________________ तदेवमविशेषितमिन्द्रिय-मनोनिमित्तं ज्ञानं पक्षीकृत्य संशयादिसंभवहेतुद्वारेण परोक्षत्वं साधितम्। सांप्रतं विशेषत एव मतिश्रुते पक्षीकृत्य हेत्वन्तरेणापि तत् सिसाधयिषुराह होन्ति परोक्खाइं मइ-सुयाइंजीवस्स परनिमित्ताओ। पुत्वोवलद्धसंबंधसरणाओ वाणुमाणं व॥१४॥ [संस्कृतच्छाया:- भवतः परोक्षे मतिश्रुते जीवस्य परनिमित्तात्। पूर्वोपलब्धसम्बन्धस्मरणाद् वाऽनुमानमिव॥] मति-श्रुते जीवस्य परोक्षे, परनिमित्तत्वात्, पूर्वोपलब्धसंबन्धस्मरणद्वारेण जायमानत्वाद् वा, अनुमानवत् // इति गाथार्थः // 14 // आह- नन्विन्द्रिय-मनोनिमित्तं ज्ञानं परोक्षमिति यदुक्तं तदुत्सूत्रमेव, यतः सूत्रे प्रोक्तम्- "पच्चक्खं दुविहं पन्नत्तं, तं जहाइन्दियपच्चक्खं च नोइंदियपच्चक्खं च" इति। सत्यम्, किन्तु येयमिन्द्रियजज्ञानस्य प्रत्यक्षता प्रोक्ता सा संव्यवहारमात्रत एव, परमार्थतस्तु परोक्षमेवेदम्। तथा च भाष्यकारो विषयविभागमुपदर्शयन्निदमेवाह होता है, वही निश्चय यहां विवक्षित है। और वैसा निश्चय अवधि आदि प्रत्यक्ष ज्ञानों में नहीं होता है, क्योंकि वे विशिष्ट ज्ञान हैं, (अतः अवधि आदि प्रत्यक्ष ज्ञान प्रारम्भ से ही निश्चयात्मक होते हैं, कुछ समय बाद संकेतस्मरणपूर्वक निश्चय होता हो- ऐसा नहीं)। इसलिए अनुमान-प्रयोग दोषरहित है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 13 // इस प्रकार, इन्द्रिय व मन के निमित्त से होने वाले ज्ञान को (अनुमान-वाक्य में) ‘पक्ष' बना कर, संशयादि की सद्भावना रूप हेतु के द्वारा 'परोक्षता' (रूप साध्य) की सिद्धि की गई। अब मति व श्रुत (ज्ञान) को पक्ष बनाकर, अन्य हेतु द्वारा उस (परोक्षता) की सिद्धि करने की इच्छा से भाष्यकार कह रहे हैं (94) होन्ति परोक्खाई मइ-सुयाई जीवस्स परनिमित्ताओ। पुव्वोवलद्धसंबंधसरणाओ वाणुमाणं व॥ [(गाथा-अर्थः) जीव को मति व श्रुतज्ञान पर-निमित्तक होते हैं, अतः वे परोक्ष हैं, अथवा पूर्व में उपलब्ध (पदार्थ) से सम्बन्धित स्मरण के द्वारा होते हैं (अतः वे परोक्ष हैं) अनुमान की तरह।] व्याख्याः- मति व श्रुतज्ञान परनिमित्तक होने, अथवा पूर्वोपलब्ध सम्बन्ध के स्मरण के आधार पर उत्पन्न होने के कारण परोक्ष हैं, अनुमान की तरह- यह गाथा का अर्थ है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 14 // (संव्यवहार प्रत्यक्ष) यहां शंकाकार ने कहा- इन्द्रिय-मन से होने वाले ज्ञान को जो परोक्ष बताया गया है, वह आगमविरुद्ध है, क्योंकि आगम में कहा गया है कि प्रत्यक्ष दो प्रकार का है- (1) इन्द्रिय-प्रत्यक्ष, और A 146 -------- विशेषावश्यक भाष्य -