________________ श्रुतानुसार्यक्षरपरिणामा मति वश्रुतमेव स्यात्, अतः पूर्वस्माद् न विशिष्येत, इत्यश्रुताक्षरपरिणामित्वं विशेषणम्। सा ,च पर्युदासाश्रयणादश्रुतानुसारिणा शब्देनैवाऽन्विता गृह्यते, न तु शब्दपरिणामरहिताऽवग्रहरूपा, तस्याः (अवग्रहरूपाया मत्याः) शब्दजनकत्वाभावेनाऽनन्तरं शुम्बसदृशद्रव्यश्रुताभावादिति // अत्रोत्तरमाह- 'किं पुण तेसिं विसेसेणं ति'। किं पुनस्तयोर्यथोक्तमति-द्रव्यश्रुतयोर्विशेषेण भेदेनोक्तेन? -अप्रस्तुतत्वाद् न किञ्चिदित्यर्थः। श्रुतज्ञानेनैव सहाऽत्र मतेर्भेदो विचारयितुं प्रक्रान्तः, इत्यतः किं द्रव्यश्रुतेन सह तच्चिन्तया? इति भावः॥ इति गाथार्थः॥१५७॥ एतदेव भावयन्नाह इहइं जेणाहिकओ नाणविसेसो न दव्व-भावाणं। न य दव्व-भावमेत्ते वि जुज्जए सोऽसमंजसओ॥१५८॥ [संस्कृतच्छाया:- इह येनाधिकृतो ज्ञानविशेषो न द्रव्यभावयोः। न च द्रव्यभावमात्रेऽपि युज्यते सोऽसमञ्जसतः॥] 'अश्रुताक्षरपरिणाम वाली' जो दिया गया है, उसके पीछे कारण है। वह यह है- यदि यह विशेषण न दिया जाय तो श्रुतानुसारी अक्षर परिणाम वाला ज्ञान तो भावश्रुत होगा, तब इस कथन में और पूर्व में कहे गए कथन से कुछ अन्तर नहीं रह जाता, अतः 'अश्रुतानुसारी अक्षरपरिणामवाली' यह विशेषण दिया गया। यहां 'अ' निषेध पर्युदास निषेध (तद्भिन्न-तत्सदृशग्राही) का वाचक है, इस आधार पर अश्रुतानुसारी शब्द से युक्त मति का तो ग्रहण होता है, किन्तु शब्दपरिणामरहित अवग्रहरूप मति का ग्रहण नहीं होता, क्योंकि अवग्रहात्मक मति शब्दजनक नहीं होती, अतः अनन्तर काल में शुम्ब समान द्रव्यश्रत (का भी उत्पन्न होना. वहां संगत) नहीं होता। पूर्वोक्त शंका का उत्तर यहीं (इसी गाथा में) दे रहे हैं- (किं पुनः तयोः)। इन दोनोंतथाकथित 'मति' व 'द्रव्यश्रुत' में विशेष या भेद के निरूपण का यहां क्या अवसर या प्रयोजन है? अर्थात् अप्रासंगिक होने से कुछ भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। तात्पर्य यह है कि श्रुतज्ञान के साथ मतिज्ञान के भेद का यह प्रकरण चल रहा है, अतः द्रव्यश्रुत के साथ मतिज्ञान के भेद का चिन्तन यानी विचार करने से क्या लाभ है? यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 157 // . इसी (पूर्वोक्त) बात को ही (अन्य प्रकार से) समझाते हुए कह रहे हैं (158) इहइं जेणाहिकओ नाणविसेसो न दव्व-भावाणं / न य दव्व-भावमेत्ते वि जुज्जए सोऽसमंजसओ || [(गाथा-अर्थः) इस प्रक्रम में चूंकि ज्ञानों (मति व श्रुत -इन) के भेद का विचार चल रहा है, न कि द्रव्यश्रुत व भावश्रुत (के भेद) का / और मात्र द्रव्य व भाव (श्रुत) में भी उक्त दृष्टान्त युक्तियुक्त नहीं ठहरता, क्योंकि तब असमंजस (दृष्टांत व दार्टान्तिक के वैषम्य) की स्थिति बनती है।] Na 236 -------- विशेषावश्यक भाष्य ---- ....-----