________________ तदेवं श्रुतनिश्रितवचनश्रवणमात्राद् विभ्रान्तस्तत्स्वरूपमजानानः परो युक्तिभिर्निराकृतोऽपि विलक्षीभूतः प्राह- . जइ तं सुएण न तओ जाणइ सुयनिस्सियं कहं भणियं?। जं सुयकओवयारं पुव्विं इण्डिं तयणवेक्खं // 168 // [संस्कृतच्छाया:- यदि तत् श्रुतेन न सको जानाति, श्रुतनिश्रितं कथं भणितम्। यत् श्रुतकृतोपचार पूर्वमिदानीं तदनपेक्षम्॥] यदि तं स्थाणु-पुरुषादिपर्यायसंघातं श्रुतेन न जानाति सकोऽसौ ज्ञानी, तर्हि श्रुतनिश्रितमेवावग्रहादिकं सूत्रे कथं केन. प्रकारेण भणितम्? -मतिः स्वयमनक्षरैव, यस्त्विहाऽक्षरोपलम्भः स यदि श्रुतनिश्रितो नेष्यते, तर्हि कथमन्यथाऽसौ घटिष्यते?। इति विस्मयभयाऽऽपूरितहदयस्य परस्याऽयं प्रश्न इति भावः॥ अत्रोच्यते- ननु भवानेव प्रष्टव्यो योऽसमीक्षितमित्थं प्रभाषते- योऽक्षरोपलम्भः स सर्वोऽपि श्रुतनिश्रयेति / अथ न ज्ञायते भवता, तर्हि वयमेव ब्रूमः, श्रूयताम्- 'जं सुयेत्यादि / श्रुतं द्विविधम्-परोपदेशः, आगमग्रन्थश्च / व्यवहारकालात् पूर्वं तेन श्रुतेन कृत इस प्रकार, 'श्रुतनिश्रित' मात्र इस वचन को सुनकर ही भ्रमित हो जाने वाले, और श्रुतनिश्रित के स्वरूप से अनभिज्ञ शंकाकार (पूर्वपक्षी) का यद्यपि युक्तिपूर्वक निराकरण किया जा चुका है, फिर भी निर्लज्ज होकर वह पुनः जो कहना चाह रहा है, उसे (भाष्यकार) प्रस्तुत कर उसका प्रत्युत्तर भी दे रहे हैं (168) जइ तं सुएण न तओ जाणइ सुयनिस्सियं कहं भणियं?। जं सुयकओवयारं पुल्लिं इण्हिं तयणवेक्खं // [(गाथा-अर्थः) (पूर्वपक्षी) यदि ज्ञानी उस (उक्त विवेक) को श्रुत से नहीं जानता है तो फिर उसे श्रुतनिश्रित क्यों कहा गया? __(आचार्य का उत्तर-) (उसे श्रुतनिश्रित इसलिए कहा जाता है) क्योंकि पहले उस श्रुत द्वारा उस ज्ञान का संस्काराधान रूप उपकार किया गया है किन्तु अब वह उसकी अपेक्षा से रहित हो चुका है।] व्याख्याः- यदि वह ज्ञानी स्थाणु व पुरुष आदि पर्यायों (स्वरूपों) के विवेक को 'श्रुत' से नहीं जानता है, तब तो (आगम में) अवग्रहादिक (मतिज्ञान) को 'श्रुतनिश्रित' किस प्रकार से कहा गया? मति तो स्वयं अनक्षर ही है, वहां जो अक्षर-लाभ है उसे श्रुतनिश्रित नहीं माना जाय तो उसकी (अक्षरयुक्तता की) संगति कैसे घटित हो पाएगी? इस प्रकार विस्मय व भय से पूर्ण हृदय वाले पूर्वपक्षी की ओर से यह प्रश्न है- यह तात्पर्य है। यहां (पूर्वोक्त पूर्वपक्षी प्रश्न का उत्तर) कहा जा रहा है- पहले तो आपके कथन पर ही प्रश्नचिन्ह लगता है, क्योंकि आप बिना सोचे-विचारे ऐसा कह रहे हैं कि जो-जो अक्षर-लाभ है, वह May 246 --- -------- विशेषावश्यक भाष्य - - -