________________ आचार्य जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण-रचित ( विशेषावश्यक भाष्य ___ (मूल व हिन्दी अनुवाद) [मलधारी हेमचन्द्र-विरचित 'शिष्यहिता' बृहद्वृत्ति, मूल व हिन्दी अनुवाद सहित] (आचार्य मलधारी हेमचन्द्र द्वारा विरचित शिष्यहिता नामक बृहद्वृत्ति का मङ्गलाचरण) श्रीसिद्धार्थनरेन्द्रविश्रुतकुलव्योमप्रवृत्तोदयः, सद्बोधांशुनिरस्तदुस्तरमहामोहान्धकारस्थितिः। दृप्ताशेषकुवादिकौशिककुलप्रीतिप्रणोदक्षमो, जीयादस्खलितप्रतापतरणिः श्रीवर्धमानो जिनः // श्री सिद्धार्थ राजा के प्रसिद्ध कुलरूपी आकाश में उदित होकर सम्यक् ज्ञानरूपी किरणों द्वारा कठिन मोहरूपी अन्धकार की स्थिति को नष्ट करने वाले, समस्त अभिमानी कुवादी (मिथ्यामतवाले) रूपी उल्लुओं के समूह की प्रसन्नता को नष्ट करने में समर्थ, और मन्द न पड़नेवाले प्रताप से युक्त सूर्यरूपी श्री वर्धमान जिनेन्द्र की जय हो // 1 // . येन क्रमेण कृपया श्रुतधर्म एष, आनीय मादृशजनेऽपि हि संप्रणीतः। . . . . श्रीमत्सुधर्मगणभृत्प्रमुखं नतोऽस्मि, तं सूरिसंघमनघं स्वगुरूंश्च भक्त्या / / 2 / / जिनकी कृपा से यह श्रुत-धर्म क्रमशः प्रवर्तित होता हुआ मेरे जैसे (मन्दबुद्धि) तक पहुंच पाया है, उन गणधर-प्रमुख श्री सुधर्मा स्वामी के प्रति, (परवर्ती) निष्कलंक आचार्यों के संघ के प्रति तथा अपने (श्रद्धास्पद) गुरु-जनों के प्रति मैं भक्ति से नतमस्तक हूं॥2॥ आवश्यकाति-विनिबद्ध-गभीर-भाष्य-पीयूषजन्म-जलधिर्गुणरत्नराशिः / ख्यातः क्षमाश्रमणतागुणतः क्षितौ यः, सोऽयं गणिर्विजयते जिनभद्रनामा // 3 // जो आवश्यक सूत्र पर निबद्ध गम्भीर भाष्यरूपी अमृत को जन्म देने वाले एक गुणरत्नाकर समुद्र के समान हैं, तथा (अपने अनेक) गुणों के कारण इस पृथ्वी पर जो ‘क्षमाश्रमण' के नाम से प्रसिद्ध हैं, उन आचार्यश्री जिनभद्र सूरि की विजय हो // 3 // MA ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 1