________________ इदमुक्तं भवति- अन्योऽन्यसंवलितनामादिचतुष्टयात्मन्येव वस्तुनि घटादिशब्दस्य तदभिधायकत्वेन परिणतिर्दृष्टा, अर्थस्यापि पृथुबुध्नोदराद्याकारस्य नामादिचतुष्टयात्मकतयैव परिणामः समुपलब्धः, बुद्धेरपि तदाकारग्रहणरूपतया परिणतिस्तदात्मन्येव - वस्तुन्यवलोकिता। न चेदं दर्शनं भ्रान्तम्, बाधकाभावात्। नाप्यदृष्टाशङ्कयाऽनिष्टकल्पना युक्तिमती, अतिप्रसङ्गात्। न हि दिनकराऽस्तमयोदयोपलब्धरात्रिन्दिवादिवस्तूनां बाधकसंभावनयाऽन्यथात्वकल्पनासंगतिमावहति। न चेहापि दर्शनाऽदर्शने विहायाऽन्यद् निश्चायकं प्रमाणमुपलभामहे। . तस्मादेकत्वपरिणत्यापन्ननामादिभेदेष्वेव शब्दादिपरिणतिदर्शनात् सर्वं चतुष्पर्यायं वस्त्विति स्थितम्। इति गाथार्थः॥७३॥ आह- ननु यदि नामादिचतुष्पर्यायं सर्वं वस्तु, तर्हि किं नामादीनां भेदो नास्त्येव?, इत्याह इय सव्वभेअसंघायकारिणो भिन्नलक्खणा एते। उप्पाया इति यं पिव धम्मा पइवत्थुमाउजा॥७४॥ (यहां) यह बताया गया है कि अन्योन्यसंवलित (एक-दूसरे के साथ समन्वित) नाम आदि चतुष्टयात्मक वस्तु में ही, घट आदि शब्द की तद्वाचक रूप में परिणति दृष्टिगोचर होती है। पृथुबुध्नोदर (मोटे तल भाग व विस्तृत मध्य भाग वाले) आदि आकार रूप अर्थ की भी परिणति नामादिचतुष्टयात्मकता के साथ ही उपलब्ध होती है। इसी प्रकार, बुद्धि की भी तदाकारग्रहणरूप से परिणति नामादिचतुष्टयात्मक वस्तु में ही प्रत्यक्ष (सिद्ध) है। ऐसा दिखाई देना (अनुभव में आना) भ्रमपूर्ण भी नहीं है, क्योंकि उस प्रत्यक्ष अनुभव का कोई बाधक नहीं है (भ्रम वहीं माना जाता है, जहां पूर्व ज्ञान का कोई उत्तरवर्ती * ज्ञान बाधक हो)। किसी अदृष्ट (बाधक) की आशंका से अनिष्ट (यानी उक्त अनुभूति को भ्रम मानने की) कल्पना युक्तियुक्त नहीं होगी, अन्यथा (अनेक दोषों की) अतिप्रसक्ति होने लगेगी। सूर्य के अस्त होने और उसके उदय से होने वाले रात-दिन आदि वस्तुओं (घटनाओं) के भी (किन्हीं) बाधकों की संभावना से, उन्हें अन्यथा (धान्तिपूर्ण) मानना कथमपि संगत नहीं होगा। दिखाई देने या नहीं दिखाई देने को छोड़कर अन्य कोई निश्चयकारक प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं होता। इसलिए, एकत्वपरिणति प्राप्त नाम आदि भेदों में ही शब्द आदि की परिणति दिखाई पड़ती है, अतः सभी वस्तु चतुष्पर्यायात्मक है- यह सिद्ध होता है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ 73 // ___अच्छा, यदि सभी वस्तु 'नाम आदि चतुष्पर्याय रूप' है, तो क्या नाम आदि में (परस्पर) भेद नहीं है? इस आशंका को दृष्टिगत रखकर भाष्यकार कह रहे हैं // 74 // इय सव्वभेयसंघायकारिणो भिन्नलक्खणा एते। उप्पाया इति यं पिव, धम्मा पइवत्युमाउज्जा // Ma ---------- विशेषावश्यक भाष्य --------115