________________ तदेवं विचारितं नयैर्द्रव्यमङ्गलम्, तथा च सति समर्थितमागमतो द्रव्यमङ्गलम्। अथ नोआगमतस्तदभिधीयते। तच्च ज्ञशरीरभव्यशरीर-तद्व्यतिरिक्तभेदात् त्रिधा / तत्र ज्ञशरीर-भव्यशरीरलक्षणभेदद्वयमाह मंगलपयत्थजाणयदेहो भव्वस्स वा सजीवोत्ति। नोआगमओ दव्वं आगमरहिओ त्ति जं भणिअं॥४४॥ [संस्कृतच्छायाः- मङ्गलपदार्थज्ञायकदेहो भव्यस्य वा सजीव इति। नोआगमतो द्रव्यमागमरहित इति यद् भणितम् // ] ... 'नोआगमओ दव्वं त्ति' नोआगमतो ज्ञशरीरं द्रव्यमङ्गलमित्यर्थः। कः? इत्याह- मङ्गलपदार्थज्ञस्य देहः, इदमुक्तं भवतिइह मङ्गलपदार्थः पूर्वं येन स्वयं सम्यग् विज्ञातः, परेभ्यश्च प्ररूपितः, तस्य संबन्धी जीवविप्रमुक्तः सिद्धशिलातलादिगतो देहोऽतीतकालनयानुवृत्त्याऽतीतमङ्गलपदार्थज्ञानाऽऽधारत्वाद् नोआगमतो द्रव्यमङ्गलमुच्यते। नोशब्दस्येह सर्वनिषेधवचनत्वात्, आगमस्य च सर्वथाऽत्राऽभावाद नोआगमता द्रष्टव्या, अतीतमङ्गलपदार्थज्ञानलक्षणाऽऽगमपर्यायकारणत्वात् तु द्रव्यमङ्गलता, यथाऽतीतघृताधारपर्यायकारणत्वाद् रिक्तघृतकुम्भे घृतघटतेति। 'भव्वस्स व त्ति' वाशब्दो द्वितीयपक्षसमुच्चये, भव्यस्य च (ज्ञशरीर-भव्यशरीर-तद्व्यतिरिक्त नोआगम द्रव्यमङ्गल) इस प्रकार, नयों की अपेक्षा से 'द्रव्यमङ्गल' का विचार किया गया, और इस तरह 'आगम से द्रव्यमङ्गल' का समर्थन किया गया। अब ‘नो आगम द्रव्यमङ्गल' का निरूपण किया जाएगा। यह ज्ञशरीर, भव्यशरीर और तदतिरिक्तशरीर- इस प्रकार तीन प्रकार का है। इनमें ज्ञशरीर व भव्यशरीर (नो-आगम द्रव्यमङ्गल) के लक्षण और भेद का निरूपण करने हेतु कह रहे हैं (44) मङ्गलपयत्थजाणयदेहो भव्वस्स वा सजीवो त्ति। नोआगमओ दवं आगमरहिओ त्ति जं भणिअं॥ [(गाथा-अर्थः) मङ्गल पदार्थ के ज्ञाता का देह, अथवा भविष्य में मङ्गल पदार्थ के ज्ञाता बालक का सजीव शरीर, चूंकि आगम (रूपी मङ्गल) से रहित है, इसलिए 'नो आगम से द्रव्यमङ्गल' कहा जाता है। व्याख्याः- नोआगमतो द्रव्यम् / इसका अर्थ है- नोआगम से ज्ञ-शरीर 'द्रव्य मङ्गल' है। वह किसका है? इस (प्रश्न के समाधान के लिए कहा- मङ्गल पदार्थ के ज्ञाता का शरीर / तात्पर्य यह है कि मङ्गल पदार्थ को पहले जिसने अच्छी तरह स्वयं जाना, उसे औरों को भी बताया- समझाया, सिद्धशिलातल में गए हुए उस ज्ञाता का जो जीवरहित शरीर है, वह अतीत काल के आधार पर, अतीत में मङ्गल पदार्थ के ज्ञान का आधार होने से, 'नोआगम द्रव्यमङ्गल' कहा जाता है। 'नो' शब्द यहां सर्वप्रकार के निषेध का वाचक है, इसलिए आगम का सर्वथा अभाव होने से 'नोआगमता' दृष्टिगोचर है ही। जिस प्रकार, अतीत में घृत के आधारभूत घट-पर्याय का कारण होने से घृत से रिक्त घड़ा भी ‘घी का घड़ा' कहा जाता है, इसी प्रकार अतीत में मङ्गलपदार्थ के ज्ञानरूपी आगमपर्याय का Ma 74 -------- विशेषावश्यक भाष्य ----------