________________ इसी तरह, शिष्यहिता वृत्ति के अंत में भी मलधारी हेमचंद्र ने इसी भाव को पुनः स्पष्ट करते हुए कहा है कि जिनभद्रगणि-रचित भाष्य पर स्वयं ग्रन्थकार ने (स्वोपज्ञ) व्याख्या की, कोट्याचार्य ने भी व्याख्या की उस सबके रहते हुए मेरा इस वृत्ति के निर्माण का प्रयास यद्यपि सुसंगत नहीं ठहरता, तथापि कुछ मंदबुद्धि शिष्य हैं जो सरल व्याख्या चाहते हैं, उन पर उपकार-भावना से तथा अपनी श्रुत-भक्ति के कारण, साथ ही स्वपरकल्याण को लक्ष्य में रख कर, इस (बृहद्) वृत्ति की रचना की गई है। वस्तुतः प्रत्येक जैनमुनि स्वपरकल्याण-तत्त्पर होते ही हैं। शिष्यहिता बृहद्वृत्ति आदि ग्रंथों की रचना के पीछे उनकी स्वपरकल्याण भावना, धर्मप्रभावना, करुणा एवं जिनवाणी की सेवा ही रही है। आचार्य मलधारी हेमचन्द्र का जीवन चरित प्राकृत द्याश्रय काव्य की वृत्ति (मलधारी राजशेखर कृत) की प्रशस्ति के अनुसार, मलधारी हेमचन्द्र के गुरु का नाम था- मलधारी अभयदेव सूरि / स्वयं मलधारी हेमचन्द्र ने अपने गुरु के महनीय व्यक्तित्व का तो संकेत किया ही है, साथ ही स्वयं को इनका शिष्य होने तथा बृहद्वृत्ति के रचयिता होने का निरूपण किया है। ___मलधारी हेमचन्द्र का गृहस्थ नाम प्रद्युम्न था और वे राज्यमंत्री के पद पर प्रतिष्ठित थे। इनके चार पत्नियां थीं, किन्तु वैराग्यवश ये दीक्षित हो गये और उनके निर्मल ज्ञान व निष्कलंक आचार के कारण मुनिसंघ में इनकी प्रतिष्ठा निरन्तर बढ़ती ही गई। गुरु अभयदेव सूरि का स्वर्गवास हो गया, तब ये ही उनके उत्तराधिकारी आचार्य बने। धर्मप्रभावना का महनीय कार्य करते हुए उन्होंने अंत में 47 दिनों की सल्लेखना धारण की और स्वर्गस्थ हुए। इनके बाद, इनके शिष्यों में से श्रीचंद्र सूरी इनके उत्तराधिकारी आचार्य बने। . आ. हेमचंद्र (मलधारी) का महनीय व्यक्तित्व मलधारी हेमचंद्र के तीन शिष्य थे- विजयसिंह सूरी, चंद्रसूरी, और विबुधचंद्र सूरि। इनमें श्री चंद्रसूरि ने 'सुव्रत चरित' की प्रस्तावना में अपने गुरु के सद्गुणों का उत्कीर्तन करते हुए उनकी विद्वत्ता व धर्मप्रभावना 71. श्रीजिनभद्रगणे: पूज्यस्यैतानि भाष्यवचनानि। तर्कव्यतिकरदुर्गाण्यतिगम्भीराणि ललितानि // विवृतानि स्वयमेव हि कोट्याचार्यैश्च बुधजनप्रवरैः / संगच्छते क्व पुनरपि ममापि वृत्तेः प्रयासोऽत्र॥ ऋजुभणितिमिच्छतामिह तथापि मत्तोऽपि मंदबुद्धीनाम्। उपकारः केषांचिद् समीक्ष्यते शिष्टलोकानाम् // तेनात्मपरोपकृति संभाव्य मयापि भाष्यवृत्तिरियम् / विहिता श्रुतेऽतिभक्तिं शुभविनोदं च चिन्तयता॥ (बृहद् वृत्ति, अंतिम प्रशस्ति, पद्य 1-4) / 72. विस्फूर्जत्कलिकालदुस्तर तम:संतानलुप्तस्थितिः, सूर्येणेव विवेक भूधर सिरस्यासाद्य येनोदयम्। सम्यग्ज्ञानकरैश्चिरन्तनमुनिक्षुण्णः समुद्योतितो मार्गः सोऽभयदेवसूरिरभवत् तेभ्यः प्रसिद्धो भुवि॥ तच्छिष्यलवप्रायैरगीतार्थैरपि शिष्टजनतुष्ट्यै। श्री हेमचंद्रसूरिभिः इयमनुरचिता प्रकृतवृत्तिः // (शिष्यहिता टीका, अंत-प्रशस्ति, पद्य-9-10)। श्रीमदभयसूरिचरणाम्बुजचंचरीक-श्रीहेमचंद्रसूरिरचितम् आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्यानकं समाप्तम् (आवश्यकवृत्ति प्रदेशव्याख्या की प्रशस्ति)। RO @R@20@R@ @R@ @R [56] Re0BARB0R@@Re0@R