________________ यद्यागमकारणमेवेह विद्यते, तर्हि कथमिदमागमो येनाऽऽगमतो द्रव्यमङ्गलं स्यात्? इति चेत् / उच्यते- आगमस्य कारणभूता आत्मादयोऽपि कारणे कार्योपचारादागमत्वेनोच्यन्ते, भवति च कारणे कार्यव्यपदेशः, यथा- 'तन्दुलान् वर्षति पर्जन्यः' / तस्मादागमतो द्रव्यमङ्गलं न विरुद्ध्यते // इति गाथार्थः॥३०॥ अथ- "नत्थि नयेहिं विहूणं सुत्तं अत्थो य जिणमए किंचि। आसज्ज उ सोयारं नये नयविसारओ बूया"[नास्ति नयैर्विहीनं सूत्रमर्थश्च जिनमते किञ्चित्। आसाद्य तु श्रोतारं नयेन च विशारदो ब्रूयात् // ] इति वचनाज्जिनमते सर्वेऽपि पदार्था नयैर्विचारणीयाः, इत्यतो द्रव्यमङ्गलमपि नयैर्विचारयन्नाह एगो मंगलमेगं णेगा णेगाइं णेगमनयस्स। संगहनयस्स एक्कं सव्वं चिय मंगलं लोए॥३१॥ [संस्कृतच्छाया:- एको मङ्गलमेकमनेकेऽनेकानि नैगमनयस्य। संग्रहनयस्यैकं सर्वमेव मङ्गलं लोके // ] (प्रश्न-) यदि (आगम न होकर) आगम का कारण यहां है तो फिर ऐसा क्यों कहते हैं कि 'आगम से द्रव्यमङ्गल है'। (उत्तर के रूप में) कह रहे हैं- आगम के कारणभूत आत्मा आदि भी जो कारण हैं, उनमें 'कार्य' का उपचार करके उन (कारणों) को 'आगम' रूप से कहा जाता है। कारण में कार्य का व्यपदेश (लोक में सर्वत्र) होता है। जैसे- 'मेघ चावलों की वर्षा कर रहे हैं' (या 'चावल बरस रहा है' -ऐसा कहा जाता है, यहां चावलों की उत्पत्ति में कारणभूत वर्षा-जल को चावलरूपी कार्य रूप में कह दिया जाता है)। इसलिए, आगम से द्रव्यमङ्गलपना विरोधपूर्ण नहीं है। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 30 // (सामान्य व विशेष नय) . अस्तु, ऐसा कहा गया है कि “जिन-शासन में कोई भी सूत्र या अर्थ नयों के बिना नहीं है, इसलिए नयज्ञ श्रोता को प्राप्त कर, नयविशारद (वक्ता) शास्त्र-कथन (व्याख्यान) करे"। अतः जिनमत में सभी पदार्थ नयों से विचारणीय होते हैं, इस दृष्टि से 'द्रव्यमङ्गल' के विषय में भी नयों के माध्यम से विचार करते हुए (भाष्यकार) कह रहे हैं (31) एगो मङ्गलगं, णेगा णेगाइं गमनयस्स / संगहनयस्स एक्कं, सव्वं चिय मङ्गलं लोए // [(गाथा-अर्थः) नैगम नय की अपेक्षा से यदि एक (अनुपयुक्त, मङ्गलशब्दार्थ का वक्ता) है तो एक द्रव्यमङ्गल है, और यदि अनेक (वैसे) वक्ता हैं तो द्रव्यमङ्गल अनेक हैं। किन्तु संग्रहनय की अपेक्षा से समस्त लोक में केवल एक ही द्रव्यमङ्गल है।] ----- विशेषावश्यक भाष्य -------- 59 EEE