________________ -इति विशेषवादिना प्रोक्ते सामान्यवादी संग्रहः प्राह- ननु यत एव वनस्पतिरित्युक्ते वृक्षादयः प्रतीयन्ते, अत एव ते तदनन्तरभूताः, हस्तस्येवाऽङ्गुलयः, इह यस्मिन्नुच्यमाने यत् प्रतीयते, तत् ततो व्यतिरिक्तं न भवति, यथा हस्त इत्युक्तेऽङ्गुल्यादयः प्रतीयमाना हस्ताद् न व्यतिरिक्ताः, प्रतीयन्ते च वनस्पतिरित्युक्ते वृक्षादयः, इत्यमी न वनस्पतिव्यतिरिक्ताः, ततो न सामान्यादतिरिक्तः कोऽपि विशेषः समस्ति, इत्येकमेव सर्वत्र द्रव्यमङ्गलमिति / अथोपपत्त्यन्तरेणाऽपि सामान्यवाद्येव वृक्षादीनां सर्वेषामपि वनस्पतिसामान्यरूपतां समर्थयन्नाह चूओ वणस्सइच्चिय मूलाइगुणो त्ति तस्समूहो व्व। गुम्मादओ वि एवं सव्वे न वणस्सइविसिट्ठा // 33 // [संस्कृतच्छाया:- चूतो वनस्पतिरेव मूलादिगुण इति तत्समूह इव। गुल्मादयोऽप्येवं सर्वे न वनस्पतिविशिष्टाः॥] 'चूतः' आम्रो वनस्पतिरेव वनस्पतिसामान्यं न व्यभिचरतीत्यर्थः, इति प्रतिज्ञा, मूल-कन्द-स्कन्ध-त्वक्-शाखा-प्रवालपत्र-पुष्प-फल-बीजादिगुणत्वादिति हेतुः, चूतसमूहवदिति दृष्टान्तः, इह यो यो मूलादिगुणः स स वनस्पतिसामान्यरूप एव, यथा विशेषवादी की ओर से (उपर्युक्त) प्रश्न पूछने पर सामान्यवादी संग्रह (के समर्थक) ने कहा- चूंकि 'वनस्पति' ऐसा कहने पर वृक्ष आदि की प्रतीति होती है, इसलिए वे (वृक्ष आदि) वनस्पति से उसी तरह अभिन्न, अ-पृथक् हैं, जैसे हाथ से अंगुलियां / यहां जिसके उच्चारण करने पर जो प्रतीति में आता है, वह उससे पृथक् नहीं होता, जैसे 'हाथ' कहने से अंगुलि आदि की प्रतीति होती है जो हाथ से पृथक् नहीं होती। इसी प्रकार, 'वनस्पति’ ऐसा कहने पर, वृक्ष आदि की प्रतीति होती है, अतः वृक्ष आदि भी वनस्पति से पृथक् नहीं हैं, इसलिए 'सामान्य' से भिन्न कोई 'विशेष' नहीं होता, इस तरह सर्वत्र एक ही द्रव्यमङ्गल है (यह सिद्ध हुआ)। अब, अन्य युक्ति के द्वारा सामान्यवादी ही सभी वृक्षों आदि की वनस्पतिसामान्यरूपता का समर्थन करते हुए जो कह रहा है (उसे भाष्यकार प्रस्तुत गाथा द्वारा कह रहे हैं) (33) चूओ वणस्सइच्चिय मूलाइगुणो त्ति तस्समूहो व्व / गुम्मादयो वि एवं सब्वे न वणस्सइविसिट्ठा // [(गाथा अर्थः) जिस प्रकार, आम्र-वृक्षों का समूह वनस्पति-सामान्य है, वैसे ही मूल, स्कन्ध आदि गुणों वाला होने से आम्र वृक्ष वनस्पति-सामान्य ही है। इसी प्रकार, गुल्म आदि भी सभी (वनस्पति-सामान्य ही हैं, और इनमें से कोई भी) वनस्पति-विशेष रूप नहीं हैं।] व्याख्याः- चूत यानी आम्र (का विशेष वृक्ष) वनस्पति ही है, अर्थात् वह वनस्पति-सामान्य से कभी रहित नहीं होता। (इसमें युक्ति निम्न प्रकार है-) मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज- ये गुण जिनमें होते हैं, वे वनस्पति-सामान्य ही कहे जाते हैं। जैसे, आम्र-वृक्षों का समूह उन मूल, (स्कन्ध) आदि गुणों से युक्त होने के कारण वनस्पति-सामान्य ही है। आम्र वृक्ष Mia 62 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------