________________ इदमुक्तं भवति- अपौद्गलिकत्वादमूर्तो जीवः, पौद्गलिकत्वात् तु मूर्तानि द्रव्येन्द्रिय-मनांसि, अमूर्ताच्च मूर्तं पृथग्भूतम्, ततस्तेभ्यः पौद्गलिकेन्द्रिय-मनोभ्यो यद् मति-श्रुतलक्षणं ज्ञानमुपजायते, तद् धूमादेरग्न्यादिज्ञानवत् परनिमित्तत्वात् परोक्षमिह जिनमते परिभाष्यते // इति गाथार्थः॥१०॥ ये तु वैशेषिकादयोऽक्षमिन्द्रियं प्रति गतं प्रत्यक्षम्, शेषं तु परोक्षमिति मन्यन्ते, तद्दर्शनमपाकर्तुमाह केसिंचि इंदिआई अक्खाई, तदुवलद्धि पच्चक्खं। तन्नो, ताइं जमचेअणाइं जाणंति न घडो व्व॥११॥ [संस्कृतच्छाया:- केषांचिदिन्द्रियाणि अक्षाणि, तदुपलब्धिः प्रत्यक्षम्। तन्न, तानि यदचेतनानि जानन्ति न घट इव॥] केषांचिद् वैशेषिकादीनां मतेनाऽक्षाणि स्पर्शनादीनीन्द्रियाण्युच्यन्ते, न जीव इति भावः। तदुवलद्धि पच्चक्खं ति' तेषामिन्द्रियाणां येयं साक्षाद्धटाद्यर्थोपलब्धिघटादिज्ञानं तत् प्रत्यक्षम्, अन्यत् तु परोक्षमिति। तात्पर्य यह है कि जीव तो अमूर्त है क्योंकि वह पौद्गलिक नहीं है। किन्तु (इससे विपरीत) द्रव्येन्द्रिय व द्रव्य मन पौद्गलिक होने से मूर्त हैं। अमूर्त से मूर्त पृथक् होता है। अतः उन पौद्गलिक द्रव्येन्द्रिय व द्रव्यमन से जो मति-श्रुत संज्ञक ज्ञान उत्पन्न होता है, वह जिन-मत में उसी तरह ‘परोक्ष' रूप में परिभाषित किया जाता है जिस प्रकार धूम आदि को देख कर अग्नि आदि का जो अनुमानज्ञान होता है, उसे परनिमित्तक (धूम-आधारित) होने से परोक्ष माना जाता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 10 // (इन्द्रियों को ज्ञान नही) . वैशेषिक आदि दर्शनों के मत में ऐसा माना जाता है कि जो अक्ष यानी इन्द्रियों द्वारा जाना जाता है, वह प्रत्यक्ष है, और शेष परोक्ष ज्ञान हैं। इस मत का भाष्यकार निराकरण कर रहे हैं (91) केसिंचि इंदिआइं अक्खाई, तदुवलद्धि पच्चक्खं / तन्नो, ताई जमचेअणाइं जाणंति न घडो व्व // . [(गाथा-अर्थः) किन्हीं (दार्शनिकों) के मत में अक्ष का अर्थ 'इन्द्रिय' किया जाता है, और उनसे होने वाली उपलब्धि (अर्थात्, जहां इन्द्रियां जानती है, उस बोध) को प्रत्यक्ष माना जाता है। किन्तु यह मानना ठीक नहीं, (अर्थात्, जहां इन्द्रियां जानती है, उस बोध को प्रत्यक्ष माना जाता है। किन्तु यह मानना ठीक नहीं) क्योंकि इन्द्रियां घट (आदि पदार्थ) की तरह अचेतन होने के कारण नहीं जानतीं (वे किसी पदार्थ को जान ही नहीं सकतीं)] व्याख्याः- किन्हीं अर्थात् वैशेषिक आदि दार्शनिकों के मत से 'अक्ष' का अर्थ किया जाता हैस्पर्शन आदि इन्द्रियां। तात्पर्य है कि (उनके मत में अक्ष का) 'जीव' अर्थ नहीं किया गया है। (तदुपलब्धिः प्रत्यक्षम् इति)- उन इन्द्रियों द्वारा साक्षात् की जाने वाली 'घट आदि पदार्थ की उपलब्धि' यानी घटादि का जो ज्ञान है, वह प्रत्यक्ष, बाकी तो परोक्ष है (ऐसा वैशेषिक आदि का मानना है)। ---------- विशेषावश्यक भाष्य --------141