________________ जे भासइ चेय तयं सुयं तु न उ भासओ सुयं चेव। केई मईए वि दिट्ठा जं दव्वसुयत्तमुवयंति॥१४९॥ [संस्कृतच्छाया:- यान् भाषते एव तत् श्रुतं तु न तु भाषमाणस्य श्रुतमेव / केचिद् मत्याऽपि दृष्टा यद् द्रव्यश्रुतत्वमुपयान्ति॥] 'बुद्धिद्दिढे अत्थे जे भासइ' इत्यत्र यान् कदाचित् संभवमात्रेण भाषत एव तच्छुतमित्येवमेवावधारणीयम्, न तु भाषमाणस्य श्रुतमेवेति यान् भाषते तच्छ्रुतमेवेत्येवं (तच्छ्रुतमित्येतद्) नावधार्यत इत्यर्थः। कुतः? इत्याह- यद् यस्मात् कारणात् कारणात् केचिदभिलाप्याः पदार्था मत्याऽपि दृष्टा अवग्रहेणाऽवगृहीताः, ईहया त्वीहिताः, अपायविकल्पेन तु निश्चिता इत्यर्थः, द्रव्यश्रुतत्वमुपयान्ति शब्दलक्षणेन द्रव्यश्रुतेन भाष्यन्त इत्यर्थः। यदि च भाषमाणस्य श्रुतमेवेत्यवधार्येत, तदैषामपि श्रुतत्वं स्यात्, न चैतदिष्यते, श्रुतानुसारित्वाभावेन श्रुतोपयुक्तत्वस्य तेष्वसंभवात्, तस्माद् यथोक्तमेवाऽवधारणम् // इति गाथार्थः।।१४९ / / अथ यथोक्तव्याख्यानलब्धमति-श्रुतभेदोपदर्शनपूर्वकमुपसंहरन्नाह (149) जे भासइ चेय तयं सुयं तु न उ भासओ सुयं चेव / केई मईए वि दिट्ठा जं दव्वसुयत्तमुवयंति // [(गाथा-अर्थः) जो बोला ही जाता है वही श्रुत है (यह कहना तो ठीक है), किन्तु बोलने वाले के श्रुत ही है- ऐसा (कहना ठीक) नहीं। क्योंकि मतिज्ञान से कुछ दृष्ट पदार्थ भी 'द्रव्यश्रुत' रूप को प्राप्त होते हैं।]. व्याख्याः - (पूर्वोक्त गाथा 128 में आए) 'बुद्धिदृष्ट जिन पदार्थों को बोलता है' इस कथन का अर्थ "जिन बुद्धिदृष्ट पदार्थों का भाषण संभव हो, उन्हें जो बोलता है, उसी के ही 'श्रुत' होता है"- इस प्रकार अवधारण सहित श्रुत को समझें। बोलने वाले के श्रुत ही होता है, या जिन्हें बोलता है, वह श्रुत ही है- इस प्रकार अवधारण नहीं करना चाहिए। ऐसा क्यों? उत्तर है- क्योंकि कुछ अभिलाप्य (वचन द्वारा कहे जाने योग्य) ऐसे भी पदार्थ हैं जो मतिज्ञान.द्वारा भी दृष्ट (ज्ञात) होकर, 'अवग्रह' से अवगृहीत, ईहा से ईहित तथा अपाय रूप विकल्प से निर्णीत स्थिति को प्राप्त होते हैं और 'द्रव्यश्रुतपने' को प्राप्त होते हैं, अर्थात् शब्दरूप द्रव्यश्रुत द्वारा कहे जाते हैं। यदि बोलने वाले के 'श्रुत' ही है- ऐसा अवधारण किया जाय तो वे (पूर्वोक्त अपाय रूप) को भी श्रुतज्ञान मानना पड़ेगा। किन्तु यह अभीष्ट नहीं है, क्योंकि श्रुतानुसारी न होने से उनमें श्रुतोपयोग का अभाव है, इसलिए यथोक्त रूप से ही अवधारण ('ही' का प्रयोग) करना चाहिए | यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 149 // अब पूर्वोक्त व्याख्यान के आधार पर मति व श्रुत में जो परस्पर भेद है उसे उपरांहार रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं --- विशेषावश्यक भाष्य