________________ नाणुग्गहोवघायाभावाओ लोयणं व, सो इहरा। तोय-जलणाइचिन्तणकाले जुजेज दोहिं पि॥२१४॥ [संस्कृतच्छाया:- न, अनुग्रहोपघाताभावाद् लोचनमिव, तदितरथा। तोयज्वलनादिचिन्तनमात्रे युज्येत द्वाभ्यामपि॥] न 'ज्ञेयेन सह संपृच्यते मनः' इति गम्यते / कुतः?, इत्याह- 'अणुग्गहोवघायाभावाउत्ति'। ज्ञेयकृतानुग्रहोपघाताभावात्, लोचनवत् / यदि तस्य ज्ञेयेन सह संपर्कः स्यात् तदा किं स्यात्?, इत्याह- 'सो इहर त्ति'। तद् मन इतरथा- ज्ञेयसम्पर्केऽभ्युपगम्यमाने, तोयज्वलनादिविषयचिन्तनकाले द्वाभ्यामप्यनुग्रहोपघाताभ्यां युज्येत- तोय-चन्दनादिचिन्तनकाले शैत्याद्यनुभवनेन स्पर्शनवदनुगृह्येत, दहन-विष-शस्त्रादिचिन्तनसमये तु तद्वदेवोपहन्येतेति भावः, न चैवम्। तस्माल्लोचनवदप्राप्यकार्येव मनः॥ इति गाथार्थः // 214 // किञ्च, मनसः प्राप्यकारितावादिनः प्रष्टव्याः। किम्?, इत्याह दव्वं भावमणो वा वएज जीवो य होइ भावमणो। देहव्वावित्तणओ न देहबाहिं तओ जुत्तो॥२१५॥ // 214 // नाणुग्गहोवघायाभावाओ लोयणं व, सो इहरा। तोय-जलणाइचिन्तणकाले जुज्जेज्ज दोहिं पि // [(गाथा-अर्थ :) वह (मन) नेत्र की तरह (ही अप्राप्यकारी है, क्योंकि उसमें विषय-कृत) अनुग्रह-उपघात नहीं होते, अन्यथा (मन को प्राप्यकारी मानें तो) जल, अग्नि आदि से सम्बन्धित चिन्तन करते हुए मन में दोनों (अनुग्रह व उपघात) होने चाहिएं (किन्तु होते नहीं, अतः मन प्राप्यकारी नहीं हो सकता)।] . व्याख्याः- 'ज्ञेय पदार्थ के साथ मन (जाकर) सम्बद्ध होता है'- ऐसा प्रतीत नहीं होता। (प्रश्न-) किस कारण (अर्थात्, किस तर्क या युक्ति के आधार) से? उत्तर दिया- (तद् इतरथा)। यदि ऐसा माने कि मन ज्ञेय के सम्पर्क में आता है, तो जल, अग्नि विषयों को चिन्तन करते समय वह दोनों- अनुग्रह व उपघात से युक्त होता (वह युक्त नहीं होता, अतः मन प्राप्यकारी नहीं है)। तात्पर्य यह है कि जल, चन्द्र आदि का चिन्तन करते समय शैत्य (ठंडक) का अनुभव कर 'अनुगृहीत' होता, और अग्नि, विष व शस्त्र आदि का चिन्तन करते समय उसी तरह उपघात से 'उपहत' होता। किन्तु ऐसा होता नहीं। इसलिए नेत्र की तरह ही मन (भी) अप्राप्यकारी ही है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 214 // . और, मन की प्राप्यकारिता को जो मानते हैं, उनसे हमारा प्रश्न है। वह क्या है? इसे (भाष्यकार) बता रहे हैं // 215 // दव्वं भावमणो वा वएज्ज जीवो य होइ भावमणो। देहव्वावित्तणओ न देहबाहिं तओ जुत्तो // ----- विशेषावश्यक भाष्य --- ---- 313