________________ मंगलकरणा सत्थं न मंगलं, अह च मंगलस्सावि। मंगलमओऽणवत्था न मंगलममंगलत्ता वा॥१५॥ [संस्कृतच्छाया:- मङ्गलकरणाच्छास्त्रं न मङ्गलम्, अथ च मङ्गलस्यापि। मङ्गलमतोऽनवस्था न मङ्गलममङ्गलत्वाद् वा॥] प्रेरक: प्राह- भो आचार्य! त्वदीयं शास्त्रं न मङ्गलं प्राप्नोति। कुतः?, इत्याह- मङ्गलकरणात्, अमङ्गले हि मङ्गलमुपादीयते, यत्तु स्वयमेव मङ्गलं तत्र किं मङ्गलविधानेन?, न हि शुक्लं शुक्लीक्रियते, नापि स्निग्धं स्नेह्यते, तस्माद् तन्मङ्गलोपादानान्यथानुपपत्तेः . शास्त्रं न मङ्गलम्। अथ मङ्गलं शास्त्रम्, मङ्गलस्याऽपि सतस्तस्याऽन्यद् मङ्गलं क्रियत इत्यभ्युपगम्यते, अत एवं सति तनवस्थामङ्गलानामवस्थानं न क्वचित् प्राप्नोति, तथाहि- यथा मङ्गलस्याऽपि सतः शास्त्रस्याऽन्यद् मङ्गलमुपादीयते, तथा मङ्गलस्याऽपि तद्रूपस्य सतोऽन्यद् मङ्गलमुपादेयम्, तस्याऽप्यन्यत्, अपरस्याऽप्यन्यत्, इत्येवमनवस्था आपतन्ती केन वार्यते? अथ शास्त्रे यदुपात्तं (मङ्गल सम्बन्धी शंका-उत्तर) (इस प्रसंग में कोई आक्षेपकर्ता पूछता है-) (15) मङ्गलकरणा सत्थं न मङ्गलं अह च मङ्गलस्सावि। मङ्गलमओऽणवत्था, न मङ्गलममङ्गलत्ता वा // [(गाथा-अर्थः) चूंकि शास्त्र के लिए मङ्गल किया जाता है तो इससे 'शास्त्र (स्वयं) मङ्गलरूप नहीं है'- यह सिद्ध होता है। यदि मङ्गलरूप का भी मङ्गल करना अपेक्षित हो तो फिर अनवस्था-दोष आता है, क्योंकि 'मङ्गल' भी अन्य मङ्गल के अभाव में अमङ्गलरूप (ही) होगा।], व्याख्याः- किसी आक्षेपकर्ता (प्रेरक) ने पूछा- हे आचार्यप्रवर! आपका शास्त्र मङ्गलरूपता को नहीं प्राप्त है। (प्रश्न) क्यों? (उत्तर-) इसलिए कि उस (शास्त्र) के लिए मङ्गल-विधान किया जाता है। क्योंकि जो मङ्गलरूप नहीं होता, उसी के लिए मङ्गल का विधान किया जाता है। जो स्वयं मङ्गलरूप हो, उसके लिए मङ्गल-विधान की क्या आवश्यकता? श्वेत वस्त्र को कोई श्वेत नहीं करता, चिकने को चिकना नहीं किया जाता। इसलिए मङ्गल किये जाने की संगति तभी बैठती है जब कि शास्त्र को अमङ्गलरूप माना जाय। अतः शास्त्र मङ्गलरूप नहीं है। अच्छा, चलो मान भी लिया कि शास्त्ररूप है, तो फिर उसके लिए अन्य मङ्गल किया जाता है तो ऐसा मानने पर भी अनवस्था-दोष आएगा और मङ्गल करने की अन्तिम स्थिति नहीं हो पाएगी, क्योंकि शास्त्र के मङ्गल होने पर भी, उस (प्रथम) मङ्गल के लिए भी अन्य(द्वितीय) मङ्गल करना होगा, और उस (द्वितीय) मङ्गल के लिए भी अन्य (ततीय) मङ्गल, उस (ततीय) मङ्गल के लिए भी अन्य (चौथा) मङ्गल और (इसी तरह) उस (चौथे) मङ्गल के लिए भी अन्य (पांचवां) मङ्गल, इस प्रकार अनवस्था जो आएगी, उसका कौन (व कैसे) निवारण करेगा? अच्छा, ऐसा मान लें कि शास्त्र में जो मङ्गल किया जाता है, उसके लिए अन्य मङ्गल की अपेक्षा नहीं होती और इस प्रकार अनवस्था नहीं हो पाएगी, तो इस स्थिति में भी दोष . Ka 38 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------