________________ अथ मन:पर्यायज्ञानविषयां व्युत्पत्तिमाह पजवणं पज्जयणं पज्जाओ वा मणम्मि मणसो वा। तस्स व पज्जायादिन्नाणं मणपज्जवं नाणं // 83 // [संस्कृतच्छाया:- पर्यवनं पर्ययनं पर्यायो वा मनसि मनसो वा। तस्य वा पर्यायादिज्ञानं मन:पर्यवं ज्ञानम्।] 'पज्जवणं ति''अव गत्यादिषु' इति वचनादवनं गमनं वेदनमित्यवः, परिः सर्वतोभावे, पर्यवनं समन्तात् परिच्छेदनं पर्यवः / काऽयम्? इत्याह- 'मणम्मि मणसोवत्ति' मनसि मनोद्रव्यसमुदाये ग्राहो, मनसो वा ग्राह्यस्य संबन्धी पर्यवो मनःपर्यवः, स चासौ ज्ञानं च मनःपर्यवज्ञानम्। अथवा 'पज्जयणं ति''अय वय मय'- इत्यादिदण्डकधातुः, अयनं गमनं वेदनमित्ययः, परिः पर्ययनं सर्वतः परिच्छेदनं पर्ययः। क्व पनरसौ?. इत्याह- 'मणम्मि मणसो व त्ति' मनसि ग्राह्ये, मनसो वा ग्राह्यस्य संबन्धी पर्ययो मनःपर्ययः, स चासौ ज्ञानं च मनःपर्ययज्ञानम्। पजाओ वत्ति' अथवा 'इण् गतौ' अयनं, आयः, लाभः, प्राप्तिरिति पर्यायाः, परिस्तथैव, समन्तादायः पर्यायः। व?, इत्याह मणम्मि मणसो वत्ति' मनसि ग्राहो, मनसो वा ग्राह्यस्य पर्यायो मनःपर्यायः, संचासौ ज्ञानं च मनःपर्यायज्ञानम्। एवं तावज्ज्ञानशब्देन सह सामानाधिकरण्यमङ्गीकृत्योक्तम्॥ - अब मनःपर्यव ज्ञान से सम्बन्धित व्युत्पत्ति का कथन कर रहे हैं 83 // . पज्जवणं पज्जयणं पज्जाओ वा मणम्मि मणसो वा। तस्स व पज्जायादिन्नाणं मणपज्जवं नाणं // [(गाथा-अर्थः) मन में, या मन से सम्बन्धित पर्यवन, पर्ययन या पर्याय को, अथवा (उक्त) पर्याय आदि के ज्ञान को 'मनःपर्यव ज्ञान' कहा जाता है।] व्याख्याः- (पर्यवनम्-) अव धातु गति आदि अर्थों में प्रयुक्त होती है- इस व्याकरण-सम्बन्धी वचन से अवन या अव का अर्थ है- गमन, ज्ञान, वेदन / परि उपसर्ग सम्पूर्ण अर्थ में प्रयुक्त होता है। अतः पर्यवन या पर्यव का अर्थ है- सम्पूर्ण रूप में जान लेना / यह कहां संभव, उत्पन्न होता है? इसके उत्तर में कहा- मनसि, मनसो वा / मन में यानी ग्राह्य ज्ञानविषय मन-द्रव्यरूपी समुदाय में, अथवा मन का यानी ग्राह्य मन द्रव्य-समुदाय का जो पर्यय है, उसे कहते हैं- मनःपर्यव / वह ज्ञान रूप (ही) है, इसलिए उसे मनःपर्यव ज्ञान कहा जाता है। अथवा पर्ययनम्- अय, वय, मय इत्यादि दण्डक पंक्तिबद्ध धातुपाठ में पठित धातुओं में जो अय धातु है, उससे निष्पन्न हैं- अयन और अय शब्द, जिनके भी वही अर्थ हैं- गमन, ज्ञान, वेदन / परि= सर्वतोभावेन, सम्पूर्ण रूप से, तो पर्ययन व पर्यय का अर्थ हुआ-सम्पूर्ण रूप से होने वाला ज्ञान / वह ज्ञान कहां समुत्पन्न या सम्बद्ध होता है? इसलिए कहा- मनसि, मनसः वा- ग्राह्य मन में, या मन से सम्बन्धित होकर उत्पन्न होने वाली पर्यय, वही ज्ञान है, इसलिए उसे मनःपर्यय ज्ञान कहा जाता है। पर्यायो वा- अथवा इण् गतौ इस गत्यर्थक 'इ' धातु से आय शब्द की निष्पत्ति होती है, जिसके पर्याय हैं- अयन, लाभ, प्राप्ति / परि का अर्थ वही 'सर्वतोभावेन' है। अतः सम्पूर्ण रूप से होने वाली जो आय या प्राप्ति है- वह पर्याय है। वह कहां होती ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 131 की