________________ यदि वा भाव-द्रव्यश्रुतयोः सः-वल्क-शुम्बोदाहरणाद्भेदः कल्प्येत- भावश्रुतं हि कारणत्वात् किल वल्कसदृशं, शब्दलक्षणं तु द्रव्यश्रुतं कार्यत्वात् शुम्बप्रतिमम्, इत्येवमनयोर्भेद इध्येतेति भावः। तयोरप्यसौ न युक्तः। कुतः? इत्याह- यस्माद् मतिश्रुतयोर्भेदाभिधानेऽवसरप्राप्ते 'किं सुयविसेसेणं ति'। श्रुतयोर्द्रव्य-भावश्रुतलक्षणयोर्विशेषो भेदः श्रुतविशेषस्तेनाऽभिहितेन किं? - असंबद्धत्वाद् न किञ्चिदित्यर्थः // इति गाथार्थः॥१५६ // अथाऽन्यथा पराभिप्रायमाशङ्कमानः प्राह असुयक्खरपरिणामा व जा मई वग्गकप्पणा तम्मि। दव्वसुयं सुम्बसमं किं पुण तेसिं विसेसेणं? // 157 // [संस्कृतच्छाया:- अश्रुताक्षरपरिणामा वा या मतिर्वल्ककल्पना तस्याम्। द्रव्यश्रुतं शुम्बसमं किं पुनस्तयोर्विशेषेण? // ] श्रुतानुसार्यक्षरपरिणामो यस्यां सा श्रुतानुसार्यक्षरपरिणामा न तथा- श्रुतानुसारित्वरहितशब्दमात्रपरिणामाऽन्विता या मतिरित्यर्थः, तस्यां वा वल्ककल्पना क्रियते, तज्जनितशब्दरूपं तु द्रव्यश्रुतं शुम्बसदृशम्, अतस्तयोः प्रस्तुतोदाहरणाद् भेदो युक्तियुक्तो भविष्यति। व्याख्या:- यदि वल्क (छाल) व शुम्ब (गूंथी हुई दरी आदि) के उदाहरण के आधार पर भावश्रुत व द्रव्यश्रुत में भेद प्रकल्पित किया जाय, अर्थात् भावश्रुत कारण होने से 'वल्क' है और शब्दात्मक द्रव्यश्रुत कार्य होने से 'शुम्ब' है- इस प्रकार दोनों में भेद बताना अभीष्ट हो तो वह भी युक्तिसंगत नहीं है.। (प्रश्न-) क्यों? (उत्तर-) इसलिए कि यहां मति-श्रुत में परस्पर भेद का प्रसंग चल रहा है, उसमें (किं श्रुतविशेषेण?) श्रुत का यानी भावश्रुत व द्रव्यश्रुत की परस्पर विशेषता या भिन्नता के निरूपण से क्या लाभ है? अर्थात् विषय से असम्बद्ध होने के कारण उसका कोई लाभ नहीं है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 156 // अब, इसी संदर्भ में किसी पूर्वपक्षी के अभिप्राय (अर्थात् सम्भावित प्रश्न-) को शंका के रूप में रख कर भाष्यकार अपना उत्तर प्रस्तुत कर रहे हैं (157) असुयक्खरपरिणामा व जा मई वग्गकप्पणा तम्मि। दव्वसुयं सुम्बसमं किं पुण तेसिं विसेसेणं? // [(गाथा-अर्थः) अथवा अश्रुताक्षर परिणाम वाली मति 'वल्क' के समान है और (शब्दात्मक) द्रव्यश्रुत शुम्ब के समान है- ऐसा कहा जाय, तो भी उन (दोनों मति व द्रव्यश्रुत) में भेद (के विचार) से क्या लाभ है? (अर्थात् वैसा करना भी निष्प्रयोजन होने से त्याज्य है।)] व्याख्याः - (शंकाकार का कथन-) श्रुत के अनुसार अक्षर-परिणाम जिसमें न हो, अर्थात् श्रुतानुसारिता से रहित, मात्र शब्दपरिणाम वाली जो मति, उसमें 'वल्क' की कल्पना की जाय, और उससे उत्पन्न शब्दरूप जो द्रव्यश्रुत है, वह शुम्ब के समान माना जाय, इस तरह दोनों में प्रस्तुत दृष्टान्त के द्वारा भेद बताया जाय तो क्या हानि है? यहां यह जान लें कि मति का विशेषण ----- विशेषावश्यक भाष्य --- -- 235