________________ आह- यदि घटोपयोगानन्यत्वाद् देवदत्तोऽपि घटः, अन्युपयोगानन्यत्वाच्च माणवकोऽप्यग्निः, तर्हि जलाहरण-दाहपाकाद्यर्थक्रियाप्रसङ्गः। तदयुक्तम्, न हि सर्वोऽपि घटो जलाहरणं करोति, नापि समस्तोऽप्यग्निर्दाह-पाकाद्यर्थक्रियां साधयति, कोणेऽवाङ्मुखीकृतघटेन भस्मच्छावह्निना च व्यभिचारात्। न चाऽसौ न घटः, नाग्निर्वा, लोकप्रतीतिबाधाप्रसङ्गात्। तस्माद् मङ्गलपदार्थज्ञानोपयोगाऽनन्यत्वादागमतस्तदुपयुक्तो भावमङ्गलमिति स्थितम् // नोआगमतस्तु आगमस्य सर्वनिषेधमाश्रित्य सुविशुद्धः प्रशस्तः क्षायिक-क्षायोपशमिकादिको भावो भावमङ्गलम्, भाव एव मङ्गलं भावमङ्गलमिति कृत्वा। उपलक्षणव्याख्यानादागमवर्जज्ञानचतुष्टय-दर्शन-चारित्राणि च नोआगमतो भावमङ्गलतया वाच्यानि; भावतः परमार्थतो मङ्गलं भावमङ्गलमिति कृत्वा // इति गाथार्थः॥४९॥ होगी। दूसरी बात, घट आदि ज्ञान और (उसका) ज्ञाता- इन दोनों को भिन्न माना जाय तो कर्म-बंध आदि का सद्भाव खण्डित हो जाएगा। क्योंकि, जैसे आकाश को कर्म-बंध नहीं होता- इसका कारण यह है कि वह ज्ञान, अज्ञान, सुख व दुःख आदि परिणाम से अनन्य नहीं है, उसी प्रकार, जीव को भी (कर्म-) बन्ध का अभाव होना मानना पड़ेगा (इसलिए ज्ञान व ज्ञानी को अभिन्न मानना पड़ेगा ही)। -यह तात्पर्य है। यह शंकाकार कहता है- यदि घटोपयोग से अनन्य-अभिन्न होने के कारण देवदत्त को 'घट' कहा जाए, तो अग्नि-उपयोग से अभिन्न होने के कारण माणवक (बालक) को भी अग्नि कहा जाएगा, तब तो उस घटात्मक देवदत्त से जल-आहरण की क्रिया होने लगेगी, और वह माणवक भी दाह व भोजन-पाक आदि क्रिया करने लगेगा? (किन्त ऐसा होना प्रत्यक्षविरुद्ध है)। (उक्त आशंका का समाधान-) उक्त कथन युक्तिसंगत नहीं है। सभी घट जल-आहरण आदि क्रिया नहीं कर पाते, और न ही सारी अग्नियां दाह व पाक सम्बन्धी क्रियाएं करती हैं, क्योंकि किसी कोने में टेढ़े या उल्टे मुख किए हुए घट से जल-आहरण क्रिया का व्यभिचार (असद्भाव) देखा जाता है, इसी तरह भस्म से ढकी अग्नि भी दाह या पाक की क्रिया नहीं करती। किन्तु व्यवहार में वह घड़ा-घड़ा ही है, अग्निअग्नि ही हैं, अन्यथा लोकप्रतीति बाधित होने लगेगी। . इसलिए यह सिद्ध हुआ कि मङ्गल पदार्थ सम्बन्धी ज्ञान-उपयोग से अभिन्न होने के कारण, उक्त ज्ञानोपयोग से युक्त (वक्ता) 'भावमङ्गल' है। चूंकि विशुद्ध, प्रशस्त क्षायिक, क्षायोपशमिक आदि भाव में 'आगम' का सर्वथा अभाव है- इस दृष्टि से वह 'नो आगम से भावमङ्गल' है। जो भाव है, वही मङ्गल है, इसलिए उसे 'भावमङ्गल' कहा गया है। यह व्याख्यान 'उपलक्षण' रूप है, इसलिए आगमहीन ज्ञान-चतुष्टय, दर्शन व चारित्र -ये भी, चूंकि ये भावतः यानी परमार्थ रूप में मङ्गल हैं, इस दृष्टि से, 'नोआगम से भावमङ्गल' कहे जा सकते हैं। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ॥४९॥ ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 83 Log