________________ भेयकयं च विसेसणमट्ठावीसइविहंगभेयाइ। इंदियविभागओ वा मइ-सुयभेयो जओऽभिहियं // 116 // [संस्कृतच्छाया:- भेदकृतं विशेषणम् अष्टाविंशतिविध-अङ्गभेदादि / इन्द्रियविभागतो वा मति-श्रुतभेदो यतोऽभिहितम्॥] भेदा अवग्रहादयः, अङ्गाऽनङ्गप्रविष्टत्वादयश्च, तत्कृतं वा मति-श्रुतयोर्विशेषणं भेदः, यतोऽवग्रहादिभेदादष्टाविंशत्यादिविधं मतिज्ञानं 'वक्ष्यते' इति शेषः, श्रुतज्ञानं त्वङ्गाऽनङ्गप्रविष्टत्वादिभेदमभिधास्यते। अथवा इन्द्रियविभागाद् मति-श्रुतयोर्भेदः, यतोऽन्यत्र पूर्वगतेऽभिहितम् // इति गाथार्थः॥११६ // किमभिहितम्?, इत्याह सोइंदिओवलद्धी होइ सुयं सेसयं तु मइनाणं। मोत्तूण दव्वसुयं अक्खरलंभो य सेसेसु॥११७॥ [संस्कृतच्छाया:- श्रोत्रेन्द्रियोपलब्धिर्भवति श्रुतं, शेषकं तु मतिज्ञानम् / मुक्त्वा द्रव्यश्रुतमक्षरलाभश्च शेषेषु॥] (116) भेयकयं च विसेसणमट्ठावीसइविहंगभेयाइ। * इंदियविभागओ वा मइ-सुयभेयो जओऽभिहियं // 1 [(गाथा-अर्थः) मतिज्ञान के अवग्रह आदि अठाईस भेद, तथा श्रुतज्ञान के अंगप्रविष्ट-अनंगप्रविष्ट (आदि चौदह) भेद होते हैं, इसलिए भेदकृत भी दोनों (मति व श्रुत) में भेद (अन्तर) है। अथवा इन्द्रियसम्बन्धी विभाग के आधार पर भी मति व श्रुत में भेद (अन्यत्र) बताया गया है।] _ व्याख्याः - अवग्रह आदि (मतिज्ञान के) भेद हैं, (श्रुतज्ञान के) अंग-प्रविष्ट व अनंगप्रविष्ट आदि (चौदह आदि) भेद हैं, इनके कारण मति व श्रुत में परस्पर वैशिष्ट्य अर्थात् अन्तर है। चूंकि अवग्रहादि भेद के आधार पर मति ज्ञान के 28 आदि भेद, इसके बाद 'आगे कहे जाएंगे'- यह वाक्य अध्याहृत कर लेना चाहिए। श्रुतज्ञान के भी अंगप्रविष्ट व अनंगप्रविष्ट आदि (14 आदि भेद) आगे कहे जाएंगे। अथवा इन्द्रिय-सम्बन्धी विभाजन के कारण भी मति व श्रुत में भेद हैं, क्योंकि इसका निरूपण भी पूर्व में किया गया है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 116 // (श्रुतोपलब्धि श्रुत है, शेष मति है) इन्द्रिय-विभाग के सम्बन्ध में क्या कहा गया है? इस जिज्ञासा के समाधान हेतु कह रहे हैं (117) . सोइंदिओवलद्धी होइ सुयं सेसयं तु मइनाणं / मोत्तूण दव्वसुयं अक्खरलंभो य सेसेसु // __ [(गाथा-अर्थः) श्रोत्रेन्द्रियोपलब्धि 'श्रुत' है और शेष मतिज्ञान है। द्रव्यश्रुत के अतिरिक्त शेष इन्द्रियों में अक्षरोपलब्धि श्रुत है।] Ma ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 185 En