________________ न सिमिणविण्णाणाओ हरिस-विसासादयो विरुझंति। किरियाफलं तु तित्ती-मद-वह-बंधादओ नत्थि // 227 // [संस्कृतच्छाया:-न स्वप्नविज्ञानात् हर्षविषादादयो विरुद्धयन्ते। क्रियाफलं तु तृप्ति-मद-वध-बन्धादयो न सन्ति // ] स्वप्ने सुखानुभवादिविषयं विज्ञानं स्वप्नविज्ञानं तस्मादुत्पद्यमाना हर्ष-विषादादयो न विरुध्यन्ते-न तान् वयं निवारयामः, जाग्रदवस्थाविज्ञानहर्षादिवत्। तथाहि- दृश्यन्ते जाग्रदवस्थायां केचित् स्वमुत्प्रेक्षितसुखानुभवादिज्ञानाद् हृष्यन्तः, द्विषन्तो वा। ततश्च .. दृष्टस्य निषेद्धमशक्यत्वात् स्वप्नविज्ञानादपि नैतन्निषेधं ब्रूमः। तर्हि किमुच्यते भवद्भिः?, इत्याह-'किरियेत्यादि / क्रिया भोजनादिका तस्याः फलं तृप्त्यादिकं तत् पुनःस्वप्नविज्ञानाद् नास्त्येव, इति ब्रूमः। तदेव क्रियाफलं दर्शयति- 'तित्तीत्यादि / तत्र तृप्तिर्बुभुक्षाद्युपरमलक्षणा, मदः सुरापानादिजनितविक्रियारूपः, वधः शिरश्छेदादिसमुद्भूतपीडास्वरूपः, बन्धो निगडादिनियन्त्रणस्वभावः, आदिशब्दाज्जलज्वलनादिप्रवेशात् क्लेददाहादिपरिग्रहः। यदि ह्येतत् तृप्त्यादिकं भोजनादिक्रियाफलं स्वप्नविज्ञानाद् भवेत्, तदा विषयप्राप्तिरूपा प्राप्यकारिता मनसो युज्येत, न चैतदस्ति, तथोपलम्भस्यैवाभावात् // इति गाथार्थः // 227 // // 227 // न सिमिणविण्णाणाओ हरिस-विसासादयो विरुज्झंति। किरियाफलं तु तित्ती-मद-वह-बंधादओ नत्थि // [(गाथा-अर्थ :) स्वप्नविज्ञान (स्वप्न में की जाने वाली मनःकल्पित अनुभूति) से होने वाले हर्ष व विषाद आदि का हम विरोध नहीं करते। किन्तु (हमारा तो कहना यह है कि स्वप्न में हुई भोजनादि) क्रिया के तृप्ति, मद (नशा), वध, बन्ध आदि परिणामों का (जागे व्यक्ति में) सद्भाव नहीं होता।] व्याख्याः- स्वप्न में सुख अनुभव आदि विषयक विज्ञान (अनुभूति) ही 'स्वप्नविज्ञान' है। उस (स्वप्नविज्ञान) से हर्ष व विषाद आदि के होने का हम विरोध नहीं कर रहे हैं, (अर्थात्) जागृत अवस्था के विज्ञान से सम्बन्धित हर्ष आदि की तरह ही हम उनका निषेध नहीं कर रहे हैं। और, जागृत अवस्था में (भी) स्वतःकल्पित (उत्प्रेक्षित) सुख के अनुभव आदि ज्ञान से कई लोग हर्षित या द्वेषयुक्त होते हुए देखे जा (सक)ते हैं। इसलिए जो दृष्ट (प्रत्यक्ष) है, उसका निषेध नहीं किया जा सकता, अतः स्वप्नविज्ञान से भी उनके होने का निषेध हम नहीं कर रहे हैं। (प्रश्न-) तब आप क्या कह(ना चाह) रहे हैं? उत्तर दे रहे हैं- (क्रियाफलं तु- इत्यादि)। स्वप्न में की जाने वाली भोजनादिक क्रियाएं, उसके फल- तृप्ति आदि, वे स्वप्न विज्ञान से नहीं होते -ऐसा हमारा कहना है। उसी क्रिया-फलों का निदर्शन कर रहे हैं- ('तृप्ति-मद' इत्यादि)। तृप्ति यानी भूख आदि की शांति / मद अर्थात् (स्वप्न में किये गये) मदिरा-पान आदि से होने वाला शारीरिक विकार। वध अर्थात् (स्वप्न में अनुभूत) शिरश्छेद (अपने मस्तक का कट जाना) आदि से होने वाली पीड़ा। बन्ध अर्थात् (स्वप्न में) बेड़ी से बंधना आदि (की क्रिया से युक्त होना)। 'आदि' शब्द से (स्वप्न में हुए) SA 334 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------