________________ किमिति पुनः स्वप्नस्य निमित्तभावो न निवार्यते?, इत्याशक्याह देहप्फुरणं सहसोइयं च सिमिणो य काइयाईणि। सगयाई निमित्ताई सुभासुभफलं निवेएंति // 233 // [संस्कृतच्छाया:- देहस्फुरणं सहसोदितं च स्वप्नश्च कायिकादीनि। स्वगतानि निमित्तानि शुभाशुभफलं निवेदयन्ति // ] स्वस्मिन्नात्मनि गतानि स्थितानि स्वगतानि निमित्तानि, एतानि शास्त्रे, लोकेऽपि च प्रसिद्धानि भविष्यच्छुभाशुभफलं निवेदयन्ति। कानि पुनस्तानि?, इत्याह- कायिकम्, आदिशब्दाद् वाचिकं, मानसं च। एतान्येव क्रमेण दर्शयति- कायिकं बाह्यादौ देहस्फुरणं भविष्यच्छुभाशुभफलं निवेदयति, वाचिकं तु सहसोदितं-सहसाऽकस्मादेवोदितं सहसोदितं सहसैव तत् किमपि वदत आगच्छति यत् भविष्यच्छुभाऽशुभफलमावेदयति, मानसं तु निमित्तं स्वप्ने, इत्येतानि को निवारयति?, लोक-शास्त्रप्रसिद्धस्य, युक्त्युपपन्नस्य च निषेधुमशक्यत्वात् // इति गाथार्थः // 233 // विज्ञान आदि का। किन्तु इनका सद्भाव स्वीकार करने पर भी मन की कोई प्राप्यकारिता सिद्ध नहीं होती -यह तात्पर्य है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 232 // तो आप (घटित होने वाले शुभ-अशुभ फलों में) स्वप्न के निमित्तपने का निषेध आखिर क्यों नहीं करते? (पूर्वपक्षी की ओर से प्रस्तुत) इस आशंका को दृष्टि में रख कर (भाष्यकार स्व-मत का) कथन कर रहे हैं // 233 // देहप्फुरणं सहसोइयं च सिमिणो य काइयाईणि। , सगयाइं निमित्ताइं सुभासुभफलं निवेएंति || [(गाथा-अर्थ :) देह-स्फुरण (शरीर के किसी अङ्ग का फड़कना), अकस्मात् (मुख से) निकले वचन, एवं स्वप्न -ये कायिक (वाचिक व मानसिक) आदि स्वगत (स्वतः प्रादुर्भूत) निमित्त (भावी) शुभ-अशुभ फलों के सूचक होते (देखे जाते) हैं।] . व्याख्या:- अपने में, स्वयं में (बिना किसी अन्य प्रेरक के) होने वाले (कुछ) निमित्त (चिन्ह), जो शास्त्र व लोक में भी प्रसिद्ध हैं, भावी शुभ-अशुभ फलों की सूचना देते हैं। वे (निमित्त) कौन-कौन से हैं? उत्तर दिया- (कायिकादीनि)। कायिक आदि (निमित्त होते हैं)। 'आदि' पद से वाचिक व मानसिक का भी ग्रहण यहां अभीष्ट है। इन्हीं को क्रमशः (भाष्यकार) बता रहे हैं- बाहु आदि में देह (के किसी भाग) का स्फुरित होना कायिक (निमित्त) भावी शुभ-अशुभ फल की सूचना देता है। (इसी प्रकार,) सहसा, अकस्मात् ही, बोलते-बोलते कुछ (असम्बद्ध, अप्रासंगिक रूप में) उच्चरित हो जाना है, वह भी भावी शुभ-अशुभ फल की सूचना देता है। इन सब (कायिक आदि निमित्तों) का कौन निषेध करता हैं? क्योंकि जो लोक व शास्त्र में प्रसिद्ध हों तथा जो युक्तिसंगत हों, उनका निषेध तो (कभी) किया नहीं जा सकता // यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 233 // Ma 340 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----