________________ क इव?, इत्याह-'इन्द्रादिवत्' स्वर्गाधिपादिवत्, आदिशब्दाज्ज्वलन-जीवनादिपरिग्रहः। सोऽपि कथं भाव:?, इत्याह'इन्दनादिक्रियानुभवात्' इति, आदिशब्देन ज्वलन-जीवनादिक्रियास्वीकारः। विवक्षितेन्दनादिक्रियाऽन्वितो लोके प्रसिद्धः पारमार्थिकपदार्थो भाव उच्यते। भावश्चासौ मङ्गलं च भावमङ्गलम्, भावतो वा परमार्थतो मङ्गलं भावमङ्गलमिति प्रस्तुतयोजना॥ एतदपि द्विविधम्आगमतः, नोआगमतश्च। तत्राऽऽगमतस्तावदाह मंगलसुयउवउत्तो आगमओ भावमंगलं होइ। नोआगमओ भावो सुविसुद्धो खाइयाईओ॥४९॥ [संस्कृतच्छाया:- मङ्गलश्रुतोपयुक्तः आगमतो भावमङ्गलं भवति। नोआगमतो भावः सुविशुद्धः क्षायिकादिकः॥] मङ्गलं च तच्छ्रुतं च मङ्गलश्रुतं मङ्गलशब्दार्थज्ञानमित्यर्थः, तस्मिन्नुपयुक्तो 'वक्ता' इति गम्यते, आगमतो भावमङ्गलं भवति। किसकी तरह (यानी दृष्टान्त क्या है)? (उत्तर-) इन्द्र आदि की तरह, अर्थात् स्वर्गाधिप आदि की तरह। आदि पद से ज्वलन-जीवत्व आदि का ग्रहण समझना / (अर्थात् ज्वलन क्रिया के अनुभवन संयुक्त 'अग्नि', तथा जीवन-क्रिया-अनुभवयुक्त जीव- ये 'भाव' हैं।) उसे 'भाव' क्यों कहा जाता है? (समाधान-) कहा- इन्दन आदि क्रिया के अनुभव की विद्यमानता होने से / आदि पद से जीवन आदि क्रियाओं का ग्रहण करना चाहिए। विवक्षित इन्दन आदि क्रियाओं से अन्वित (युक्त) जो लोक में प्रसिद्ध होता है, वह पारमार्थिक पदार्थ 'भाव' होता है। (आगमतः भावमङ्गल) भाव और (वही) मङ्गल, वह हुआ भावमङ्गल / भाव से, अथवा परमार्थ रूप में जो मङ्गल है, वह 'भावमङ्गल' है- ऐसी वाक्ययोजना समझनी चाहिए। यह (भावमङ्गल) भी दो प्रकार का हैआगम से, और नो-आगम से / इन (दो भेदों) में 'आगम से भावमङ्गल' का निरूपण कर रहे हैं (49) मङ्गलसुयउवउत्तो आगमओ भावमङ्गलं होइ। नोआगमओ भावो सुविसुद्धो खाइयाईओ || [(गाथा-अर्थः) मङ्गल सम्बन्धी श्रुत-उपयोग वाला (वक्ता) 'आगम से भावमङ्गल' है, और विशुद्ध क्षायिक आदि भाव 'नोआगम से भावमङ्गल' है।] व्याख्याः - मङ्गल जो श्रुत वह मङ्गल श्रुत, अर्थात् मङ्गलशब्द व उसके अर्थ का ज्ञान / उसमें उपयोग वाला यानी 'वक्ता', वह 'आगम से भावमङ्गल' होता है। ---- विशेषावश्यक भाष्य -------- 81