________________ नियुक्तिकार भद्रबाहु आचार्य भद्रबाहु नाम के दो आचार्य हुए हैं। एक हैं- छेदसूत्रकर्ता श्रुतकेवली स्थविर भद्रबाहु (प्रथम), और दूसरे हैं- प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वराहमिहिर के भाई, अष्टांगनिमित्त-ज्ञानी व मंत्रशास्त्रपारंगत भद्रबाहु (द्वितीय)। आचार्य शीलांक (वि. 8-9 शती) तथा मलधारी हेमचन्द्र (वि. 12वीं शती) ने चतुर्दशपूर्वधर श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी को ही नियुक्तिकार माना है। किन्तु इस मान्यता को युक्तिसंगत व प्रामाणिक नहीं माना जा सकता, क्योंकि स्वयं नियुक्तिकार ने दशाश्रुतस्कन्ध-नियुक्ति में छेदसूत्रकर्ता चतुर्दशपूर्वधारी अंतिमश्रुतकेवली भद्रबाहु को नमस्कार किया है: वंदामि भद्दबाहुं पाइणं चरियसगलसुयनाणिं। सुत्तस्स कारणमिसिं दसासु कप्पे य ववहारे॥ अर्थात् दशाश्रुतस्कन्ध, कल्प (बृहत्कल्प) व व्यवहार सूत्र के रचयिता, प्राचीनगोत्रीय, अंतिमश्रुतकेवली महर्षि भद्रबाहु को मैं नमस्कार करता हूं। निश्चित ही यह नमस्कार तभी संगत होता है जब हम नियुक्तिकार को भद्रबाहु (द्वितीय) मानें। इसी प्रकार, उत्तराध्ययन-नियुक्ति (गाथा-233) में नियुक्तिकर का कथन इस प्रकार है सव्वे एए दारा मरणविभत्तीह वणिया कमसो। सगलणिउणे पयत्थे जिणचउद्दसपुट्विं भासंति॥ ... अर्थात् (उत्तराध्ययन के अकाममरणीय नामक अध्ययन से सम्बन्धित) मरणविभक्ति से सम्बन्धित . सभी द्वारों का अनुक्रम से वर्णन किया है। वस्तुतः पदार्थों का सम्पूर्ण एवं विशद वर्णन तो जिन यानी केवली व चतुर्दशपूर्वधारी ही कर सकते हैं। उक्त कथन से स्पष्ट है कि नियुक्तिकर्ता चतुर्दशपूर्वधर नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, नियुक्तियों में ऐसी घटनाएं व आचार्यों के प्रसंग वर्णित हैं जो श्रुतकेवली भद्रबाहु के उत्तरवर्ती हैं। जैसे- नियुक्तियों में कालकाचार्य, पादलिप्ताचार्य, स्थविर भद्रगुप्त, वज्रस्वामी, आर्य रक्षित, फल्गुरक्षित आदि ऐसे आचार्यों के प्रसंग वर्णित हैं, जो प्रथम भद्रबाहु से बहुत अर्वाचीन हैं। अतः निश्चित ही नियुक्तियों की रचना निमित्तज्ञानी भद्रबाहु (द्वितीय) द्वारा ही की गई है। नियुक्तियों के श्रुतकेवली-रचित होने की मान्यता का कारण यह हो सकता है कि आवश्यक नियुक्ति का प्रारम्भ श्रुतकेवली भद्रबाहु (प्रथम) द्वारा किया गया हो, बाद में उसकी गाथाओं में क्रमशः वृद्धि होती रही हो और इसे अन्तिम रूप भद्रबाहु (द्वितीय) ने दिया हो। नियुक्ति-गाथाओं में वृद्धि होती रहने की पुष्टि कई 61. नियुक्तिकारस्य भद्रबाहुस्वामिनः चतुर्दशपूर्वधरस्य आचार्यः, अत: तान् (आचारांग-टीका, पृ.4)। चतुर्दशपूर्वधरेण श्रीमद्भद्रबाहुस्वामिना एतद्व्याख्यानरूपा...नियुक्तिः कृता (शिष्यहिता-बृहद्वृत्ति, प्रस्तावना)। RemeReecrOne RemeR [48] ReORORSCRORSROBOOR