Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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स्मृतियों के वातायन से
- कर्मठ समाज सेवक एवं जागृत संपादक __बहुत ही प्रसन्नता एवं गर्व की बात है कि डॉ. शेखरचंद जैन प्रधान-संपादक 'तीर्थंकर-वाणी' के द्वारा किए गये समाज हित के कार्यों की प्रशंसा एवं सराहना हेतु अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया है। ___ इस ग्रन्थ को तो दो वर्ष पूर्व ही प्रकाशित हो जाना चाहिए था। डॉ. शेखरचंदने अपने शैक्षणिक काल में जो समाज सेवा की वह तो अनुकरणीय है ही, परन्तु पिछले चौदह वर्षों से लगातार तीर्थंकर-वाणी' पत्रिका तीन भाषाओं में निर्भीकता पूर्वक संपादन कर सभी जैन संप्रदायों में एकता एवं समन्वय स्थापित करने का भागीरथ प्रयत्न कर रहे हैं वह स्तुत्य भी है और अनुकरणीय भी। डॉ. शेखरचंदजीने देश-विदेश में सभी जैन संप्रदायों में समन्वय स्थापित करने का तो अनूठा कार्य किया ही है। अमरीका में १४ वर्षो से जैन दर्शन का प्रचार कर रहे हैं। डॉ. शेखरचंद जैन द्वारा स्थापित हास्पीटल एक स्तुत्य कार्य है। आपकी निष्ठा लगन और समर्पण की भावना से ही इतना विशाल कार्य इतने अल्प काल में संभव हो सका। अभी समाज को डॉ. शेखरचंदजी से बड़ी-बड़ी उम्मीदें हैं जिनको उन्हें अंजाम देना है आशा ही नहीं अपितु पूर्व विश्वास है कि उनके द्वारा समाज हित सदैव होता रहेगा। डॉ. शेखरचंदजी के स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन की मैं ईश्वर से सदैव प्रार्थना करता हूँ।
___हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है। बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दीदावर पैदा॥
मोतीलाल जैन (सागर) - साहित्यकार एवं लोकसेवी - डॉ. शेखरचंद्र जैन
विरल व्यक्तित्व के धनी हैं श्री शेखरचंद जैन। वे जितने बड़े साहित्यकार हैं उतने ही बड़े लोकसेवक भी हैं। विगत ३० वर्षों पूर्व से मैं आपके संपर्क में आया। उनके जीवन में साहित्य एवं लोकसेवा की दोनों विधायें सशक्त प्रवाहमान हैं। ७० वर्ष की उम्र में आज भी शेखरचंदजी के भीतर जो तेजस्विता और कर्मठता है वह अनुकरणीय है। जब वे बोलते हैं तो कई बार ऐसा लगता है शब्द नहीं, मंत्र बोल रहे हैं।
जैन धर्म के विकास और निर्माण में उनका जीवन केन्द्र बिन्दु तो है ही। अपने साथी कार्यकर्ताओं के प्रेरक मात्र ही नहीं है, उनके लिए महत्व के श्रोता भी हैं। गुट, दलबंदी एवं जातिवाद पहचान से मुक्त रहते हुए सर्व स्तर के कार्यकर्ताओं से चाहे वे धनपति हों या गरीब, साहित्य सेवी या समाज सेवी अथवा राजनेता या धर्मगुरु, सभी से संपर्क बनाये रखना आपका सहज स्वभाव बन गया है। समाज की सही स्थिति का चित्रण करते हुए श्री शेखरचंदजी किसी को नहीं छोड़ते, चाहे वे धर्मगुरु हों या राजनेता।
ऐसे समर्थ शब्दशिल्पी को शत् शत् अभिनंदन। मेरी हार्दिक कामना है कि श्री शेखरचंदजी शतायु हों और आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहें।
श्री शुभकरण सुराणा (संस्थापक-अधिष्ठाता, अनेकान्त भारती प्रकाशन)
____ समन्वयवादी जैनत्व की पताका फहराने वाले यह जानवर अपार सुखद अनुभूति हुई कि 'जैन जगत' के लब्ध प्रतिष्ठित, अध्येयता एवं अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में धर्म प्रभावना हेतु कीर्तिमानों की श्रृंखला अर्जित करने वाले श्रेष्ठ विद्वान डॉ. शेखरचन्द्रजी जैन को विद्वत् समाज द्वारा सम्मान से अलंकृत किये जाने की बेला पर प्रकाशित हो रहे 'स्मृतियों के वातायन से' डॉ. शेखरचन्द्र जैन अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन अत्यन्त प्रेरणा दायक, प्रशंसनीय प्रयास है।