________________ मलधारी हेमचंद्र का स्थितिकाल इनके आचार्य-पदारोहण का समय वि. सं. 1168 है। एक दशक या कुछ अधिक समय तक आचार्य पद पर रहने के बाद ये दिवंगत हुए। मलधारी हेमचंद्र के एक शिष्य थे- विजयसिंह सूरि, जिन्होंने अपने गुरु की रचना 'धर्मोपदेशमाला' पर बृहद्वृत्ति लिखी थी। उसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि इसकी रचना वि. सं. 1191 में हुई थी। यहां के विवरण से ऐसा लगता है कि तब तक मलधारी हेमचंद्र के दिवंगत हुए पर्याप्त समय, प्रायः एक दशक, व्यतीत हो चुका था। चूंकि मलधारी हेमचंद्र के ग्रंथों की प्रशस्तियों में जो रचना-समय निर्दिष्ट हुए हैं, उनमें वि. सं. 1177 के बाद का कोई उल्लेख नहीं है। अतः विद्वानों ने इनका समय वि. सं. 12 वीं शती, लगभग वि. सं. 1140-1180, निर्णीत किया है। प्रस्तुत संस्करणः मलधारी हेमचंद्र कृत शिष्यहिता नामक बृदवृत्ति के साथ विशेषावश्यक भाष्य का प्रस्तुत संस्करण जैन विद्या के, विशेष कर जैन दर्शन के अध्येताओं, अनुसंधाताओं व विद्वानों के लिए अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि इसमें बृहद्वृत्ति का हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है और जो अब तक का सर्वप्रथम प्रयास है। यहां यह विशेष ज्ञातव्य है कि नियुक्ति व भाष्य की गाथाएं जिस रूप में पूर्व संस्करण में प्रकाशित प्राप्त हुईं, उन्हें उसी रूप में दिया गया है। अन्त में गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः। अतएव इस उक्ति के अनुसार कार्य के प्रतिपादन में कुछ त्रुटियां सम्भाव्य हैं। आशा है, यह प्रकाशन विद्वानों, अनुसन्धाताओं व स्वाध्यायप्रेमियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। 78. (क) शिष्यहिता वृत्ति की प्रशस्ति में इसका रचना-काल वि. सं. 1175 निर्दिष्ट है- शरदांच पंचसप्तत्यधिक-एकादशशतेषु अतीतेषु। कार्तिकसितपंचम्यां श्रीमज्जयसिंहनृपराज्ये (प्रशस्ति-पद्य 11) // (ख) भवभावनाविवरण की प्रशस्ति में रचना-काल वि. सं. 1177 निर्दिष्ट है- सप्तसप्तत्यधिकैकादशवर्षशतैः विक्रमादतिक्रान्तैः। निष्पन्ना वृत्तिरियं श्रावणरविपंचमीदिवसे॥ ROCRO0BROORBOOR [59] RB0BCROPOSAROORBOOR