________________ (1) आवश्यक टिप्पणक [यह हरिभद्रीय आवश्यक वृत्ति पर टिप्पण है। इसे आवश्यक वृत्तिप्रदेशव्यास्या... हरिभद्र आवश्यक वृत्तिटिप्पणक भी कहा जाता है। यह 4600 श्लोकप्रमाण है।] (2) शतक विवरण [मूल ग्रन्थ की रचना शिवशर्मसूरि द्वारा की गई है। मूल ग्रन्थ में 106 पद्य हैं। गुणस्थानों व जीवस्थानों का निरूपण इस ग्रंथ में हैं। इस वृत्ति का नाम विनयहिता है। वृत्ति में विषय को विस्तार से समझाया गया है। वृत्ति का परिमाण 3740 श्लोकप्रमाण है।] (3) अनुयोगद्वार वृत्ति [अनुयोग-द्वार मूल सूत्र पर 5900 श्लोक प्रमाण वृत्ति है। सूत्रों के पदों के सरल अर्थ दिये गए हैं। यत्र-तत्र संस्कृत श्लोक भी उद्धृत हैं। रचना में वृत्तिकार की आगममर्मज्ञता का स्पष्ट दर्शन होता है।] (4) उपदेशमाला सूत्र [मूल ग्रन्थ में 505 गाथाएं है, दान, शील, तप, भावना- इनका विस्तृत विवेचन है, यह धार्मिक व लौकिक कथाओं से पूर्ण है, यह 14 हजार श्लोक प्रमाण है। सम्भवतः मलधारी हेमचंद्र की यह प्रथम रचना है।] (5) उपदेश माला-वृत्ति (विवरण) [संस्कृत टीका, जैन कथाओं का समृद्ध संग्रह है, इस ग्रन्थ का मान 23868 श्लोक प्रमाण है।] (6) जीवसमास विवरण [14 गुणस्थानों का, तथा जीव-अजीव तत्त्व का विवेचन है। जीवसमास पर पहले भी कई टीकाएं थीं। यह 7000 श्लोक प्रमाण है।] (7) भव-भावना सूत्र [अधिकांश गाथाएं प्राकृत में हैं। कुल 501 गाथाएं हैं। भवभावना का 322 गाथाओं में वर्णन है। धार्मिक कथाओं की यह स्रोत है। मेडता व छत्रपल्ली में इसकी रचना सम्पन्न हुई।] (8) भवभावना सूत्र विवरण [भव भावना मूल ग्रन्थ पर यह संस्कृत टीका है। प्राकृत में धार्मिक कथाएं भी दी गई हैं। कथाओं व आध्यात्मिक रूपकों के माध्यम से विषयवस्तु को सुबोध्य बनाया गया है। इसका रचना-काल वि. सं. 1177 है। मलधारी हेमचंद्र की यह अंतिम रचना है- ऐसा प्रतीत होता है।] (9) नन्दिटिप्पण। इनके समस्त ग्रन्थों का मान अस्सी हजार श्लोक प्रमाण है। आवश्यक टिप्पण, अनुयोग वृत्ति, नन्दि टिप्पण एवं विशेषावश्यक-बृहद्वृत्ति (शिष्यहिता)- ये कृतियां आगम-व्याख्यात्मक हैं। इनके शिष्य श्रीचंद्रसूरि ने नन्दिसूत्र-टिप्पण को छोड़ कर गुरु द्वारा अन्य ग्रन्थों के निर्माण किये जाने का स्पष्ट निर्देश किया है।" 76. झटिति निवेशितम् आवश्यकटिप्पणकाभिधानम्, ततोऽपरमपि शतकविवरण-नामकम्, अन्यदपि अनुयोगद्वारवृत्तिसंज्ञितम्, ततोऽपरमपि उपदेशमालासूत्राभिधानम्, अपरं तु तवृत्तिनामकम, अन्यच्च जीवसमासविवरणनामधेयम्, अन्यत्तु भवभावनासूत्रसंज्ञितम्, अपरं तु तद्विवरणनामकम्, अन्यच्च....नन्दिटिप्पणकनामधेयं नूतनदृढफलकम् (शिष्यहिता बृहद्वृत्ति का अन्त)। 77. मुनिसुव्रत्तचरित काव्य की प्रस्तावना। RBOROBORO BR00R [58] ROBOROSCRB0BROR