________________ [संस्कृतच्छाया:- वस्तुनो लक्ष्य-लक्षण-संव्यवहाराऽविरोधसिद्धयः। अभिधानाधीनाः बुद्धिः शब्दश्च क्रिया च॥] ... वस्तुनो जीवादेः। किम्?, इत्याह- अभिधानाऽधीना नामाऽऽयत्ताः। का:?, इत्याह- लक्ष्यं च लक्षणं च संव्यवहारश्च लक्ष्य-लक्षण-संव्यवहारास्तेषामविरोधेनाऽविपर्ययेण सिद्धयः प्रतिष्ठाः / तत्र लक्ष्यं जीवत्वादि, लक्षणमुपयोगः, संव्यवहारोऽध्येषणप्रेषणादिः। तथा बुद्धि-शब्द-क्रियाश्च 'अभिधानाऽधीनाः' इत्यत्राऽपि संबध्यते। तत्र बुद्धिर्वस्तुनिश्चयरूपा, शब्दो घटादिध्वनिरूपः, क्रिया चोत्क्षेपणाऽवक्षेपणादिका / तस्मादभिधानमेव वस्तु सत्, तदाऽऽयत्ताऽऽत्मलाभत्वात् सर्वव्यवहाराणाम् // इति गाथार्थः॥६३॥ तदेवं शब्दनयेन निजमते स्थापिते स्थापनानयः प्राह आगारो च्चिय मइ-सद्द-वत्थु-किरिया-फलाऽभिहाणाई। ___ आगारमयं सव्वं जमणागारं तयं नत्थि॥६४॥ [संस्कृतच्छाया:- आकार एव मति-शब्दवस्तु-क्रिया-फला-ऽभिधानादि। आकारमयं सर्वं यदनाकारं तद् नास्ति // ] [(गाथा-अर्थः) (जगत् में) वस्तु लक्ष्य, लक्षण, संव्यवहार-इनकी निर्विरोध सिद्धि, एवं बुद्धि, शब्द व क्रिया- ये (सभी) 'नाम' के अधीन हैं।] व्याख्याः- वस्तु यानी जीव आदि पदार्थ, उसके (लक्ष्य, लक्षण आदि)। अभिधान यानी नाम के अधीन हैं। कौन-कौन अधीन हैं? (उत्तर-) लक्ष्य, लक्षण एवं संव्यवहार, इनकी निर्विरोध रूप से सिद्धि यानी प्रतिष्ठा / इनमें लक्ष्य जैसे जीवत्व आदि, लक्षण जैसे (जीव का) उपयोग, संव्यवहार यानी अध्येषण-प्रेषण आदि। तथा बुद्धि, शब्द व क्रिया -ये भी 'नाम' के अधीन हैं (उस पर आश्रितआधारित हैं)। इनमें बुद्धि यानी निश्चय, शब्द यानी घटादि ध्वनि रूप, क्रिया यानी उत्क्षेपण-अवक्षेपण आदि / इसलिए अभिधान यानी नाम ही वस्तु है, सत् है, क्योंकि समस्त व्यवहार उसी के अधीन अनुष्ठित/क्रियान्वित हो पाते हैं (ऐसा नाम-नय का अभिमत है)। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 63 // * (स्थापना नय) इस प्रकार शब्दनय द्वारा अपना अभिप्राय प्रकट करने पर, स्थापना-नय का इस प्रकार कथन है // 64 // आगारो च्चिय मइ-सद्द-वत्थु-किरिया-फलाऽभिहाणाई। आगारमयं सव्वं, जमणागारं तयं नत्थि // .. [(गाथा-अर्थः) मति, शब्द, वस्तु, क्रिया, फल व अभिधान (नाम)- ये (सभी) आकार रूप (ही) हैं। समस्त वस्तु आकारमय है, जो अनाकार है, वह (वस्तुरूप ही) नहीं है।] -- विशेषावश्यक भाष्य ---- 99