________________ तदेवमवसितं प्रासङ्गिकम्। प्रकृतमुच्यते, तच्चेदम्- पूर्वं नोआगमतो भावमङ्गलं नोशब्दस्य सर्वनिषेधवचनत्वे विशुद्धः क्षायिकादिर्भाव उक्तः, मिश्रवचनत्वे तस्य ज्ञान-दर्शन-चारित्रोपयोगः, एकदेशवचनत्वे पुनस्तस्याऽर्हन्नमस्कारादिज्ञानक्रियाविमिश्रपरिणामः प्रोक्तः। सांप्रतं नो-शब्दस्यैकदेशवाचित्वे नोआगमतो भावमङ्गलं ज्ञानपञ्चकरूपा नन्द्यपि भवतीति दर्शयन्नाह मङ्गलमहवा नन्दी चउव्विहा मङ्गलं च सा नेया। दव्वे तूरसमु ओ भावम्मि य पञ्च नाणाई॥७८॥ [संस्कृतच्छाया:- मङ्गलमथवा नन्दी चतुर्विधा मङ्गलं च सा ज्ञेया। द्रव्ये तूर्यसमुदयो भावे च पञ्च ज्ञानानि // ] सूत्रस्य सूचकत्वाद् नोआगमतो भावमङ्गलस्यैव च प्रस्तुतत्वाद् मङ्गलशब्देनेह नोआगमतो भावमङ्गलमिति द्रष्टव्यम्। अथवा-शब्दस्तु पूर्वोक्तपक्षत्रयापेक्षया विकल्पार्थः, ततश्चायमर्थ:- यदि वा नोआगमतो भावमङ्गलमन्यद् द्रष्टव्यम्। किं तत्?, इत्याह पर्याय-भेद के कारण, उन-उन वस्तुओं में भी निश्चित रूप से भेद करते हैं यानी भेद के साथ चाहते हैं। यदि पर्याय-भेद होने पर भी वस्तु में भेद न माना जाय तो घट-पट आदि में भी भेद न होगाइत्यादि युक्तियों के आधार पर पर्याय-भेद से भावमङ्गल को भी (ये नय) भिन्न मानते हैं- यह तात्पर्य है। यह गाथा-द्वय का अर्थ पूर्ण हुआ !76-77 // (भावमङ्गल रूपनन्दी) __इस प्रकार प्रासंगिक रूप से जो कहना था, वह कह दिया गया। अब प्रस्तुत विषय पर आ रहे हैं। पहले 'नो-आगम से भावमङ्गल' का कथन किया, उसमें 'नो' शब्द को सर्व-निषेध का वाचक बता कर विशुद्ध क्षायिक आदि भाव को 'नो आगम से भावमङ्गल' का निरूपण किया। फिर, 'नो' शब्द को मिश्र वचन के अर्थ में कहकर ज्ञान-दर्शन-चारित्र उपयोग को 'नो आगम से भावमङ्गल' कहा। इसके बाद, नो शब्द को एकदेश अर्थ में प्रयुक्त बता कर, अर्हन्त को नमस्कार किये बिना ज्ञान व क्रिया दोनों से मिश्रित परिणाम को ही 'नो आगम से भावमङ्गल' कहा / अब 'नो' शब्द को एकदेश वाचक अर्थ में प्रयुक्त मानकर, पांच ज्ञान रूप नन्दी भी 'नो आगम से भावमङ्गल' है- ऐसा (आगे की गाथा में) बता रहे हैं 78 // मङ्गलमहवा नन्दी, चउविहा मङ्गलं च सा नेया। दव्वे तूरसमुदओ भावम्मि य पञ्च नाणाई॥ [(गाथा-अर्थ) अथवा नोआगम से भावमङ्गल रूप नन्दी है और वह मङ्गल की तरह चार प्रकार की है। द्रव्यनन्दी में तूर्य (वाद्य) का समुदाय, और भावनन्दी में पांच ज्ञान (समाहित, परिगणित) हैं।] व्याख्याः - यहां 'मङ्गल' शब्द से 'नो-आगम से भावमङ्गल' अर्थ ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि 'भावमङ्गल' का ही प्रकरण है और सूत्र मात्र सूचक होता है (अर्थात् सूत्र द्वारा संक्षेप में सूचना दी जाती है, अतः यहां 'मङ्गल' पद भावमङ्गल का सूचक है)। (गाथा में प्रयुक्त) 'अथवा' यह -------- विशेषावश्यक भाष्य - - - ----