________________ अथ स्वप्नानुभूतक्रियाफलं जाग्रदवस्थायामपि परो दर्शयन्नाह__सिमिणे वि सुरयसंगमकिरियासंजणियवंजणविसग्गो। पडिबुद्धस्स वि कस्सइ दीसइ सिमिणाणुभूयफलं // 228 // [संस्कृतच्छायाः- स्वप्नेऽपि सुरत-संगमक्रियासंजनितव्यञ्जनविसर्गः।प्रतिबुद्धस्यापि कस्यचिद् दृश्यते स्वप्नानुभूतफलम्॥] स्वप्नेऽपि सुरतार्थं सुरतार्था याऽसौ कामिनः कामिनीजनेन, कामिन्या वा कामिजनेन सह संगमक्रिया तत्संजनितो व्यञ्जनस्य शक्रपदगलसंघातस्य विसर्गो निसर्ग:स्वप्नानुभूतसुरतसंगमक्रियाफलरूपः प्रतिबद्धस्याऽपि कस्यचित् प्रत्यक्ष एव दृश्यते, तद्दर्शनाच्च स्वप्ने योषित्संगमक्रियाऽनुमीयते। तथाहि- यत्र व्यञ्जनविसर्गस्तत्र योषित्संगमेनापि भवितव्यम्, यथा वासभवनादौ, तथा च स्वप्ने, ततोऽत्रापि योषित्प्राप्त्या भवितव्यम्, इति कथं न प्राप्तकारिता मनसः? इति भावः॥ इति गाथार्थः॥२२८॥ जलप्रवेश या अग्निप्रवेश से गीला होना या शरीर-दाह होने आदि का ग्रहण अभिप्रेत है। भोजनादि क्रियाओं के उक्त तृप्ति आदि फल अगर स्वप्नविज्ञान से (जनित) होते हों, तब तो मन की विषयस्पृष्टता रूप अप्राप्यकारिता संगत हो सकती है, किन्तु वे (क्रियाफल फलित) नहीं होते, क्योंकि (जागे व्यक्ति में) इनकी उपलब्धि होती ही नहीं // यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 227 // अब, पूर्वोक्त कथन के विरोध में पूर्वपक्षी की ओर से यह बताया जा रहा है कि 'स्वप्न में अनुभूत क्रिया के फल का जागृत अवस्था में भी सद्भाव है' // 228 // सिमिणे वि सुरयसंगमकिरियासंजणियवंजणविसग्गो। पडिबुद्धस्स वि कस्सइ दीसइ सिमिणाणुभूयफलं // [(गाथा-अर्थ :) स्वप्न में भी हुई सुरतरूप संगम-क्रिया के कारण किसी-किसी जागृत व्यक्ति के भी वीर्य-क्षरण का होना दृष्टिगोचर होता है जो स्वप्नानुभूति का फल (ही तो) है (तब आप जागृत अवस्था. में क्रियाफल का अभाव कैसे बता रहे हैं- ऐसा पूर्वपक्ष का कथन है)।] . व्याख्याः- स्वप्न में भी सुरत (-सुख) हेतु कामुक पुरुष की कामिनी-जन के साथ या कामिनी की कामीजन के साथ जो संगम-क्रिया होती है, उसी के कारण, किसी-किसी (नींद से) जागे व्यक्ति में व्यञ्जन यानी वीर्य रूप पुद्गल-समूह का क्षरण भी होता है, और स्वप्न में अनुभूत सुरत-संगम क्रिया का यह प्रत्यक्ष फल दृष्टिगोचर होता (ही) है, उसके दर्शन के आधार पर स्वप्न में किसी स्त्री के साथ संगम-क्रिया के होने का अनुमान होता है। जैसे- जहां वीर्य-क्षरण हुआ है तो वहां स्त्री-संगम भी होना चाहिए। तात्पर्य यह है कि (जैसे यह अनुमान) निवास-गृह आदि में (सत्य होता) है, उसी तरह स्वप्न में भी (सत्य) होना चाहिए। इसलिए यहां (स्वप्न में) भी यह मानना पड़ेगा कि स्त्री-स्पर्श हुआ है। इस प्रकार, मन की प्राप्यकारिता कैसे (मान्य) नहीं है? यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 228 // ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 335 र