________________ किञ्च संसयविवजया वाऽणज्झवसाओऽहवा जदिच्छाए। होजत्थे पडिवत्ती न वत्थुधम्मो जया नामं // 12 // [संस्कृतच्छाया:- संशयंविपर्ययौ वाऽनध्यवसायोऽथवा यदृच्छया। भवेदर्थे प्रतिपत्तिर्न वस्तुधर्मो यदा नाम॥] यदा वस्तुधर्मो नाम नेष्यते तदा वक्त्रा घटशब्दे समुच्चारिते श्रोतुः किमयमाह?' इत्येवं संशय एव स्यात्, न घटप्रतिपत्तिः। अथवा घटशब्दे प्रोक्ते पटप्रतिपत्तिलक्षणो विपर्यय: स्यात् / अथवा 'न जाने किमप्यनेनोक्तम्' इति चित्तव्यामोहेन वस्त्वप्रतिपत्तिरूपोऽनध्यवसायः स्यात्। यदि वा यदृच्छयाऽर्थे प्रतिपत्तिर्भवेत्- कदाचिद् घटस्य, कदाचित् पटस्य, कदाचित्तु स्तम्भस्येत्यादि, न चैवं भवति। तस्माद् वस्तुधर्म एव नाम // इति गाथार्थः॥१२॥ अपि च वत्थुस्स लक्ख-लक्खण-संववहाराऽविरोहसिद्धीओ। अभिहाणाऽहीणाओ बुद्धी सद्दो य किरिया य॥६३॥ और, // 62 // संसयविवज्जया वाऽणज्झवसाओऽहवा जदिच्छाए। होज्जत्थे पडिवत्ती न वत्थुधम्मो जया नामं // [(गाथा-अर्थः) यदि 'नाम' वस्तु का धर्म न हो तो संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय या यदृच्छाअर्थप्रतिपत्ति होने लगे (किन्तु ऐसा नहीं होता है)।] व्याख्याः- जब 'नाम' को वस्तु-धर्म न माना जाय तो घट आदि (संज्ञावाचक) शब्दों के बोलने पर श्रोता को 'इसने क्या कहा?' इस प्रकार 'संशय' ही होगा, (कदापि) घट का बोध नहीं होगा / अथवा घट शब्द के बोलने पर, पट का बोध रूप 'विपर्ययज्ञान' होगा / अथवा 'न जाने, इसने क्या कहा है' इस प्रकार (श्रोता को) चित्त-व्यामोह होगा और (फलस्वरूप) वस्तु के बोध न होने से 'अनध्यवसाय' होगा / अथवा यदृच्छा-अर्थ का बोध होगा, अर्थात् कभी घड़े का, कभी कपड़े का, कभी स्तम्भ (खम्भे) आदि का बोध होगा। किन्तु ऐसा होता नहीं है। इसलिए 'नाम' वस्तु-धर्म ही है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 62 // और भी // 63 // वत्थुस्स लक्ख-लक्खण-संववहाराऽविरोहसिद्धीओ। अभिहाणाऽहीणाओ, बुद्धी सद्दो य किरिया य॥ Na 98 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------