________________ [संस्कृतच्छाया:- अथवेह नमस्कारादिज्ञानक्रियाविमिश्रपरिणामः। नोआगमतो भण्यते यस्मात् तस्याऽऽगमो देशे // ] अथवेह नोआगमतो भावमङ्गलाधिकारे नमस्करणं नमस्कारोऽर्हदादिप्रणतिरित्यर्थः, स आदिर्येषां स्तोत्रादीनां ते नमस्कारादयस्तेषु ज्ञानोपयोगो नमस्कारादिज्ञानम्, क्रिया शिरसि करकमलमुकुलविधानादिका, नमस्कारादिज्ञानं च क्रिया च नमस्कारादिज्ञानक्रिये, ताभ्यां विमिश्रश्चासौ परिणामश्च / स किम्?, इत्याह- 'नोइत्यादि'। चैत्यवन्दनाद्यवस्थायां यो नमस्कारादिज्ञान-क्रियामिश्रितपरिणामः स नोआगमतो भावमङ्गलं भण्यत इत्यर्थः। कुतः?, इत्याह- यस्मात् 'से' तस्यैव भावतः परिणामस्याऽऽगमो नमस्कारादिज्ञानोपयोगलक्षणो देशे एकदेशेऽवयवे वर्तते, नोशब्दश्चेहैकदेशवचनः॥ इति गाथार्थः // 51 // तदेवमुपदर्शितं नाम-स्थापना-द्रव्य-भावभेदतश्चतुर्विधं मङ्गलम्। एतेषु च नामादिमङ्गलेष्वाद्यत्रयस्याऽन्योन्यमभेदं पश्यन् परःप्रेरयति अभिहाणं दव्वत्तं तयत्थसुन्नत्तणं च तुल्लाई। * को भाववजिआणं नामाईणं पइविसेसो? // 52 // [(गाथा-अर्थः) अथवा ज्ञान-क्रिया मिश्र परिणाम रूप जो नमस्कार आदि (क्रिया) हैं, उन्हें नोआगम से भावमङ्गल कहा जाता है, क्योंकि उक्त परिणाम में आगम का सद्भाव एकदेश (रूप) में (ही) है।] : व्याख्याः- अथवा, इस 'नोआगम से भावमङ्गल' के प्रकरण में नमस्कार यानी अर्हन्त आदि के प्रति प्रणति / वह है आदि में जिन स्तोत्र आदि के, उन नमस्कार आदि में ज्ञानोपयोग यानी नमस्कारादि का ज्ञान / क्रिया से तात्पर्य है- मस्तक पर हस्तरूपी कमल को मुकुलवत् (आधा बन्द) स्थापित करना आदि। नमस्कारादिज्ञान तथा (उक्त) क्रिया-दोनों से मिश्रित परिणाम | वह परिणाम क्या है? इसमें समाधान हेतु कहा- नोआगमतः इत्यादि। ... तात्पर्य यह है कि चैत्यवन्दन आदि की स्थिति में जो नमस्कारादिज्ञान व क्रिया से मिश्रित जो (आत्म-) परिणाम है, वह नोआगम से 'भावमङ्गल' कहा जाता है। ऐसा कैसे? इसके उत्तर में कहाचूंकि, उसी भावात्मक परिणाम के देश यानी एकदेश में, अवयव में, नमस्कारादि ज्ञानलक्षण रूप 'आगम' का सद्भाव है, यहां 'नो' शब्द एकदेशवाची है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 51 // . इस प्रकार, नाम, स्थापना, द्रव्य व भाव रूप से चतुर्विध मङ्गल का निदर्शन हुआ। इन नाम आदि मङ्गलों में प्रथम तीन (मङ्गलों) में परस्पर अभिन्नता (समानता) को दृष्टि में रखकर कोई अन्य (जिज्ञासु शिष्य या शंकाकार) प्रश्न उपस्थित कर रहा है (52) अभिहाणं दव्वत्तं, तयत्थसुन्नत्तणं च तुल्लाइ। को भाववज्जिआणं नामाईणं पइविसेसो? // ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 852