________________ [संस्कृतच्छाया:- ज्ञायकभव्यशरीरातिरिक्तमिह द्रव्यमङ्गलं भवति / या मङ्गल्या क्रिया तां कुर्वाणोऽनुपयुक्तः॥] . इह तावद् भावतः परमार्थतो मङ्गलं द्विविधम्-जिनप्रणीत आगमः, तत्प्रणीता मङ्गल्या प्रत्युपेक्षणादिक्रिया च। इतश्च पूर्वमागमतो नोआगमतश्च यद् द्रव्यमङ्गलमुक्तं तत्सर्वमागममङ्गलापेक्षमेव, ज्ञशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तं तु द्रव्यमङ्गलं मङ्गल्यक्रियामेवाऽऽश्रित्य भणिष्यत इति परिभावनीयम्।अथ गाथार्थो व्याख्यायते- तत्र ज्ञशरीर-भव्यशरीराभ्यां व्यतिरिक्तमिह द्रव्यमङ्गलं भवति। कः?, इत्याह- अनुपयुक्तः, तां कुर्वाणो या। किम्?, इत्याह-या प्रत्युपेक्षण-प्रमार्जनादिका मङ्गल्या क्रिया। इदमुक्तं भवतियोऽनुपयुक्तो जिनप्रणीतां मङ्गलरूपां प्रत्युपेक्षणादिक्रियां करोति, स नोआगमतो ज्ञशरीर-भव्यशरीरातिरिक्तं द्रव्यमङ्गलम्, उपयोगरूपोऽत्राऽऽगमो नास्तीति नोआगमता। ज्ञशरीर-भव्यशरीरयोर्ज्ञानापेक्षा द्रव्यमङ्गलता. अत्र त क्रियापेक्षा. अतस्तदव्यति अनुपयुक्तस्य क्रियाकरणात् तु द्रव्यमङ्गलत्वं भावनीयम्, उपयुक्तस्य तु क्रिया यदि गृह्येत तदा भावमङ्गलतैव स्यादिति भावः॥ इति गाथार्थः॥४६॥ अथ प्रकारान्तरेणापि प्रस्तुतमङ्गलमाह [(गाथा-अर्थः) उपयोगरहित होकर मङ्गल-क्रिया करने वाले को ज्ञशरीर व भव्यशरीर से भिन्न, 'नो-आगम से द्रव्यमङ्गल' कहा जाता है।] व्याख्याः- यहां 'भाव' से, यानी परमार्थतः मङ्गल दो प्रकार का है- (१)जिनप्रणीत आगम, और (२)जिन-प्रणीत प्रत्युपेक्षा आदि ‘मंगल्य' क्रिया। इससे पूर्व, 'आगम से' तथा 'नो-आगम से' जिस द्रव्यमङ्गल का निरूपण किया गया, वह सारा, आगम रूप मङ्गल की अपेक्षा से ही है। किन्तु : ज्ञशरीर व भव्यशरीर से भिन्न जो (तीसरा) द्रव्यमङ्गल है, वह मंगल्य क्रिया का आश्रय करके ही कहा जा रहा है- यह समझ लेना चाहिए। अब गाथा के अर्थ का व्याख्यान किया जा रहा है- यहां ज्ञशरीर से भिन्न द्रव्यमङ्गल (का कथन) है। वह द्रव्यमङ्गल आखिर कौन है? इस (जिज्ञासा के समाधान के) लिए कहा- अनुपयुक्तः / उपयोगरहित होकर उसे करता हुआ। (प्रश्न-) किसे (क्या) करता हुआ? अतः (उत्तर में) कहा- (मङ्गल्या क्रिया, ताम्)। प्रत्युपेक्षा, प्रमार्जना आदि जो मंगल्य (मङ्गलकारी) क्रिया है, उसे (करता हुआ)। तात्पर्य यह है कि जो उपयोगरहित होकर जिनप्रणीत (जिन उपदिष्ट) प्रत्युपेक्षा आदि मंगल्य क्रिया करता है, वह नो-आगम से ज्ञशरीर व भव्यशरीर से भिन्न, द्रव्यमङ्गल है। चूंकि यहां उपयोगरूप आगम (का सद्भाव) नहीं है, इसलिए 'नो-आगमता' है। ज्ञशरीर व भव्यशरीर तो ज्ञान की अपेक्षा से 'द्रव्यमङ्गल' है, किन्तु यहां वह 'क्रिया' की अपेक्षा से कहा गया है इसलिए उन (ज्ञशरीर व भव्यशरीर) से भिन्नता है। उपयोगसहित की क्रिया को (मङ्गलता की दृष्टि से) देखें तो उसकी भावमङ्गलता ही (मान्य) होगी- यह तात्पर्य है| यह गाथा का अर्थ हुआ // 46 // अब प्रकार से प्रस्तुत मङ्गल (नो-आगम से द्रव्यमङ्गल) का, निरूपण किया जा रहा है VA 78 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------