसंहरन्नाह मइसुयनाणविसेसो भणिओ तल्लक्खणाइभेएणं॥ पुव्वं आभिणिबोहियमुद्दिष्टुं तं परूवेस्सं // 176 // [संस्कृतच्छाया:- मतिश्रुतज्ञानविशेषो भणितः तल्लक्षणादिभेदेन। पूर्वमाभिनिबोधिकमुद्दिष्टं तत् प्ररूपयिष्ये॥] मति-श्रुतज्ञानयोर्विशेषो भेदो भणितः। केन? इत्याह- तयोर्लक्षणादिभिर्भेदः, अथवा स चासौ अनन्तरोक्तो लक्षणादिभेदश्च तल्लक्षणादिभेदस्तेन / सांप्रतं त्वाभिनिबोधिकज्ञानं प्ररूपयिष्ये विस्तरतो व्याख्यास्यामि। शेषश्रतादिपरिहारेण किमित्याभिनिबोधिकं प्रथमं प्ररूप्यते? इत्याह- यस्माज्ज्ञानपञ्चके पूर्वमादौ तदुद्दिष्टमुपन्यस्तम्, तस्माद् "यथोद्देशं निर्देशः" इति कृत्वा तत् प्रथमं व्याख्यास्यामि // इति गाथार्थः॥ 176 // (आभिनिबोधिक ज्ञान के निरूपण की प्रस्तावना) ___इस प्रकार, मति व श्रुत में (उनके) स्वामी, काल व कारण आदि दृष्टियों से भेद न होने पर भी, लक्षण-भेद तथा हेतु-फल भाव आदि दृष्टियों से इनमें भेद है- इस तथ्य को विस्तार से प्रतिपादन करने के बाद, उपसंहार रूप में कह रहे हैं (176) मइसुयनाणविसेसो भणिओ तल्लक्खणाइभेएणं / / पुव्वं आभिणिबोहियमुद्दिठें तं परूवेस्सं // [(गाथा-अर्थ :) लक्षण आदि भेद के आधार पर मति व श्रुत-इन (दोनों ज्ञानों) में (परस्पर) अन्तर बता दिया गया। (अब,) पूर्व में उद्दिष्ट जो आभिनिबोधिक ज्ञान है, उसका निरूपण करूंगा।] व्याख्याः- (यहां तक) मति व श्रुत ज्ञान -इन दोनों का अन्तर बताया गया। (प्रश्न-)किस तरह? (उत्तर-) उनके लक्षण आदि भेद का निरूपण करते हुए। अथवा मति व श्रुत ज्ञान (इन दोनों का) और (साथ ही) अभी अभी कहे गए (उनके) लक्षण आदि भेद का निरूपण करते हुए। अब तो मैं आभिनिबोधिक ज्ञान का विस्तार से व्याख्यान करूंगा। शेष श्रुत आदि ज्ञान (के व्याख्यान) को छोड़ कर, आभिनिबोधिक ज्ञान की प्ररूपणा पहले क्यों की जा रही है? उत्तर है- चूंकि पांचों ज्ञानों में उसी का प्रथमतः निर्देश पहले किया गया है। इसलिए 'उद्देश के अनुरूप ही निर्देश करना चाहिए' -इस दृष्टि से उस (आभिनिबोधिक ज्ञान) का ही व्याख्यान करूंगा। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 176 // Mar 258 -------- विशेषावश्यक भाष्य ---- -----