________________ कदम्बकुसुमगोलकाकारमांसखण्डादिरूपाया अन्तर्निर्वृत्तेः शब्दादिविषयपरिच्छेदहेतुर्यः शक्तिविशेषः स उपकरणेन्द्रियम्, शब्दादिश्च , श्रोत्रादीन्द्रियाणां विषयः, आदिशब्दाद् रस-गन्ध-स्पर्शपरिग्रहः, तद्भावेन परिणतानि च तानि भाषावर्गणादिसंबन्धीनि द्रव्याणि च शब्दादिपरिणतद्रव्याणि, उपकरणेन्द्रियं च शब्दादिपरिणतद्रव्याणि च, तेषां परस्परं संबन्ध उपकरणेन्द्रिय-शब्दादिपरिणतद्रव्यसंबन्धः, एष तावद् व्यञ्जनमुच्यते। अपरं चेन्द्रियेणाऽप्यर्थस्य व्यज्यमानत्वात् तदपि व्यञ्जनमुच्यते। तथा शब्दादिपरिणतद्रव्यनिकुरम्बमपि व्यज्यमानत्वाद् व्यञ्जनमभिधीयत इति / एवमुपलक्षणव्याख्यानात् त्रितयमपि यथोक्तं व्यञ्जनमवगन्तव्यम्। ततश्चेन्द्रियलक्षणेन व्यञ्जनेन शब्दादिपरिणतद्रव्यसंबन्धस्वरूपस्य व्यञ्जनस्याऽवग्रहो व्यञ्जनावग्रहः, अथवा तेनैव व्यञ्जनेन शब्दादिपरिणतद्रव्यात्मकानां व्यञ्जनानामवग्रहो व्यञ्जनावग्रहः; इत्युभयत्राऽप्येकस्य व्यञ्जनशब्दस्य लोपं कृत्वा समासः॥ इति. गाथार्थः॥१९४॥ क्रमशः अन्तर्निर्वृत्ति (आन्तरिक बनावट) हैं। कर्णशष्कुली (कान की झिल्ली) आदि जो रचनाएं हैं, वह तो बाह्यनिर्वृत्ति (बाह्य बनावट) है। इनमें कदम्बकुसुमगोलक की आकृति वाले मांसखण्ड आदि रूपों वाली अन्तर्निवृत्ति (आन्तरिक बनावट) को शब्द आदि विषयों का जो ज्ञान होता है, उसमें हेतु रूप जो शक्तिविशेष है, वह उपकरण-इन्द्रिय होती है। शब्द (रूप, गन्ध, रस, स्पर्श) आदि ये श्रोत्र (नेत्र, प्राण, रसना, त्वचा) आदि इन्द्रियों के विषय (इन्द्रिय ग्राह्य) हैं। 'आदि' पद से यहां श्रोत्र के विषय (शब्द) से अन्य (भिन्न) रस (रसनेन्द्रिय-विषय), गन्ध (घ्राणेन्द्रिय-विषय), स्पर्श (त्वचा-विषय) का ग्रहण करना चाहिए। उन शब्द (रस, गंध) आदि रूप से परिणत भाषावर्गणा आदि से सम्बन्धित जो (पौद्गलिक) द्रव्य हैं, वे (ही) हैं- शब्दादिपरिणत द्रव्य / उपकरण-इन्द्रिय और शब्दादि परिणत द्रव्य -इन दोनों का परस्पर जो सम्बन्ध है, वह उपकरणेन्द्रिय-शब्दादिपरिणतद्रव्य-सम्बन्ध है, इसी को 'व्यञ्जन' कहा जाता है। इसके अलावा, इंद्रियों को भी 'व्यञ्जन' कहा जाता है, क्योंकि उनके द्वारा भी 'अर्थ' व्यज्यमान (अभिव्यक्त) यानी प्रकट होता है। साथ ही, जो व्यक्त किया जाता है, उसे भी 'व्यञ्जन' कहते हैं। उक्त व्याख्यान उपलक्षण (सदृश अर्थों का भी ग्रहक) रूप है, अतः उक्त (इंद्रियविषय-सम्बन्ध, इन्द्रियां, शब्दादिविषय -इन) तीनों को 'व्यञ्जन' के रूप में जानना चाहिए। __इस प्रकार, इन्द्रिय रूप व्यञ्जन से शब्दादिपरिणत द्रव्य के साथ जो व्यञ्जन रूप सम्बन्ध है, उसका अवग्रहण 'व्यअनावग्रह' है। अथवा उसी 'व्यअन' से शब्दादिपरिणत द्रव्यरूप व्यअनों का अवग्रहण 'व्यञ्जनावग्रह' है। इस प्रकार, (व्यञ्जन से व्यञ्जन का अवग्रहण अर्थ लें, या व्यञ्जन से व्यञ्जनों का अवगहण अर्थ लें) उक्त दो व्यञ्जन पदों में से एक व्यञ्जन पद का लोप मान कर समास किया गया है (और 'व्यञ्जनावग्रह' यह समस्त पद निष्पन्न हुआ है)॥ यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 194 // Mia 286 -------- विशेषावश्यक भाष्य --- .