________________ स्वप्ने क्रिया मेरुगमनादिका, अध्वश्रम-कुसुमपरिमलादीनि क्रियाफलानि च, इत्येतद्वयमस्माभिः प्रागुक्तयुक्तेःसत्यतया निषिद्धम् // इति गाथार्थः॥२३१॥ तर्हि किं तत्, यत् स्वप्ने भवद्भिर्न निषिध्यते?, इत्याह वण्णाणं तप्फलं च सि सिमिणयनिमित्तभावं फलं च तं को निवारेइ?॥२३२॥ [संस्कृतच्छाया:- यत् पुनर्विज्ञानं तत्फलं च स्वप्ने विबुद्धमात्रस्य / स्वप्नकनिमित्तभावं फलं च तत् को निवारयति॥] यत्पुनः स्वप्ने जिनस्नात्रदर्शनादिकं विज्ञानं, यच्च स्वप्ने विबुद्धमात्रस्य च हर्षादिकं तत्फलं, तदनुभवादिसिद्धत्वात्को निवारयति?, तथा, यो भविष्यत्फलापेक्षया स्वप्नस्य निमित्तभावः स्वप्ननिमित्तभावस्तं च को वा निवारयति?, यच्च तस्मात् स्वप्ननिमित्तादवश्यंभावि भविष्यत्फलं तदपि को निवारयति?। यदेव हि मेरुगमनक्रियादिकं युक्त्या नोपपद्यते तदेव निषिध्यते, न त्वेतानि विज्ञानादीनि, युक्त्युपपन्नत्वात्। न चैतैरभ्युपगतैरपि मनसः प्राप्यकारिता काचित् सिध्यतीति भावः॥ इति गाथार्थः // 232 // बता रहा है कि (शंकाकार का) यह उपालम्भ अयुक्तियुक्त (ही) है, क्योंकि हम स्वप्न की सत्यता का सर्वथा निषेध तो नहीं करते। (प्रश्न-) तो किस बात का निषेध कर रहे हैं? उत्तर दिया- (स्वप्ने क्रिया)। स्वप्न में मेरु-गमन आदि जो क्रिया होती है, और शारीरिक थकान, फूलों की सुगन्ध आदि क्रिया का फल -इन दोनों की सत्यता का हम पूर्वोक्त रीति से निषेध करते हैं। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 231 // (स्वप्न की घटना भावी फल की निमित्त) तो फिर वह क्या है जिसका आप स्वप्न में होने का निषेध करते हैं? अब (पूर्वपक्षी की इस आशंका को मन में रख कर) भाष्यकार कह रहे हैं // 232 // .' जं पुण विण्णाणं तप्फलं च सिमिणे विबुद्धमेत्तस्स। ....... सिमिणयनिमित्तभावं फलं च तं को निवारेइ? | [(गाथा-अर्थ :) स्वप्न में जो विज्ञान (अनुभूति) होती है उसका, और जागते ही उसका जो फल है, उसका, और (इसके अतिरिक्त) स्वप्न के निमित्त से होने वाला भावी फल -इन (तीनों) का कौन निषेध करता है?] व्याख्याः- फिर स्वप्न में जिनेन्द्र के स्नान की क्रिया के देखने आदि का जो विज्ञान (अनुभव) होता है, और स्वप्न से जागते ही जो हर्ष आदि फल होते हैं, वे तो अनुभव आदि से सिद्ध ही हैं, अतः उनका निषेध कौन करता है? और जो भावी फल की अपेक्षा से स्वप्न का (उस फल के प्रति जो) निमित्तपना है, उसका (भी) कौन निषेध करता है? और उस स्वप्न रूपी निमित्त से जो भावी फल अवश्य घटित होता है, उसका भी कौन निषेध करता है? किन्तु जो (स्वप्न में अनुभूत) मेरुममन आदि क्रियाएं युक्ति-संगत नहीं होतीं, उन्हीं का हम निषेध करते हैं, न कि इन युक्तिसंगत a ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 339 र