________________ निरन्तरसातिरेकसागरोपमषट्षष्टिस्थितिकत्वेनाऽत्रैवाऽभिधास्यमानत्वादिति। कारणमपीन्द्रिय-मनोलक्षणं स्वावरणक्षयोपशमस्वरूपं च द्वयोरपि समानम्। उभयस्याऽपि सर्वद्रव्यादिविषयत्वाद् विषयतुल्यता। परनिमित्तत्वाच्च परोक्षत्वसमता। ननु यद्येवमनयोः परस्परं तुल्यता, तर्खेकत्र द्वयोरप्युपन्यासोऽस्तु, आदावेव तु तदुपन्यासः कथम्?, इत्याह- 'तब्भावे इत्यादि / तद्भावे मति-श्रुतज्ञानसद्भाव एव शेषाण्यवध्यादीनि ज्ञानान्यवाप्यन्ते, नान्यथा, न हि स कश्चित् प्राणी भूतपूर्वः, अस्ति, भविष्यति वा, यो मति-श्रुतज्ञाने अनासाद्य प्रथमेवाऽवध्यादीनि शेषज्ञानानि प्राप्तवान्, प्राप्नोति, प्राप्स्यति वेति भावः। ततस्तदवाप्तौ शेषज्ञानाऽवाप्तेश्चादौ मति-श्रुतोपन्यासः॥ इति गाथार्थः॥८५॥ भवतु तादौ मति-श्रुतोपादानम्, केवलं पूर्वं मतिः, पश्चात्तु श्रुतमित्यत्र किं कारणम्, यावता विपर्ययोऽपि कस्माद् न भवति?, इत्याह मइपुव्वं जेण सुयं तेणाईए मई, विसिट्ठो वा। मइभेओ चेव सुयं तो मइसमणंतरं भणियं // 86 // से भी दोनों की स्थिति निरन्तर साधिक 66 (छियासठ) हजार सागर काल तक की होती है- ऐसा इसी ग्रंथ में कहा जाएगा। अपने-अपने आवरण के क्षयोपशम तथा इन्द्रिय व मन रूपी कारणता भी दोनों में समान हैं। चूंकि दोनों ही सर्वद्रव्य को विषय करते हैं, अतः विषय भी दोनों के समान हैं। 'पर' (यानी इन्द्रिय व मन) के निमित्त से उत्पन्न होने के कारण उन (दोनों) की परोक्षता भी समान है। . (यहां शंकाकार कह रहा है-) यदि इन दोनों में परस्पर समानता है, तो (इस आधार पर) . इन (दोनों) का एक जगह (एक साथ) निर्देश तो युक्तिसंगत ठहरता है, किन्तु (सब के) आदि में जो उन्हें रखा गया है, ऐसा क्यों? इस प्रश्न के समाधान हेतु कहा- (तदभावे इत्यादि)- अर्थात् उनके, यानी मति व श्रुत के होने पर ही अवधि आदि शेष ज्ञान प्राप्त होते हैं, अन्यथा प्राप्त नहीं होते। तात्पर्य यह है कि ऐसा कोई प्राणी न कभी हुआ है, न (कहीं) है, और न ही भविष्य में होगा जो मति व श्रुत ज्ञान को प्राप्त किये बिना, पहले अवधि आदि ज्ञानों को ( अतीत में) प्राप्त कर चुका हो, या प्राप्त कर रहा हो या प्राप्त करेगा। इसलिए इन दोनों की प्राप्ति होने पर ही, शेष ज्ञानों की प्राप्ति होती है, अतः मति व श्रुत- इन दोनों को अन्य (सब ज्ञानों) के पहले रखा गया है| यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 85 // चलो, मान लिया कि मति व श्रुत को पहले रखना चाहिए, किन्तु इन दोनों में भी पहले मति और बाद में श्रुत को रखा- इसमें क्या कारण है, क्या पहले श्रुत को और बाद में मति को नहीं रख सकते? इस शंका के समाधान हेतु कह रहे हैं (86) मइपुलं जेण सुयं तेणाईए मई, विसिट्ठो वा। मइभेओ चेव सुयं तो मइसमणंतरं भणियं // ---------- विशेषावश्यक भाष्य ---- ---- 135