________________ आचार्यसिद्धसेनमतेन चेह ऋजुसूत्रस्य पर्यायास्तिकेऽन्तर्भावो दर्शितः, सिद्धान्ताभिप्रायेण तु संग्रह-व्यवहारवद् ऋजुसूत्रस्याऽपि द्रव्यास्तिक एवाऽन्तर्भावो द्रष्टव्यः, तथा चोक्तं सूत्रे- "उजुसुयस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगं दव्वावस्सयं पुहत्तं नेच्छइ" [ऋजुसूत्रस्य एकोऽनुपयुक्त आगमत एकं द्रव्यावश्यकं पृथक्त्वं नेच्छति।] इति। तदनेनाऽस्य द्रव्यवादित्वं दर्शितम्, इति कथं पर्यायास्तिकेऽन्तर्भावः स्यात? // इति गाथार्थः॥७५ // आह- ननु संग्रहादिनया नामनिक्षेपं सर्वमप्येकत्वेनेच्छन्ति, भेदेन वा?, एवं स्थापनादिनिक्षेपेष्वपि प्रत्येकं वक्तव्यम्, इत्याशङ्कयाह . जं सामन्नग्गाही संगिण्हइ तेण संगहो निययं। जेण विसेसग्गाही ववहारो तो विसेसेइ // 76 // में प्रथम यानी द्रव्यास्तिक नय द्वारा मान्य सिद्ध होते हैं, अर्थात् द्रव्यास्तिक नय में अन्तर्भूत होते हैंयह तात्पर्य है। शेष ऋजुसूत्र नय आदि तो अन्य, यानी दूसरे पर्यायास्तिक नय द्वारा मान्य हैं, अर्थात् उसी में अन्तर्भूत हैं। यह जो ऋजुसूत्र नय का पर्यायास्तिक नय में अन्तर्भाव दिखाया है, वह आचार्य सिद्धसेन * के मत का अनुसरण कर किया गया है। सिद्धान्ततः तो संग्रह व व्यवहार की तरह ऋजुसूत्र भी द्रव्यास्तिक नय में ही अन्तर्भूत है- ऐसा मानना चाहिए। : सूत्र (आगम-अनुयोगद्वार) में कहा भी गया है:- [ऋजुसूत्र नय के मत में उपयोगशून्य बहुत से हो सकते हैं, तो भी संग्रह नय की तरह] ऋजुसूत्र नय के मत में भी एक 'उपयोग-रहित' ही 'आगम से द्रव्यावश्यक' है और ऋजुसूत्र (अनेक उपयोगशून्य वक्ताओं में भी) पृथक्त्व (जुदापन) नहीं चाहता (मानता), (अर्थात् अतीत-अनागत भेद से तथा परकीय भेद से उनमें परस्पर भिन्नता नहीं चाहता, अपितु वर्तमानकालीन को ग्रहण करता है)। इस तरह इस (ऋजुसूत्र) का (आगम में) द्रव्यवादी होना बताया गया है, तो इसका पर्यायास्तिक में अन्तर्भाव कैसे हो सकता है? (अर्थात् नहीं हो सकता ) || यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 75 // (नाम आदि भेद निक्षेप- अभेदकारी) (संग्रह नय आदि सम्मत नाम आदि निक्षेप) __अच्छा, संग्रह आदि नय सभी (नाम आदि) को एक-सा मानते हैं, तो क्या भेदपूर्वक मानते हैं? इसी प्रकार का स्पष्टीकरण स्थापना आदि निक्षेपों में भी प्रत्येक में करना अपेक्षित है- इस आशंका के समाधान हेतु भाष्यकार कह रहे हैं 76 // जं सामन्नग्गाही संगिण्हइ, तेण संगहो निययं / जेण विसे सग्गाही ववहारो तो विसे सेइ॥ ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 119 4