________________ [संस्कृतच्छाया:- स सर्वश्रुतस्कन्धाभ्यन्तरभूतो यतस्ततस्तस्य / आवश्यकानुयोगादिग्रहणगृहीतोऽनुयोगोऽपि॥] स नमस्कारः सर्वेषामप्यावश्यक-दशवैकालिकोत्तराध्ययनादिश्रुतस्कन्धानामभ्यन्तर्भूतोऽन्तर्गतो यतः, ततस्तस्य नमस्कारस्य, आदिशब्दो भिन्नक्रमे, आवश्यकादिश्रुतस्कन्धानुयोगग्रहणगृहीतोऽनुयोगोऽपि, न केवलमावश्यकादिश्रुतस्कन्धग्रहणेन तदन्तर्गतत्वाद् नमस्कार: स्वरूपेण गृह्यते, किन्त्वावश्यकादिश्रुतस्कन्धानुयोगग्रहणेन नमस्कारानुयोगोऽपि गृह्यत इत्यपि-शब्दार्थः, ततश्चावश्यकानुयोगं वक्ष्य इत्युक्तेन नमस्कारानुयोगोऽपि भणनीयत्वेन प्रतिज्ञातो द्रष्टव्य इति भावः॥ इति गाथार्थः॥९॥ कथं पुनर्नमस्कारस्य सर्वश्रुतस्कन्धाभ्यन्तरता विज्ञायते? इत्याह तस्स पुणो सव्वसुयब्भंतरया पढममंगलग्गहणा। जंच पिहो न पढिजइ नंदीए सो सुयक्खंधो॥१०॥ [संस्कृतच्छाया:- तस्य पुनः सर्वश्रुताभ्यन्तरता प्रथममङ्गलग्रहणात्। यच्च पृथक् न पठ्यते नन्द्यां स श्रुतस्कन्धः॥] [(गाथा-अर्थः) चूंकि वह (नमस्कार) समस्तश्रुतस्कन्ध में अन्तर्हित है, इसलिए आवश्यक आदि श्रुत-स्कन्ध के अनुयोग के ग्रहण में ही उस (नमस्कार) का अनुयोग भी (स्वतः) गृहीत हो जाता है। व्याख्याः - यहां 'आदि' पद 'क्रम-भिन्नता' को संकेतित कर रहा है, (अर्थात् आदि-पद से दशवैकालिक आदि का भी ग्रहण अभीष्ट है- ऐसा जानना चाहिए। अतः अर्थ हुआ कि) वह नमस्कार चूंकि आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि-इन सभी श्रुतस्कन्धों के अन्तर्गत (यानी अन्तर्निहित) है, इसलिए आवश्यक आदि 'श्रुतस्कन्ध के अनुयोग' के ग्रहण से उस ‘नमस्कार के अनुयोग' का भी ग्रहण हो जाता है, अर्थात् आवश्यक आदि श्रुतस्कन्ध के ग्रहण से उसके अन्तर्गत स्वरूपतः नमस्कार का ही ग्रहण नहीं होता, अपितु आवश्यक आदि श्रुतस्कन्ध के अनुयोग के ग्रहण से नमस्कार-सम्बन्धी अनुयोग का भी ग्रहण हो जाता है- यह 'अपि' शब्द से अभिहित हो रहा है। इस प्रकार, 'आवश्यक अनुयोग का निरूपण करूंगा'- इस कथन से नमस्कार-सम्बन्धी अनुयोग का भी कथन करूंगा- यह स्वतः प्रतिज्ञात होता है- ऐसा समझना चाहिए। यह गाथा का अर्थ हुआ // 9 // - नमस्कार समस्त श्रुत के अन्तर्भूत (अङ्गभूत ही) है- यह कैसे ज्ञात (सिद्ध) होता है- इस प्रश्न के उत्तर में कह रहे हैं (10) तस्स पुणो सव्वसुयब्भंतरया पढममङ्गलग्गहणा। जं च पिहो न पढिज्जइ, नंदीए सो सुयक्खंधो // [(गाथा-अर्थः) चूंकि नमस्कार को प्रथम मङ्गल के रूप में ग्रहण (कथन) किया गया है, इसलिए इसका समस्त श्रुत के अन्तर्गत होना स्वतःसिद्ध है। और इसीलिए, 'नन्दी सूत्र' में 'पञ्च नमस्कार' को एक पृथक् श्रुतस्कन्ध के रूप में नहीं पढ़ा-कहा गया है।] ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 33 2